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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपाय, जित प्रदेशों में शांति की स्थापना। 14) औपनिषदिक - शत्रुनाश के विभिन्न प्रयोग, अपने पक्ष की रक्षा, औषधि, मंत्र का प्रयोग। 15) तंत्रयुक्ति - अर्थशास्त्र का अर्थ, बत्तीस युक्तियों के नाम, उनका अर्थ आदि। इस ग्रंथ में 15 अधिकरण, 150 अध्याय और 180 उपविभाग हैं। कौटिल्य व मनु में कुछ मतभेद हैं। कौटिल्य नियोगपद्धति (ब्राह्मणों के लिये) के समर्थक है। मनु ने विधवा विवाह को अमान्य किया है। कौटिल्य ने उसे मान्य किया है। मनु द्यूत के विरोध में हैं, तो कौटिल्य चोर-डाकू अपराधियों को पकड़ने के लिये, यह व्यवस्था राजा के नियंत्रण में आवश्यक बताते हैं। याज्ञवल्क्य स्मृति में कौटिल्य के अनेक मतार्थ किये गए हैं। कौटिलीय अर्थशास्त्र तथा कामसूत्र में अनेक विषयों में साम्य है। कौटिलीय अर्थशास्त्र पर अब तक भट्टस्वामी कृत "प्रतिपदपंचिका" एवं माधवयज्वकृत "नयचंद्रिका" ये दो भाष्य प्रकाशित हुये हैं। कौण्डिन्य शाखा - कृष्ण यजुर्वेद से संबंधित सौत्र शाखा । कौण्डिन्य सूत्र से उद्धृत वचन कई ग्रंथों में मिलते हैं। कुण्डिन को तैत्तिरियों का वृत्तिकार भी कहा गया है। कौण्डिन्यप्रहसनम् - ले.महालिंग शास्त्री (जन्म- 1897) कथासार - गृध्रनास को पृथुक (पोहे) खरीदते देख, परान्नभोजी कौडिन्य उसका पीछा करता है। गृध्रनास उसकी दृष्टि बचाकर घर में प्रवेश कर दरवाजा बन्द करना चाहता है। गृधनास शीघ्र से पोहे खाने लगता है, तो जीभ जलती है और वह चिल्लाता है। तब कौंडिन्य रसोई में पहुंचता है। उसे टालने हेतु गृधनास की पत्नी जिह्मता कहती है कि उनके मुंह में फोडा होने से बडी पीडा है, शीघ्र वैद्य को बुलाइये। कौण्डिन्य बाहर देहली के पास भूसे में छिपता है। जिह्नता यह देख बहाना बनाती है कि उसे ब्रह्मराक्षस ने पकड़ लिया। गृध्रनास ब्रह्मराक्षस को (वस्तुतः कौण्डिन्य को) मारने मूसल उठा कर देहली तक दौडा जाता है। कौण्डिन्य हाथ में भूसा लेकर तैयार ही है। गृध्रनास के मुख पर वह भूसा फूंकता है। आंखों में भूसा जाने से वह चिल्लाता रहता है उसके पीछे जिह्मता भी दौडी जाती है, इतने में कौण्डिन्य पूरा पोहा खा जाता है और पूछता है कि वैद्य को फोडे के लिए बुलाऊं या अन्धत्व दूर करने। फिर कहता है कि अतिथि को छोड अकेले खाने से मनुष्य ब्रह्मराक्षस बनता है, उससे मैने गृध्रनास को बचाया। कौत्सस्य गुरुदक्षिणा - ले. वासुदेव द्विवेदी। वाराणसी की संस्कृत प्रचार पुस्तक- माला में प्रकाशित । एकांकी रूपक। कौतुकचिन्तामणि - श्लोक- 1025 | विषय- स्तंभन, वशीकरण, वाजीकरण, कृत्रिम-वस्तुकरण, जनोपकार, वृक्षदोहन, परसेना-स्तंभन, अङ्गरक्षण, गृहदाहस्तंभन, खङ्गस्तंभन, अग्निस्तंभन