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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 19-20 वीं शती। राजापुर संस्कृत विद्यालय में आचार्य। गजेन्द्रचरितम् - ले- कविशेखर राधाकृष्ण तिवारी । विषय- हाहा और हूहू गंधर्वो के संवाद द्वारा गंगा के गुण-दोषों सोलापुर-निवासी। 5 सर्ग। का विवेचन। अन्त में गंगा का श्रेष्ठत्व प्रस्थापन। गणदेवता - डॉ. रमा चौधुरी। "गणदेवता" नामक उपन्यास गंगाधरविजयम् - कवि- वेंकटसुब्बा।। के कर्ता तारांशंकर बन्दोपाध्याय के चरित्र पर आधारित रूपक। गंगालहरी - पंडितराज जगन्नाथ द्वारा रचित सुप्रसिद्ध गंगास्तोत्र।। गणधरवलयपूजा - ले. शुभचन्द्र । जैनाचार्य ई. 16-17 वीं शती। श्लोक संख्या 52। इसमें गंगा के दिव्य सौंदर्य और सामर्थ्य गणपतिमन्त्रसमुच्चय - ले- पूर्णानन्द। श्लोक- 300 । का वर्णन है। इस रचना के सन्दर्भ में एक आख्यायिका गणेशकल्प- पटल 6। विषय- गणेशपूजा संबंधी तांत्रिक बतायी जाती है। लवंगी नामक एक यवनकन्या से जगन्नाथ विधियां। बीजकोश तथा चतुर्विध दीक्षाओं का वर्णन। गणपति का विवाह हुआ था। अनेक वर्षों तक दिल्ली के मुगल के एकाक्षर आदि 37 मंत्रों का विधान । उपासक के प्रातःकालीन दरबार में भोगविलास में जीवन व्यतीत करने के बाद वृद्धावस्था कृत्य, मातृकान्यास, पूजाविधि पुरश्चरणविधि तथा स्तभंन आदि में जब वें अपनी पत्नी को लेकर काशी पहुंचे तो यवनकन्या षट्कर्मों का वर्णन। से उनके सम्बन्धों को देखकर काशी के पंडितों ने उनका गणपतिविलासम् (नाटक) - ले- नैव वेंकटेश । बहिष्कार किया। यह अपमान सहन न होने के कारण वे गणपत्यथर्वशीर्षम् - अर्थववेद से सम्बन्धित एक नव्य वैदिक अपनी पत्नी के साथ गंगा-घाट पर जाकर रहने लगे और स्तोत्र । इसमें गणेशविद्या बतायी गयी है। गणेशजी को परब्रह्म वहीं उन्होंने आत्मोद्धार के लिये गंगा के स्तवन में स्तोत्ररचना निरूपित कर 'ग' उसका महामंत्र बताया गया है। इस महामंत्र प्रारंभ की। गंगा प्रसन्न हुई और उसका जल एक एक सीढी के साथ ही गणेशगायत्री भी दी गयी है :- एकदन्ताय विद्महे बढने लगा। 52 श्लोक पूर्ण होने पर 52 वीं सीढी पर बैठे वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।। जगन्नाथ एवं उनकी पत्नी को गंगा ने अपने में समा लिया। इसमें गणपति तत्त्व का विस्तृत विवेचन है। इस का पाठ गंगा दशाह के पर्व पर इस काव्य का सर्वत्र पारायण होता है। हजार बार करने पर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है- यह (2) ले- प्राचार्य के.व्ही.एन. आप्पाराव। संस्कृत कॉलेज भी बताया गया है। इसमें वर्णित शांतिमंत्र ऋग्वेद से लिये कोब्बूर (आंध्र) द्वारा प्रकाशित। गये हैं। महाराष्ट्र में इसका अत्यधिक प्रचार है। गंगावतरणम् - (1) ले. नीलकण्ठदीक्षित (अय्या दीक्षित)। गणमार्तण्ड - ले- नृसिंह। ई. 18 वीं शती। ई. 17 वीं शती। 