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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोविन्ददास - ई. 16 वीं शती का मध्य। बंगाली वैष्णव कवि। “कर्णामृत" तथा "संगीतमाधव" नामक कृष्णभक्तिपर गीतकाव्य के रचयिता। गोविन्ददास - ई. 17 वीं शती। सत्काव्यरत्नाकर, काव्यदीपिका तथा चिकित्सामृत टीका के कर्ता। गोविन्द दीक्षित - ई. स. 1554-16261 कर्नाटकी ब्राह्मण। कावेरी नदी के किनारे स्थित पट्टीश्वरम् ग्राम के मूलनिवासी। अय्यन नाम से भी पहिचाने जाते थे। पत्नी का नाम नागम्बा था। दोनों का एक पुतला पट्टीश्वरम् के मन्दिर में आज भी देखने को मिलता है। तंजौर के राजा अच्युतराय नायक तथा राजा रघुनाथराय नायक के प्रधान थे। इन्होंने “हरिवंशसारचरितम्" नामक ग्रन्थ तीन खण्डों में लिखा है। इनके द्वारा रचित पद "संगीतसुधानिधि" नामक ग्रन्थ में संकलित किये गये हैं। वेदान्त, धर्म, शिल्प, संगीत आदि शास्त्रों पर भी इन्होंने ग्रन्थरचना की है। अपने “साहित्यसुधा" नामक काव्य में इन्होंने राजा अच्युत व राजा रघुनाथ का चरित्र वर्णन किया है। इन्होंने एक अभिनव वीणा का आविष्कार किया जिसमें चौदह पर्दे होते हैं। यह "तंजौर" के नाम से विख्यात है। औदार्य, नीति-निपुणता, धार्मिकता, विद्वत्ता आदि गुणों से विभूषित होने के कारण राजा प्रजा दोनों पर इनका प्रभाव था। गोविन्दपाद - अद्वैत संप्रदाय के एक प्रमुख आचार्य, गौडपादाचार्य के शिष्य और शंकराचार्य के गुरु। ये नर्मदा तट पर निवास करते थे। "रसहृदयतन्त्र" नामक एक ग्रन्थ की रचना की है। गोविन्दभट्ट - (1) बीकानेर के निवासी। इन्होंने वहां के राजा के यश का वर्णन अपने काव्य "रामचन्द्रयशःप्रबन्ध" में किया है। ___ (2) पद्यमुक्तावली नामक सुभाषितसंग्रह के लेखक। गोविन्द भट्टाचार्य - ई. 17 वीं शती। रुद्र वाचस्पति के पुत्र । “पद्यमुक्तावली' के रचयिता। गोविन्दराज - ई. 11 वीं शती। पिता- भट्टमाधव। पितामह-नारायण। इन्होंने मनुस्मृति पर टीका लिखी। इनका स्मृतिमंजरी नामक धर्मशास्त्रविषयक ग्रन्थ भी प्रसिद्ध है। गोविन्द राय - ई. 19 वीं शती। “स्वास्थ्य-तत्त्व" नामक आयुर्वेदविषयक ग्रंथ के रचयिता। गोविन्द सामन्तराय - ई. 18 वीं शती। बांकी। (उत्कल) के निवासी। पिता-रामचंद्र। पितामह-विश्वनाथ। तीनों को "सामन्तराय" उपाधि थी। “समृद्धमाधव" नामक सात अंकी नाटक के रचयित । “कविभूषण" की उपाधि से भी विभूषित। गोविन्दानन्द - 1) इन्होंने शंकराचार्य के शारीरभाष्य पर "रत्नप्रभा" नामक टीका लिखी है। 2) ई. सं. 1500-1554। मूलतः द्रविड। पश्चात् बांकुरा के निवासी। पिता-गणपति भट्ट। "कविकंकणाचार्य" नाम से विभूषित। इनके धर्मशास्त्र विषयक दानकौमुदी, शुद्धि कौमुदी, श्राद्धकौमुदी तथा वर्षकृत्य-कौमुदी नामक प्रमुख चार ग्रन्थ उपलब्ध हैं। इनके अर्थकौमुदी और तत्त्वार्थकौमुदी नामक दो टीका ग्रंथ भी हैं। अर्थकौमुदी, शुद्धिदीपिका की तथा तत्वार्थकौमुदी, शूलपाणि के प्रायश्चित्तविवेक की, टीका है। अमरकोश की टीका भी आपने लिखी है। गोषूक्ति काण्वायन - ऋग्वेद के 8 वे मंडल के 13 वें और 14 वें सूक्त के रचयिता जिनमें इन्द्र की इस प्रकार प्रशंसा की गयी है - इन्द्र ने बल नामक असुर का वध किया, चारो और संचार करने वाली अधार्मिक टोलियों का विनाश किया. नमची राक्षस का शिरश्छेद किया, तथा गुफा में छिपा कर रखी गई गायों का आंगिरा ऋषि के लिये उद्धार किया। एक ऋचा इस प्रकार है - इन्द्रेण रोचना दिवो दळ्हानि इंहितानि च। __ स्थिराणि न पराणुदे ।। आकाश में जो तेजस्वी और लक्ष्यवेधी नक्षत्र खचाखच उभरे हुए दिखाई देते हैं, वे अपने अपने स्थान पर इन्द्र द्वारा दृढता से स्थिर किये गये हैं। उन्हें कोई भी शक्ति हिला नहीं सकती। गौडापादाचार्य - ई. 6 वीं शती। श्रीशंकराचार्य के गुरु गोविन्दाचार्य के ये गुरु थे। ये महाराष्ट्र के सांगली जिले के भूपाल नामक ग्राम के मूल निवासी थे। पिता-विष्णुदेव, माता-गुणवती। इनका व्यावहारिक नाम शुकदत्त था। ___ गौडापादाचार्य बचपन में ही तपश्चर्या करने के लिये घर से निकल पडे। तपश्चर्या काल में उन्हें दृष्टान्त हुआ, जिसके अनुसार वे गुरु की खोज में वंगदेश में जिष्णुदेव नामक सिद्धपुरुष के पास गये। गुरु ने उन्हें दीक्षा दी और अत्यंत दूर से पैदल चल कर आये हुए अपने शिष्य का, 'गौडपाद' अर्थात् पैदल चल कर गौड देश आया हुआ ऐसा अन्वर्थक नाम रखा। इनकी गुरु परंपरा "व्यासं शुकं गौडपादं महान्तम्" इस प्रकार बताते हैं परन्तु "शुक" से किसी निश्चित व्यक्ति का बोध नहीं होता। अद्वैत सिद्धान्त का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन आचार्यों में गौडपादाचार्य का नाम अग्रणी है। उन्होंने मांडूक्योपनिषद् पर कारिकायें लिखी है जिनमें अद्वैत वेदान्त का संपूर्ण तत्त्वज्ञान संक्षेप में ग्रथित किया है। एक कारिका इस प्रकार है - अजातस्यैव भावस्य जातिमिच्छान्ति वादिनः । अजातो ह्यमृतो भावो मर्त्यतां कथमेष्यति ।। न भवत्यमृतं मर्यं न मय॑ममृतं तथा। प्रकृतेरन्यथाभावो न कथंचिद् भविष्यति ।। अर्थ - द्वैतवादी, जो अजन्मा है उससे आत्मा के जन्म 314/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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