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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तीनों टीकाएं परस्पर पूरक हैं किन्तु प्रस्तुत क्रम-संदर्भ नामक टीका ही संपूर्ण भागवत पर लिखी गई है। टीका की दृष्टि से यह प्रामाणिक एवं मूलग्राही है। क्रमोत्तम - (नामान्तर 1) गद्यवल्लरी 2) श्रीविद्यापद्धति 3) क्रमोत्तमपद्धति, 4) महात्रिपुरसुन्दरी-पादुकार्चनपद्धति ५) श्रीपराप्रसादपद्धति ।) ले. निरात्मानन्दनाथ (मल्लिकार्जुन योगीन्द्र) गुरु श्रीनृसिंह तथा माधवेन्द्र सरस्वती। श्लोक 2400। पटल 33| विषय- साधकों के कर्त्तव्य, संहाररूप चक्रन्यास का वर्णन, न्याय-विवरण, पूजापटल आदि। क्रान्तिसारिणी - ले.दिनकर। विषय- ज्योतिषशास्त्र । क्रियाकलाप - ले. विजयानंद (विद्यानन्द)। विषयव्याकरणशास्त्र के अन्तर्गत आख्यातों का अर्थबोध । क्रियाकलापटीका - ले. प्रभाचन्द्र जैनाचार्य। समय- दो मान्यताएं 1) ई. 8 वीं शती। 2) ई. 11 वीं शती। क्रियाकल्पतरु- यह सम्पूर्ण कुलशास्त्र का भाग है। इसमें वामाचार पूजा वर्णित है। तांत्रिक क्रिया के अनुसार बहुत से योगों का वर्णन है। क्रियाकाण्डम् - ले. श्रीशक्तिनाथ (श्रीकल्याणकर) । शिष्यसंघ की ज्ञानसिद्धि के लिए क्रियाकल्पतरु के अन्तर्गत इस क्रियाकाण्ड का निर्माण किया गया। गुरु-पारम्पर्यप्रकाशी। मार्गप्रदर्शकश्रीकण्ठनाथ, गंगाधरमुनींद्र महाबल, महेशान, महावागीश्वरानन्द, देवराज तथा विचित्रानन्द । विषय- पीठयाग, सुभद्रयाग, कन्दरयाग, जयाख्ययाग, भीमाख्ययाग, कुहूयाग आदि। क्रियाकालगुणोत्तरम् - शिव-कार्तिकेय संवादरूप। लिपिकाल ई. 1184, श्लोक 2100। इसमें तीन कल्प हैं- क्रोधेश्वरकल्प, अघोरकल्प और ज्वरेश्वरकल्प। विषय- नागों की विभिन्न जातियों के लक्षण, गोत्पत्ति, ग्रह, यक्ष, पिशाच, डाकिनी-शाकिनियों के लक्षण, विषैलै सर्प, बिच्छू आदि विषैलै जीव जन्तुओं के लक्षण। क्रियाकोश - ले. रामचन्द्र। पिता- विश्वनाथ। विषयव्याकरणशास्त्र के अन्तर्गत आख्यातों का अर्थबोध । भट्टमलकृत आख्यातचन्द्रिका का यह संक्षेप है। क्रियाक्रमद्योतिका - ले.अधोरशिवाचार्य अथवा परमेश्वर । श्लोकसंख्या- 3000 । लेखक ने स्वयं इसकी व्याख्या लिखी है। क्रियागोपनरामायणम् - ले. शेषकृष्ण। ई. 16 वीं शती। क्रियानीतिवाक्यामृतम् - ले.सोमदेव। ई. 11 वीं शती। पिता- राम। क्रियापर्यायदीपिका - ले.वीरपांडव। विषय- आख्यातों का अर्थबोध । क्रियायोगसार - पद्मपुराण का एक खंड। इसे ई.स. 900 के लगभग बंगाल में लिखा जाने का अनुमान है। इसमें विष्णु के पराक्रम और वैष्णवों के गुणों का विवेचन है।ध्यानयोग की अपेक्षा क्रियायोग की श्रेष्ठता प्रतिपादित की गयी है। क्रियायोग के छह अंग इस प्रकार बताए गये हैं- 1) गंगा, श्री व विष्णु की पूजा 2) दान 3) ब्राह्मणों पर श्रद्धा, 4) एकादशी व्रत का पालन 5) तुलसी की पूजा और 6) अतिथिसत्कार । एकनिष्ठ भक्ति से ही कैवल्यप्राप्ति का प्रतिपादन इसमें किया गया है। क्रियारत्नसमुच्चय - हैम धातुपाठ पर गुणरत्नसूरिकृत व्याख्या। इसमें सभी धातुओं के सभी प्रक्रियाओं में रूपों का संक्षिप्त निर्देश किया है। और धातुरूप संबंधी अनेक प्राचीन मतों का उल्लेख किया है। इस के अन्त में 66 श्लोकों में गुरुपदक्रम लिखा है जिसमें 49 पूर्व गुरुओं का वर्णन मिलता है। क्रियालेशस्मृति - ले.नीलकण्ठ । श्लोकसंख्या- 1000 | विषयसंक्षेपतः सब अनुष्ठानों का परिचय। विष्णु, दुर्गा, शिव, स्कन्द, गणेश, शास्ता हर, अच्युत आदि की संक्षेपतः पूजा, बीजांकुर, स्थान और विग्रह की शुद्धि , निष्क्रमण, स्नान, पूजा, बलि, उत्सव, तीर्थयात्रा इत्यादि है। क्रियासंग्रह - ले. शंकर। श्लोक 2500। शैव विभाग के 9 पटल तक का ग्रन्थांश। विषय- उपासक की देहशुद्धि, देवतापूजन, हवन आदि । क्रियासार - ले.नीलकण्ठ। ई. 15 वीं शती। श्लोक 3600। पटल-69 1 विषय- मातृका-स्थापन आदि विविध तांत्रिक क्रियाएं। क्रियासार-व्याख्या - ले. व्याघ्रग्रामवासी नारायण । श्लोक-95001 क्रोधभैरवतंत्रम् - 64 आगमों में अन्यतम। भैरवाष्टक वर्ग के अन्तर्गत। क्षणभंगाध्याय - ले. ज्ञानश्री । ई. 14 वीं शती । बौद्धाचार्य । क्षणभंगासिद्धि - ले. धर्मोत्तराचार्य। ई. 9 वीं शती। क्षणिकविभ्रम - लेखिका- लीला राव दयाल। यूरापीय रीति का एकांकी रूपक। पत्नी के दुर्व्यवहार से खिन्न पति के गृहत्याग की कथा। क्षत्रचूडामणि - ले. वादीभसिंह। जैनाचार्य। इनके समय के विषय में चार मान्यताएं हैं- 1) ई. 8-9 वीं शती 2) ई. 11 वीं शती का प्रारंभ 3) ई. 11 वीं शती का उत्तरार्ध 4) ई. 12 वीं शती। प्रथम मत अधिक मान्य है। क्षत्रपतिचरित्रम् - (महाकाव्य) - ले. डॉ. उमाशंकर शर्मा त्रिपाठी। वाराणसी में अंग्रेजी के प्राध्यापक। सर्गसंख्या 19। राज्याभिषेक समारोह तक शिवाजी महाराज का चरित्र। हिंदी अनुवाद सहित प्रकाशित। क्षत्रियरमणी - मूल बंकिमचंद्र का बंगाली भाषा में उपन्यास । अनुवादक- श्रीशैल ताताचार्य। क्षपणक-व्याकरणम् - क्षपणक ई. पहली शती के एक 88 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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