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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवं तत्त्वचिन्तामणि के कुछ अंश की टीका) उनकी वैशिष्ट्यपूर्ण क्लिष्ट शैली के कारण प्रसिद्ध है। गदाधर भट्टाचार्य ने लिखे हुए न्यायशास्त्र विषयक ग्रंथों की कुलसंख्या 52 है, जिनमें व्युत्पत्तिवाद और शक्तिवाद विशेष प्रसिद्ध हैं। उपनिर्दिष्ट प्रौढ पांडित्यपूर्ण टीकात्मक ग्रंथों के कारण न्यायशास्त्र में जो दुर्बोधता निर्माण हुई थी, उससे मुक्त कुछ सुबोध ग्रंथ लिखे गये, जिनमें विश्वनाथ न्यायपंचायनन कृत भाषापरिच्छेद, केशव मिश्र कृत तर्कभाषा, और अन्नंभट्ट कृत तर्कसंग्रह सर्वत्र प्रचलित हैं। तर्कसंग्रह पर रुद्रराम, नीलकण्ठ, महादेव पुणतामकर आदि की टीकाएँ प्रसिद्ध हैं। केशवमिश्रकृत तर्कभाषापर 14 टीकाएँ लिखी गयी है, जिनमें नागेशकृत युक्तिमुक्तावली, विश्वकर्मकृत न्यायप्रदीप जैसी कुछ लोकप्रिय हैं। डॉ. सतीशचन्द्र विद्याभूषण ने अपने "हिस्ट्री ऑफ इंडियन लॉजिक" नामक ग्रंथ में अर्वाचीन काल के कुछ प्रसिद्ध नैयायिकों के ग्रन्थों का परामर्श किया है, जिनमें 17-18 वीं शताब्दी के लेखकों में हरिराम तर्कसिद्धान्त, कृष्णानन्द वाचस्पति, जगन्नाथ तर्कपंचानन, राधामोहन गोस्वामी, कृष्णकान्त, हरिराम, गंगाराम जडी (जगदीश कृत तर्कामृत के टीकाकार), कृष्णभट्ट आर्डे (गादाधारी के टीकाकार) रामनारायण, रामनाथ इत्यादि विद्वानों के नाम उल्लेखनीय हैं। 19 और 20 वीं शताब्दी में भी यह परंपरा शंकर, शिवनाथ, कृष्णनाथ, श्रीराम, माधव, हरमोहन, प्रसन्नतर्करत्न, राखालदास न्यायरत्न, कैलाशचन्द्र शिरोमणि, सीतारामशास्त्री, धर्मदत्त, बच्चा झा, वामाचरण भट्टाचार्य, बालकृष्ण मिश्र, शंकर तर्करत्न, इत्यादि प्रख्यात नैयायिकों ने अखंडित रखी है। गंगेशोपाध्याय से लेकर प्राचीन न्याय की परंपरा खंडित होकर नव्यन्याय का प्रारंभ हुआ, जिसका आधारभूत ग्रंथ तत्त्वचिन्तामणि करीब 300 पृष्ठों का है परंतु उस पर लिखे गये भाष्यात्मक ग्रंथों की पृष्ठसंख्या दस लाख से अधिक मानी जाती है। ई. पू. चौथी शती से ई. 17 वीं शती तक के प्रदीर्घ कालखंड में न्यायशास्त्र पर लिखे गये प्रमुख ग्रंथों की संख्या 20 या 25 से अधिक नहीं परंतु उनमें चर्चित विचारों में जो सूक्ष्मता और गहनता है, वह सर्वथा आश्चर्यकारक है। भारतीय विचारों की व्यापकता रामायण-महाभारत और भागवत में मिलती है। उनकी सूक्ष्मता और गहनता न्यायशास्त्र के प्रमुख ग्रंथों में दीखती है। गंगेशोपाध्याय (ई. 13 वीं शती) से प्रवर्तित नव्यन्याय की परंपरा 16 वीं शती तक मिथिला में प्रभावी थी। मिथिला के पंडित वहाँ के न्याय ग्रंथों को अपने क्षेत्र के बाहर नहीं जाने देते थे। 