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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 24) भूपालकवि (ई. 11 वीं शती) जिनचतुर्विंशतिका। 25) आचार्यहेमचन्द्र (ई. 12 वीं शती) (क) वीतरागस्तोत्र (ख) महादेवस्तोत्र (ग) महावीरस्तोत्र । 26) जिनवल्लभसूरि (ई. 12 वीं शती) भवादिवारण, 2) अजितशान्तिस्तव इत्यादि। 27) आशाधर (ई. 13 वीं शती) सिद्धगुणस्तोत्र।। 28) जिनप्रभूसरि (ई. 13 वीं शती) सिद्धान्तागमस्तव, अजितशान्तिस्तवन इत्यादि। 29) महामात्यवस्तुपाल (ई. 13 वीं शती) अंबिकास्तवन । 30) पद्यनन्दिभट्टारक - रावणपार्श्वनाथस्तोत्र, शान्तिजिनस्तोत्र, वीतरागस्तोत्र । 31) मुनिसुन्दर - स्तोत्ररत्नकोश। 32) भानुचन्द्रगणि - सूर्यसहस्रनामस्तोत्र । _ इस नामावली से जैन स्तोत्रों के बहिरंग स्वरूप की कल्पना आ सकती है। जैनस्तोत्रसमुच्चय, जैनस्तोत्रसन्दोह, इत्यादि संग्रहात्मक ग्रन्थो में अनेक जैनस्तोत्र प्रकाशित हुए हैं। कृष्णमिश्र के प्रबोध चन्द्रोदय नाटक से रूपकात्मक या प्रतीकात्मक नाटकों की प्रणाली जैसे संस्कृत नाट्यक्षेत्र में निर्माण हुई उसी पद्धति के अनुसार जैनविद्वान पद्मसुन्दर (अकबर के समकालीन) ने ज्ञानचन्द्रोदय, तथा वादिचन्द्र ने ज्ञानसूर्योदय, मेघविजयगणि ने युक्तिप्रबोध, जैसे नाटक लिखकर, उन के द्वारा जैनमत का प्रतिपादन किया है। साहित्य के विविध प्रकारों द्वारा जैन विचारधारा का प्रतिपादन करने के प्रयत्नों में दृश्यकाव्य या नाटक का भी उपयोग प्रतिभाशाली जैन साहित्यिकों ने किया है। यशश्चन्द्र के मुद्रित कुमुदचन्द्र नाटक में पांच अंकों में जैन न्याय ग्रंथों में बहुचर्चित स्त्रीमुक्ति का विषय छेड़ा गया है। धर्मशर्माभ्युदय, शर्मामृत जैसे छायानाटकों तथा मोहराजपराजय का भी इस प्रकार के जैन नाटकों में निर्देश करना उचित होगा। 6 बौद्ध वाङ्मय बौद्ध धर्म विषयक वाङ्मय को ही बौद्ध वाङ्मय कहा जा सकता है। जैसे वैदिक धर्म विषयक वाङमय के विभिन्न प्रकार वैदिक संस्कृत भाषा में निर्माण हुए, उसी प्रकार बौद्ध धर्म से संबंधित विविध प्रकार का वाङ्मय निर्माण हुआ और उसे "बौद्ध वाङमय" संज्ञा आलोचकों ने दी। प्रारंभ में यह वाङ्मय पाली भाषा में विकसित हुआ। बौद्धों के “त्रिपिटक" पाली भाषा में ही निर्माण हुए और श्रीलंका, ब्रह्मदेश इत्यादि भारत के बाहर वाले देशों में भी उन्हें मान्यता प्राप्त हुई। बौद्ध मत के हीनयान और महायान नामक दो प्रमुख संप्रदाय निर्माण हुए। महायान संप्रदाय में संस्कृत भाषा का उपयोग होने लगा। ईसा की दूसरी और तीसरी सदी में संस्कृत भाषा का महत्त्व सर्वत्र अधिक मात्रा में बढ़ने लगा। संस्कृत भाषा के वर्धिष्णु प्रभाव के कारण महायानी बौद्ध विद्वानों ने भी संस्कृत में ग्रंथरचना का आरंभ किया। उनके बहुत से ग्रंथ "संकरात्मक संस्कृत भाषा" में निर्माण हुए। बौद्ध संप्रदाय के ग्रंथों में ई. 2 री शती का महावस्तु नामक हीनयान संप्रदाय का प्रसिद्ध विनयग्रंथ है, जिस में बोधिसत्व की दशभूमि का तथा भगवान बुद्ध के चरित्र का प्रतिपादन, संस्कारात्मक मिश्र संस्कृत में हुआ है। शुद्ध संस्कृत भाषा में बौद्ध धर्मविषयक साहित्य निर्मित करने वालों में अश्वघोष प्रभृति महायान कवियों एवं दार्शनिकों का योगदान महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त बौद्ध 'संकर संस्कृत' (नामान्तर गाथा संस्कृत, बौद्ध संस्कृत या मिश्र संस्कृत) भाषा में बौद्ध वाङ्मय निर्माण हुआ। मध्य भारतीय आर्य भाषाओं के उपर, संस्कृत के आरोपण तथा संस्कृत की विशेषताओं के समावेश से इस बौद्ध संकर-संस्कृत भाषा का प्रादुर्भाव हुआ। इसके मूल में प्राकृत प्रयोग का परित्याग तथा संस्कृत स्वीकार का प्रयास दिखाई देता है। एजर्टन जैसे भाषा वैज्ञानिक इस भाषा का पृथक् अस्तित्व मानते हैं, तो लुई रेनो आदि विद्वान इसे संस्कृत ही मानते हैं। ब्राह्मण एवं श्रमण संस्कृति का समन्वय इस भाषा के मिश्र स्वरूप में प्रकट होता है। इस मिश्र संस्कृत भाषा में उपलब्ध कतिपय रचनाओं का प्रारंभ काल ईसा की प्रथम शती से भी पूर्व माना जाता है। मिश्र संस्कृत की कृतियाँ प्रायः गद्यपद्यमयी हैं जिन में गद्य भाग बहुधा संस्कृत में एवं पद्य भाग (गाथा) तत्कालीन मध्यभारतीय भाषाओं में रचित है। गद्यसंस्कृत में बौद्ध संप्रदाय के परम्परागत पारिभाषिक शब्द विद्यमान हैं। शुद्ध संस्कृत में इन शब्दों का परिभाषिक अर्थ में प्रयोग नहीं हुआ। इन मिश्र संस्कृत में रचित ग्रंथों में महावस्तु, ललितविस्तार, सद्धर्मपुण्डरीक, जातकमाला, अवदानशतक, दिव्यावदान आदि ग्रंथ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। कालिदासादि संस्कृत कवियों की परम्परा में शृंगारिकता को प्रधानता दी गई है। बौद्ध संस्कृत काव्यों में शान्त रस को अग्रस्थान दिया गया है। अश्वघोष के दोनों महाकाव्यों में संभोग एवं विप्रलंभ शृंगार का दर्शन होता है परंतु वह शृंगार, काव्य में शांतरस के प्रवाह में प्रवाहित होता है। शांतरस और करुणा, त्याग, दया जैसे उदात भावों का प्राधान्य बौद्ध काव्यों की अनोखी विशेषता है। महायान संप्रदाय का ललितविस्तर नामक ग्रंथ (जिसमें भगवान् बुद्ध की लीलाओ का वर्णन किया है।) संस्कृत वाङ्मय कोश-ग्रंथकार खण्ड/199 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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