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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यजुर्वेद वैशंपायन को पढाया। वैशम्पायन ने याज्ञवल्क्य को वह पढ़ाया। गुरू-शिष्य के झगड़े में वैशम्पायन ने क्रुद्ध होकर याज्ञवल्क्य से अपना ज्ञान वापिस मांग लिया। अहंकारी याबल्क्य ने उसका वमन किया, जिसका चयन वैशंपायन के अन्य शिष्यों ने तित्तिरी पक्षियों के रूप में किया। इसलिये उस वेद संहिता का नाम तैत्तिरीय संहिता कहा गया। पुरानी विद्या का वमन करने पर याज्ञवल्क्य ने नवीन वेदविद्या की प्राप्ति के लिए सूर्य भगवान की आराधना की। प्रसन्न होकर सूर्य ने वाजी (घोडा) का रूप लेकर याज्ञवल्क्य को नई संहिता प्रदान की। इसी नई संहिता का नाम है शुक्ल यजुर्वेद । यह संहिता “वाजी' द्वारा प्राप्त होने के कारण इसे "वाजसनेयी' संज्ञा दी जाती है। इस वाजसनेयी संहिता के दो संस्करण आज मिलते है। प्रो. वेबर ने दोनों संस्करणों का संकलन किया है। वाजसनेयी संहिता में 40 अध्याय, 303 अनुवाक्, 1975 कण्डिकाएं 29625 शब्द और 88875 अक्षर संगृहीत हैं। प्रारंभ के 25 अध्यायों में महान् यज्ञों में आवश्यक मंत्रमय प्रार्थनाएं है। वैदिक धर्म के कर्मकाण्ड में अन्तर्भूत विविध विषयों का चयन इस संहिता में हुआ है। काण्व संहिता : शुक्ल यजुर्वेद की इस संहिता में 40 अध्याय, 338 अनुवाक् और 2086 मंत्र हैं। इस संहिता का पांचरात्र संहिता से विशेष संबंध है। पहले यह शाखा उत्तर भारत में थी, परंतु आज वह केवल महाराष्ट्र में ही विद्यमान है। काठक संहिता : इस संहिता के पांच खंड हैं : (1) इठिमिका, (2) मध्यमिका, (3) ओरमिका, (4) याज्यानुवाक्या, (5) अश्वमेधाद्यनुवचन। इन पांच खंडों में 40 स्थानक, 113 अनुवचन, 843 अनुवाक् और 3091 मंत्र है। कठकपिष्ठल संहिता : यह संहिता अपूर्ण मिलती है। इसके प्रथम अष्टक में 8 अध्याय हैं। द्वितीय और तृतीय अध्याय खंडित हैं। चतर्थ. पंचम एवं षष्ठ अध्यायों के मंत्र-तंत्र खंडित हैं। बाकी अष्टकों के अध्यायों की संख्या अनिश्चित है। काठक संहिता से यह संहिता अनेक विषयों में विभिन्न सी है। कालाप (मैत्रायणी) संहिता : इस गद्य-पद्यात्मक संहिता में चार कांड हैं, जिनके प्रपाठकों की संख्या इस प्रकार है : कांड-1 प्रपाठक : 11, कांड- 2-प्र. 13, कांड- 3-प्र.-16, कांड 4-प्र.-14। इस संहिता में कुल 3144 मंत्र हैं, जिनमें 1701 ऋग्वेद की ऋचाएं है। चातुर्मास्य, वाजपेय, अश्वमेध, राजसूय, सौत्रामणि इत्यादि यज्ञों के विधि और मंत्र इस संहिता में मिलते हैं। तैत्तिरीय (आपस्तंब) संहिता : इसमें 7 कांड, 44 प्रपाठक और 631 अनुवाक् हैं। इसमें भी राजसूय, याजमान, पौरोडाश इत्यादि यज्ञों के वर्णन मिलते हैं। कृष्ण यजुर्वेदी परंपरा __ भगवान व्यास से यजुर्वेद का ग्रहण करने पर वैशंपायन ने अपनी संहिता की 27 शाखाएं की और आलंबी, चरक आदि अपने शिष्यों को उसका प्रदान किया। आगे चल कर उन 27 शाखाओं का विस्तार 86 शाखाओं में हुआ, जिनमें से आज काठक, कपिष्ठल और मैत्रायणी ये तीन ही संहिताएं यत्र तत्र विद्यमान हैं। वैशम्पायन से झगड़ा होने पर उसके शिष्य याज्ञवल्क्य ने सूर्यदेवता से जो वाजसनेयी अथवा शुक्ल यजुर्वेद की संहिता प्राप्त की, उसकी 67 उपशाखाएं हैं, जिनमें से 15 प्रमुख मानी जाती है। महाभारत के शांतिपर्व में अध्वर्युवेद (यजुर्वेद) की 101 शाखाएं बताई हैं। वह संख्या कृष्ण यजुर्वेद की काठक, कपिष्ठल और मैत्रायणी संहिताएं तथा मैत्रायणी ब्राह्मण, मैत्रायणी सूत्र, मानवसूत्र और वराहसूत्र यह संबंधित ग्रंथ प्रथम जर्मनी में मुद्रित हुए। अब वे भारत में भी मुद्रित हो चुके हैं। शुक्ल यजुर्वेदी परंपरा याज्ञवल्क्य द्वारा प्रवर्तित शुक्ल यजुर्वेद की 67 शाखोपशाखाओं में 15 भेद हैं। उनमें काण्व और माध्यंदिन संहिता को और कात्यायन तथा पारस्कर सूत्रों को विशेष महत्व है। काण्व शाखीय ब्राह्मण संपूर्ण भारत में मिलते है, अतः उन में द्रविड (दाक्षिणात्य) काण्व और गौड (औत्तराह) काण्व इस प्रकार भेद माने जाते हैं। आज के वैदिक ब्राह्मण समाज में जो अन्यान्य शाखाएं और उपशाखाएं मिलती हैं, उनका मूल वेदों की शाखोपशाखाओं में ही है। 5 सामवेद संहिता यज्ञ में तीसरे ऋत्विक् को उद्गाता कहते हैं। इस उद्गाता के लिए चयन किए हुए मंत्रसंग्रह का नाम ही सामवेद है। यज्ञ के समय जिस देवता के लिए हवन किया जाता है, उसका आवाहन उचित स्वरों में मंत्रों को गाते हुए "उद्गाता' ऋत्विक् को करना होता है। इस मंत्रगान को ही "साम'' कहते हैं। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड/13 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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