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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रचित एकांकिका), संगीत-शिक्षणम् (तीन अंकी नाटक), सुपुत्र । रचना- “संगीतचूडामणि" । रणरागिणी लक्ष्मीः (झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के संबंध में जगद्धर - भवभूतिकृत "मालती-माधव" प्रकरण के टीकाकार । एकांकिका), वधूपरीक्षणम् (एकांकिका) पिता-महामहोपाध्याय पण्डितराज महाकविराज धर्माधिकारी श्री. श्री छत्रे का बहुत-सा साहित्य अमृतलता, विश्वसंस्कृतम् ___ रत्नधर पण्डित। माता- दमयन्ती। रत्नधर के पूर्वज थे विद्याधर, गुरुकुलपत्रिका, पुरुषार्थ, एकता इत्यादि प्रसिद्ध मासिक पत्रिकाओं रामेश्वर । ये सभी मीमांसक विद्वान थे। में सतत प्रकाशित होता रहा। श्री. छत्रे ने मराठी में संस्कृत समय 15 वीं शती। अन्य कृतियां- सरस्वती-कंठाभरण की साहित्य से संबंधित कुछ छात्रोपयोगी पुस्तकें भी लिखी हैं। टीका, संगीत-सर्वस्व तथा शिव-स्तोत्र। मुंबई-आकाशवाणी से आपके जवाहरस्वर्गारोहणम्, जगन्नाथ - इस मैथिल कवि ने अपने 20 सर्गयुक्त महाकाव्य नाट्यरूप-मेघदूतम, कीचकहननम्, नन्दिनीवरप्रदानम्, "ताराचन्द्रोदयम्" में ताराचन्द्र नामक एक साधारण राजा का सिद्धार्थ-प्रवजनम्, श्रीकृष्णदानम्, संन्यासि-संतानम्, लुण्टाको चरित्र लिखा है। महर्षिः परिवर्तितः, येशुजन्म इत्यादि नभोनाटक यथावसर जगन्नाथ - भट्टारक नरेन्द्र-कीर्ति के शिष्य। खण्डेलवाल-वंश। ध्वनिक्षेपित हुए थे। समर्थ रामदास का मनोबोध, मोरोपंत की गोत्र-लोगाणी। पिता-सोमराज श्रेष्ठी। भाई- वादिराज। तक्षक केकावली और ग्रे कवि की एलिजी जैसे प्रसिद्ध काव्यों के (वर्तमान नाम टोडा) नगर-निवासी। राजा जयसिंह द्वारा संस्कृत अनुवाद श्री. छत्रे ने किए हैं। इसके अतिरिक्त मराठी सम्मानित। समय 17 वीं शती का अन्त और 18 वीं शती में आपकी 25 पुस्तकें प्रकाशित हुईं। अनेक संस्थाओं द्वारा का प्रारम्भ। रचनाएं- (1) चतुर्विंशति सन्धान (स्वोपज्ञ टीका आपका सम्मान हुआ। रेल-विभाग के कर्मचारी-वर्ग में श्री. सहित), (2) सुखनिधान, (3) ज्ञानलोचनस्तोत्र, (4) छत्रे संस्कृत साहित्य के एकमात्र उपासक रहे। श्रृंगारसमुद्रकाव्य, (5) श्वेताम्बरपराजय, (6) नेमिनरेन्द्र स्तोत्र, जगजीवन (पं.)- जन्म 1704 ई. । मारवाड-शासक अजितसिंह (7) सुपेष्ट-चरित्र और (8) कर्मस्वरूपवर्णन। ये प्राकृत व के समकालीन। अजितसिंह ही इनकी रचना के प्रतिपाद्य विषय संस्कृत दोनों के विद्वान थे। हैं। आपके द्वारा रचित "अजितोदय-काव्यम्", 23 सों का जगन्नाथ- फतेहशाह (1684-1716 ई.) के समाश्रित। बंगाल महाकाव्य है। के निवासी। वंश-तीरभक्ति। पिता-पीताम्बर। अनेक रचनाओं जगज्ज्योतिर्मल्ल- नेपाल नरेश। पिता-त्रिभुवनमल्ल । कार्यकाल में से केवल "अतन्द्र-चन्द्र प्रकरण" उपलब्ध है। ई. 1617-1633। संगीतज्ञ। कृतियां- पद्मश्रीज्ञान लिखित जगन्नाथ - [1] तंजौर के महाराज सरफोजी "नागर-सर्वस्व" पर टीका, संगीत-सारसंग्रह, स्वरोदय-दीपिका, भोसले (1711-1728 ई.) के मंत्री श्रीनिवास के पुत्र । गीत-पंचाशिका, संगीत-भास्कर और श्लोक-संग्रह। काकलवंशीय। चाचा-रघुनाथ, न्यायशास्त्र के पण्डित । स्वयं जगदीश तर्कपंचानन - समय ई. 16 वीं शती का उत्तरार्ध । राजतन्त्र में नियुक्त। सम्भवतः पिता के पश्चात् राजमंत्री पद काव्यप्रकाश की "रहस्य-प्रकाश" नामक टीका के कर्ता। पर विराजमान। जगदीश भट्टाचार्य (तर्कालंकार) - ई. 17 वीं शती। कृतियां- अनंगविजय (भाण), शृंगारतरंगिणी (भाण) तथा मथुरानाथ तर्कवागीश के पश्चात् हुए एक श्रेष्ठ नैयायिक। इन्होंने शरभराज- विलासकाव्य (इसमें गीवार्ण विद्यारसिक तथा "सरस्वती श्री. रघुनाथ शिरोमणि के टीका-ग्रंथ दीधिति पर "जागदीशी' महल" नामक संस्कृत ग्रंथालय के संस्थापक सरफोजी राजे नामक विस्तृत टीका लिखी है। इसके अतिरिक्त तर्कामृत व भोसले का चरित्र वर्णित है। रचना का काल 1722 ई.)। शब्दशक्तिप्रकाशिका नामक दो ग्रंथों की रचना भी आपने की। [।।] सरफोजी भोसले के मन्त्री बालकृष्ण का पुत्र । इनमें से शब्दशक्ति-प्रकाशिका को जगदीश भट्टाचार्य का सर्वस्व माना जाता है। इसमें साहित्यिकों की व्यंजना नामक शब्द-शक्ति रचना- (1) रतिमन्मथम्। (2) वसुमतीपरिणयम्। का खंडन किया गया है। शब्द-शक्तिविषयक यह अत्यंत जगन्नाथ - तंजौर के महाराजा प्रतापसिंह (1739-1763 ई.) प्रामाणिक ग्रंथ है। नवद्वीप (बंगाल) के प्रसिद्ध नैयायिकों में के समाश्रित। विश्वामित्र गोत्री। पिता- बालकृष्ण राजमंत्री थे। भट्टाचार्यजी का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इनके कुछ अन्य गुरु- कामेश्वर । प्रतापसिंह से अनुज्ञा लेकर काशीयात्रा। लौटते ग्रंथों के नाम हैं : तत्त्वचिंतामणिमयूख, न्यायादर्श और समय पुणे के पेशवा बालाजी बाजीराव से सम्पर्क प्राप्त हुआ। पदार्थतत्त्वनिर्णय। वहीं "वसुमतीपरिणय' नामक नाटक की रचना, जिसका प्रथम जगदीश्वर भट्टाचार्य -महामहोपाध्याय। तर्कालंकार। ई. 18 अभिनय पेशवा ने स्वयं देखा था। वीं शती। "हास्यार्णव नामक प्रहसन के प्रणेता। कृतियां- वसुमतीपरिणय तथा रतिमन्मथ (नाटक), अश्वधाटी जगदेकमल्ल चालुक्य - कल्याण के चालुक्यवंशीय राजा तथा भास्कर-विलास (काव्य) और हृदयामृत तथा (ई.स. 1138 से 1150)। तीसरे सोमेश्वर पश्चिम चालक्य के नित्योत्सव-निबन्ध (तांत्रिक ग्रंथ)। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 323 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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