तथा जलस्तंभन के भेद वीर्यस्तंभन, स्त्रीवशीकरण, आकर्षण, विविध अंजननिर्माण, अदृश्यकरण, पाषाणचर्वण, नाना-रूपकरण, मत्स्य-सर्पकरण आदि। ये तांत्रिक विषय राजा के लिए आवश्यक बताए गए हैं। कौतुकरहस्यम् - ले. पण्डित चूडामणि। विषय- स्तंभन, वशीकरण, वाजीकरण, लोगों को अदृश्य कर देना, वृक्षों पर फल-फूल खिलाना, बाढ को रोकना, जलती आग में कूदने पर भी न जलना आदि। इसकी पुष्पिका में दो मन्त्र भी दिये गये हैं किन्तु उनकी भाषा समझ में नहीं आती। कौतुकरत्नाकरम् (प्रहसन) - ले. कवितार्किक। ई. 16 वीं शती। कथा - पुण्यवर्जिता नगरी के राजा दुरितार्णव की रानी दुःशीला का अपहरण होता है। वसन्तोत्सव का समय है, इसलिए राजा अपने मंत्रिगण "कुमतिपुंज' तथा "आचारकालकूट", वैद्य "व्याधिवर्धक", ज्योतिषी "अशुभचिन्तक" सेनापति “समरकातर" तथा गुरु "अजितेन्द्रिय" आदि से सलाह लेकर अनंगतरंगिणी नामक वेश्या को पत्नी बनाता है। तभी विदित होता है कि रानी का अपहरण "कपटवेषधारी' नामक ब्राह्मण ने किया है। वही ब्राह्मण अनङ्गतरंगिणी से भी प्रणय रचाता है, परंतु वह उसे उठाकर पटकती है। न्यायालय में ब्राह्मण कपटवेषधारी अपराधी घोषित होता है किन्तु वसन्तोत्सव में उसका अपराध धुल जाता है। कौतुकसर्वस्वम् (प्रहसन) - ले. गोपीनाथ चक्रवर्ती। ई. 18 वीं शती। अंक संख्या - दो। धर्मनाश नगरी के राजा, कलिवत्सल, मन्त्री शिष्टान्तक, पुरोहित धर्मानल, सेवक अनंग सर्वस्व, पण्डित पीडाविशारद आदि का व्यंगात्मक चरित्र वर्णित है। कौतूहल- चिन्तामणि - ले. नागार्जुन। विषय- शत्रु के घर को गिराना, उच्चाटन, वशीकरण, हनन, वैरजनन, बन्धमोचन आदि विविध कृत्यों के तन्त्र-मन्त्र और उपाय। कौतूहलविद्या - श्लोक-149। ले. नित्यनाथ । माता- पार्वती। विषय- व्याधि और दारिद्रय हरने वाला तथा जरा और मृत्यु से बचाने वाला इन्द्रजाल। इसमें कबूतर, बकरी, मोर आदि को उत्पन्न करनेवाली विविध औषधियाँ बतायी गयी हैं एवं वशीकरण के मन्त्र आदि वर्णित हैं। कौथुम-संहिता - सामवेद की कौथुम शाखीय संहिता के मुख्यतः दो भेद हैं- 1) आर्चिक और गेय। आर्चिक के भी दो भाग हैं- 1) पूर्वाचिक और 2) उत्तरार्चिक । पूर्वार्चिक को छन्द, छंदसी या छंदसिका भी कहते हैं। विषयानुसार पूर्वार्चिक के चार भाग हैं 1) आग्नेयपर्व 2) ऐंद्रपर्व 3) पवमान पर्व और 4) आरण्यक पर्व। बीच में महानाम्नी आर्चिक प्रकरण भी आता है। फिर उत्तरार्चिक के विषयानुसार 7 भाग हैं1) दशरात्र 2) संवत्सर 3) एकाह 4) अहीन 5) सत्र 6) प्रायश्चित्त 7) क्षुद्र। ऋचाओं को आर्चिक कहते हैं। आर्चिका योनिग्रंथ कहलाता है। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 85 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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