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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किया है। तथापि इस पर से अनुमान निकलता है कि गोनर्द शंकराचार्य, रामानुज, सायण जैसे महान् आचार्य किन्तु केवल के लोग कट्टर बौद्ध-विरोधक होंगे। ऐसे बौद्ध-विरोधकों के । पतंजलि का भाष्य ही, "महाभाष्य" होने का सम्मान प्राप्त केन्द्र में पतंजलि पले यह घटना, उनके चरित्र की दृष्टि से कर सका। इस महाभाष्य द्वारा व्याकरण के सूक्ष्मातिसूक्ष्म महत्त्वपूर्ण है। व्याकरण-महाभाष्य से यह सूचित होता है, कि । रहस्यों तक का उद्घाटन किया जाता है। : पतंजलि की मौर्य सम्राट् बृहद्रथ का वध कराने वाले पुष्यमित्र ___इसके साथ ही अपने इस ग्रंथ में शब्द की व्यापकता पर शुंग से मित्रता थी। पतंजलि ने व्याकरण की परीक्षा पाटलीपुत्र प्रकाश डाल कर, पतंजलि ने "स्फोटवाद" नामक एक नवीन (पटना) में दी। वहीं पर उन दोनों की मित्रता हुई होगी। दार्शनिक सिद्धांत की नींव भी डाली है। अनादि, अनंत, बौद्ध बन कर वैदिक धर्म का विरोध करने वाले मौर्य-कुल अखंड, अज्ञेय, स्वयंप्रकाशमान आदि नाना विशेषणों से विभूषित का उच्छेद कर, भारत में वैदिकधर्मी राज्य की प्रस्थापना करने शब्दब्रह्म ही सृष्टि का आदिकारण है, ऐसा पतंजलि मानते हैं। की योजना, उन दोनों ने वहीं पर बनाई होगी। इस दृष्टि से पतंजलि की रचनाएं- व्याकरण महाभाष्य के अतिरिक्त पतंजलि अ. ज. करंदीकर ने पतंजलि से संबंधित आख्यायिकाओं को नाम से संबंधित निम्न कृतियाँ हैऐतिहासिक, अर्थ लगाने का निम्न प्रकार से प्रयत्न किया है महाराज समुद्रगुप्त कृत "कृष्णचरित" में पतंजलि को- "महानंद" ___ श्री विष्णु ने अपने शरीर को बढाया और उसका भार या "महानंदमय" काव्य का प्रणेता कहा गया है जिस में शेषजी को असह्य हुआ। इसका अर्थ यह कि पृथ्वीपति रूपी काव्य के बहाने योग का वर्णन किया गया है। विष्णु अर्थात् मौर्य सम्राट् द्वारा अपनी अधिकार-मर्यादा का __ "सदुक्तिकर्णामृत' में भाष्यकार के नाम से निम्न श्लोक किया गया उल्लंघन, पतंजलि के समान ही मध्यभारत के उद्धृत किया गया हैसभी नागकुलोप्तन्नों को असह्य हो चुका था। प्रतीत होता है यद्यपि स्वच्छभावेन दर्शयत्यम्बुधिर्मणीन् । कि पतंजलि का नागकुल से घनिष्ट संबंध था, क्योंकि उन्हें तथापि जानुदन्नोऽयमिति चेतसि मा कथाः ।। शेषनाग का अवतार माना गया है। इन नागों का पुष्यमाणव 2. शारदातनय-रचित "भावप्रकाशन" में किसी वासुकी नामक एक संगठन, पुष्यमित्र के ही नेतृत्व में निर्माण हुआ आचार्य कृत साहित्यशास्त्रीय ग्रंथ का उल्लेख है। इसमें भावों होगा यह बात द्वारा रसोत्पत्ति का कथन किया गया है। इससे अनुमान होता ___ "महीपालवचः श्रुत्वा जुधुषुः पुष्यमाणवाः" अर्थात् महीपाल है कि पतंजलि ने कोई काव्यशास्त्रीय ग्रंथ लिखा होगा। का (राजा का) वचन सुनकर पुष्यमानव प्रक्षुब्ध हुए- इस 3. लोहशास्त्र- शिवदासकृत वैद्यक ग्रंथ "चक्रदत्त" की महाभाष्यांतर्गत श्लोक से सूचित होती है। यह कल्पना, टीका में लोहशास्त्र नामक ग्रंथ के रचयिता पतंजलि बताए गए हैं। प्रभातचंद्र चॅटर्जी से लेकर डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल तक 5. सिद्धांत-सारावली- इसके प्रणेता भी पतंजलि कह गए हैं। अनेक विद्वानों ने स्वीकार की है। पुष्यमित्र के साथ ही पतंजलि ने भी इस संगठन का नेतृत्व किया होगा। 6. कोश- अनेक कोश-ग्रंथों की टीकाओं में वासकि, शेष, फणपाति व भोगींद्र आदि नामों द्वारा रचित कोश-ग्रंथ पुष्यमित्र शुंग व पतंजलि दोनों ही वैदिक धर्म एवं संस्कृत के उद्धरण प्राप्त होते हैं। भाषा के अभिमानी थे। पुष्यमित्र ने दो अश्वमेघ यज्ञ किये थे, और उनका पौरोहित्य किया था पतंजलि ने । व्याकरण-महाभाष्य पतंजलि का समय- बहुसंख्य भारतीय व पाश्चात्य विद्वानों लिख कर तो पतंजलि ने संस्कृत भाषा को गौरव के शिखर के अनुसार पतंजलि का समय 150 ई. पू. है; पर युधिष्ठिर पर ही पहुंचा दिया। परिणामस्वरूप पाली-अर्धमागधी जैसी मीमांसकजी ने जोर देकर बताया है, कि पतंजलि, विक्रम बौद्ध-जैनों की धर्मभाषाएं तक संस्कृत के सामने पिछड गई। संवत् से दो हजार वर्ष पूर्व हुए थे। इस संबंध में अभी "संस्कृत तथा अपभ्रंश शब्दों से यद्यपि एक जैसा ही अर्थ तक कोई निश्चित प्रमाण प्राप्त नहीं हो सका है पर अंतःसाक्ष व्यक्त होता है, फिर भी धार्मिक दृष्टि से संस्कृत-शब्दों का के आधार पर इनका समय-निरूपण कोई कठिन कार्य नहीं। ही उपयोग किया जाना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से अभ्युदय "महाभाष्य" के वर्णन से पता चलता है कि पुष्यमित्र ने होता है"- ऐसा पतंजलि ने कहा है। उस काल में पतंजलि किसी ऐसे विशाल यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें अनेक व पुष्यमित्र द्वारा किये गये संस्कृत भाषा के पुनरुत्थान के पुरोहित थे, और उनमें पतंजलि भी थे। वे स्वयं ब्राह्मण कारण ही रामायण-महाभारतादि महान् ग्रंथों का अखिल भारत याजक थे और इसी कारण उन्होंने क्षत्रिय याजक पर कटाक्ष किया हैमें सामान्यतः एक ही स्वरूप में प्रचार हुआ, और भारत का यदि भवद्विधः क्षत्रियं याजयेत् (3-3-147, पृ. 332)। एकराष्ट्रीयत्व अब तक टिक सका। पुष्यमित्रो यजते, याजकाः याजयंति । तत्र भवितव्यम् व्याकरण महाभाष्य है पतंजलि की अजरामर कृति। भारत पुष्यमित्रो याजयते, याजकाः याजयंतीति यज्वादिषु में अनेक भाष्यों का निर्माण हुआ जिनके निर्माता थे शबर, चाविपर्यासो वक्तव्यः (महाभाष्य, 3-1-26)। जी ने जोर पर्व हुए थे। इस पर अंतःसाक्ष 362 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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