8 सर्गों का महाकाव्य। गणरत्नमहोदधि - ले- वर्धमान सूरि। ई. 13 वीं शती। गंगावतरणचंपू (गंगावतारचंपू) - ले. शंकर दीक्षित। ई. पाणिनीय गणपाठ पर उपलब्ध महत्त्वपूर्ण व्याख्यान ग्रंथ । यद्यपि 18-19 वीं शती। काशीनिवासी। इस चंपू काव्य में 8 यह पूर्णरूप से परिज्ञात नहीं है तथापि गणपाठ के परिज्ञान उच्छ्वासों में गंगावतरण की कथा का वर्णन किया है। इसकी के लिए समस्त वैयाकरणों का यही एकमात्र आधार है। शैली अनुप्रासमयी है। कवि ने प्रारंभ में वाल्मीकि, कालिदास गणरत्नावली - ले- यज्ञेश्वरभट्ट। ई. 20 वीं शती। वर्धमानसूरि व भवभूति प्रभृति कवियों का भी स्तवन किया है। काव्य के गणरत्न-महोदधि से इसका साम्य है। के अंत में सगर-पुत्रों की मुक्ति का वर्णन किया है। गणवृत्ति - (1) ले- क्षीरस्वामी। ई. 11-12 वीं शती। गंगाविलासचम्पू - ले- गोपाल। पिता- महादेव। पिता- ईश्वरस्वामी। (2) ले- पुरुषोत्तमभाई 11 वीं शती। गंगासुरतरंगिणी - ले- विश्वेश्वर विद्याभूषण । ई. 20 वीं शती। गणाभ्युदयम् - ले- डॉ. हरिहर त्रिवेदी। सन् 1966 में दिल्ली गजनी-महमंदचरितम् - ले- पी.जी. रामार्य। श्रीरंगम् की से संस्कृतरत्नाकर में प्रकाशित । उज्जयिनी के कालिदास उत्सव सहदया पत्रिका में क्रमशः प्रकाशित। में अभिनीत । अंकसंख्या पांच। भारत में गणराज्यों का उदय, गजलसंग्रह - ले- राधाकृष्णजी। संस्कृत गझलों का संग्रह । उन पर आयी विपत्तियां आदि पर आधारित कथावस्तु है। गजेन्द्रचम्पू - ले- विठोबा अण्णा दप्तरदार । ई. 19 वीं शती। गणितचूडामणि - ले- श्रीनिवास। रचनाकाल- सन 1158 । गजेन्द्रमोक्षचम्पू - ले. नारायण भट्टपाद । गणेशगीता - वरेण्य नामक राजा को श्रीगणेशजी द्वारा किया गजेन्द्र-व्यायोग - ले. मुड़म्बी वेंकटराम नरसिंहाचार्य स्वामी। गया ज्ञानोपदेश जो गणेशपुराण के क्रीडाखण्ड में अध्याय 138 जन्म- 1842 ई.। इसका प्रथम अभिनय सिंहगिरिनाथ के से 148 के बीच समाविष्ट है, वही है गणेश गीता। भगवद्गीता चन्दन महोत्सव के अवसर पर हुआ था। नृत्य और संगीत के अनुकरण से जो विभिन्न 17 गीताएं रची गयीं, उनमें इसका की इसमें अधिकता है। 14 रागों था 6 तालों का स्तोत्रात्मक स्थान काफी ऊंचा है। गणेशगीता के कुल 11 अध्यायों में गीतों में प्रयोग हुआ है। व्यायोग के नाटकीय तत्त्वों का सांख्यसारार्थ, योग, कर्मयोग, ज्ञानप्रतिपादनयोग आदि विषयों अभाव है। गजेन्द्रमोक्ष की सुप्रसिद्ध कथा निबद्ध है। का विवेचन है- भगवद्गीता व गणेशगीता में अनेक श्लोंकों 90/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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