14 वीं शती में बंगाल के सुप्रसिद्ध नैयायिक वासुदेव सार्वभौम ने जयदेव (या पक्षधर) मिश्र के पास अध्ययन करते हुए तत्त्वचिन्तामणि और न्याय-कुसुमांजलि ये दो ग्रंथ कंठस्थ किये और काशी में रह कर उनका लेखन किया। बाद में नवद्वीप में लौटकर न्यायशास्त्र के अध्ययन के लिए अपने निजी विद्यापीठ की स्थापना की। तब से न्यायशास्त्र की मैथिल शाखा खंडित होकर, नवद्वीप शाखा प्रचलित हुई। 16 वीं शती से इस शाखा के अनेक प्रसिद्ध नैयायिकों ने पांडित्यपूर्ण ग्रंथों की रचना की। यथा रधुनाथ शिरोमणि (वासुदेव सार्वभौम के शिष्य) 16-17 वीं शती।। ग्रंथ - तत्त्वचिंतामणिदीधिति, बौद्धधिक्कार, शिरोमणि, पदार्थतत्त्वनिरूपण, किरणावलि-प्रकाशदीपिका, न्यायलीलावती, प्रकाशदीधिति, अवच्छेदकत्वनिरुक्ति, खण्डनखण्डखाद्यदीधिति, आख्यातवाद नवाद (कुल 9 ग्रंथ)। . हरिदास न्यायालंकार भट्टाचार्य : (वासुदेव सार्वभौम के शिष्य)- 16-17 वीं शती। ग्रंथ - न्यायकुसुमांजलि-कारिका-व्याख्या, तत्वचिन्तामणि प्रकाश, भाष्यालोकटिप्पणी। जानकीनाथ शर्मा : 16-17 वीं शती। ग्रंथ - न्यायसिद्धान्तमंजरी । कणादतर्कवागीश : 17 वीं शती। ग्रन्थ - मणिव्याख्या, भाषारत्न, अपशब्दखंडन । रामकृष्ण भट्टाचार्य चक्रवर्ती : (रघुनाथ शिरोमणि के पुत्र) : 17 वीं शती । ग्रन्थ - गुणशिरोमणि-प्रकाश, न्यायदीपिका। मथुरानाथ तर्कवागीश : (रघुनाथ के पुत्र) : 17 वीं शती। इनके द्वारा लिखित कुल 10 ग्रन्थों में आयुर्वेदभावना के अतिरिक्त अन्य सारे ग्रंथ न्यायशास्त्र विषयक हैं - तत्वचिन्तामणिरहस्य, तत्वचिन्तामणि-अलोकरहस्य, दीधितिरहस्य, सिद्धान्तरहस्त, किरणावलिप्रकाश-रहस्य, न्यायलीलावतीरहस्य, बौद्धधिक्काररहस्य और क्रियाविवेक आदि। कृष्णदास सार्वभौम भट्टाचार्य : 17 वीं शती। ग्रंथ - तत्त्वचिन्तामणिदीधिति-प्रसारिणी, अनुमानालोकप्रसारिणी। गुणानन्द विद्यावागीश : 17 वीं शती। ग्रंथ - अनुमान-दीधिति-विवेक, आत्मतत्त्वविवेक-दीधितिटीका, गुणविवृत्तिविवेक, न्यायकुसुमांजलि-विवेक, न्यायलीलावती-प्रकाश-दीधिति-विवेक और शब्दालोकविवेक। कुल 6 ग्रंथ। रामभद्रसार्वभौम : 17 वीं शती। ग्रंथ - दीधितिटीका, न्यायरहस्य, गुणरहस्य, न्यायकुसुमांजलि-कारिका-व्याख्या, पदार्थविवेक-प्रकाश, षट्चक्रकर्म-दीपिका। (कुल 6 ग्रंथ।) जगदीश तर्कालंकार : 17 वीं शती । ग्रंथ- तत्त्वचिन्तामणि-दीधिति-प्रकाशिका (जागदीशी नाम से प्रसिद्ध), तत्त्वचिन्तामणि-मयूख, न्यायादर्श (न्यायसारावलि) शब्दशक्तिप्रकाशिका, तर्कामृत, पदार्थ-तत्वनिर्णय, न्यायलीलावती-दीधिति-व्याख्या। (कुल 7 ग्रंथ ।) रुद्रन्यायवाचस्पति : 17 वीं शती। ग्रंथ - तत्त्वचिन्तामणि दीधिति-परीक्षा । 132 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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