SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहुत ही कुपित हुए। olutial के समय तुम सब को लोग मेरी स्तुति ही व घटोत्कच ने अपना माया जाल फैला दिया। उसके मायाजाल के कारण सब कौरव सेना भाग जाने लगी। तब भीष्माचार्य पुनः पांडव सैन्य का नाश करने लगे। भीमसेन आवेश से आगे बढ़ा। उसका धृतराष्ट्र के तेरह पुत्रों ने प्रतिरोध किया। कइयों का भीम ने वध किया। बाकी सारे भाग गये। भीष्म, भगदत्त और कृपाचार्य अर्जुन के साथ युद्ध करने लगे। उस युद्ध में दोनों पक्ष के कई हाथियों, घोडों, रथों और पदातियों का संहार हुआ। सूर्यास्त होने पर भी कुछ समय तक युद्ध चालू ही रहा । तब बुद्ध स्थगित किया गया और दोनों सैन्य अपने अपने शिबिर में चले गये। उस रात में दुर्योधन, दुःशासन, शकुनि और कर्ण इन चारों ने "पाण्डवों का नाश कैसे हो इस पर विचार करना शुरु कर दिया। कर्ण ने कहा, दुर्योधन, भीष्माचार्य का आंतरिक आकर्षण पांडवों की ओर है। वे तहे दिल से युद्ध नहीं कर रहे हैं। तू उन्हें शस्त्र नीचे रखने कह दे। मैं पाण्डवों का संहार कर देता हूँ। दुर्योधन ने जाकर भीष्माचार्य को वही कहा। सुन कर वे बहुत ही कुपित हुए। क्रोधावेश में विशेष कुछ न कह कर उन्होंने इतना ही कहा कि, "विराट नगरी में जब अर्जुन ने सबके वस्त्र हरण लिये थे, घोषयात्रा के समय तुम सब को कैदी बना के गंधर्व ले जाने लगे, उस समय कर्ण का बल पौरुष कहाँ गया था? कल मै वह पौरुष प्रकट करूंगा कि सब लोग मेरी स्तुति ही करेंगे। लेकिन मै शिखंडी को नहीं मारूंगा। वह जन्म से स्त्री था। बाद में किसी यक्ष की कृपा से उसे पुरुषत्व प्राप्त हुआ है। इसलिये उस पर मै तोर नहीं चलाऊंगा।" वह सुन कर दुर्योधन अपने स्थान आ कर सो गया। ९) नौंवे दिन भीष्माचार्य ने अपनी सेना को सर्वतोभद्र व्यूह में आबद्ध किया। इधर पांडवों ने महाव्यूह की रचना की। उस दिन भीष्म ने अपूर्व पराक्रम दिखाया। उनके सामने खडा होने की किसी की हिम्मत नहीं पड़ती। पांडवों की सेना भागने लगी। वह देख कर कृष्ण ने अर्जुन के रथ को भीष्म के रथ के सामने ला खडा कर दिया। भीष्म और अर्जुन के बीच घोर युद्ध प्रारंभ हुआ। भीष्म के सामने अर्जुन के पौरुष को अधूरा देख कर श्रीकृष्ण ने घोडों कि लगाम छोड कर हाथ में सुदर्शन चक्र धारण किया और वे भीष्म को मारने दौड पडे। तब कौरवों की सेना में अजीब तहलका मच गया। इतने में अर्जुन दौडता आ पहुँचा। उसने श्रीकृष्ण के चरणों में सिर नवा कर उनसे प्रार्थना की कि, “आप शस्त्र धारण न करने की प्रतिज्ञा का भंग मत किजिये। मैं भीष्म को परास्त करता हूँ।" तब फिर श्रीकृष्ण और अर्जुन रथ पर आरूढ हुए और युद्ध चालू हुआ। भीष्म के अद्भुत आवेश के कारण पांडव सैन्य भाग जाने लगा। उस दिन पांडव सैन्य का भारी विध्वंस हो जाने के कारण शिबिर पहुंचते ही धर्मराज ने बडे ही दुःख के साथ श्रीकृष्ण से कहा, "मै यह युद्ध नहीं चाहता और राज्य भी नहीं चाहता। मै अब अरण्य में जाकर अपने देह का सार्थक करूंगा। भीष्म पितामह से लड़ कर व्यर्थ जान देने की अपेक्षा तपश्चर्या करना लाख गुना अच्छा है।" श्रीकृष्ण बोले, "तुम मुझे आज्ञा दो, मै कल ही भीष्माचार्य का वध करवाता है।" लेकिन धर्मराज ने उस बात को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने कहा भीष्म ने मुझे पहले ही दिन बताया है कि तू फिर कभी आ। मुझे जीतने का उपाय मै तुझे बताऊँगा। तदनुसार हम अब भीष्म के पास चले जाएं। धर्मराज की बात मान कर वे सब भीष्माचार्य के पास चले गए। भीष्म ने उन सबका बडे आनंद से आगत स्वागत किया। धर्मराज ने भीष्म से उनके पराजय की युक्ति पूछी। भीष्म ने बताया, तुम शिखंडी को आगे कर के लडो। मै उसका मुंह भी नहीं देखगा। क्यों कि वह जन्म से स्त्री है। उसके पीछे रह कर अर्जन मा पर तीर चलाएं। तब मै अपना जीवनकार्य समाप्त कर दूंगा।" 10) दसवें दिन धर्मराजा के आदेशानुसार अर्जुन ने शिखण्डी को आगे कर के भीष्माचार्य पर इतने तीर चालए कि उनका शरीर छिन्न विच्छिन्न हो गया। भीष्म उन तीरों के सहित रथ से नीचे गिर पडे। देवों ने उन पर पुष्पवर्षा की। उनके गिरते गिरते सूर्य दक्षिण की तरफ झुक गया। यह बात उनके ध्यान में आ गयी। इसलिये उत्तरायण के प्रारंभ होने तक वे तीरों की शय्या पर वैसे ही लेटे रहे। भीष्म के गिर पड़ते ही युद्ध को स्थगित करके दोनों दलों के वीर भीष्माचार्य के पास बद्धांजलि हो कर खडे रहे। उनका स्वागत करके भीष्म ने कहा, "मेरा मस्तक लटक रहा है। उसे आधार चाहिए।" वह सुन कर बहुतेरे नरम नरम तकिये ले आये। वह देख कर भीष्म हंसे। उन्होंने अर्जुन की तरफ देखा। भीष्मजी का अभिप्राय ध्यान में ले कर अर्जुन ने तीन तीर इस ढंग से छोडे की उनका एक तकिया ही लग गया। उससे भीष्म के लटकते मस्तक को आधार मिल गया। भीष्मजी की सुरक्षा कर देने के बाद सभी उनका आदेश लेकर भारी दुःख के साथ अपने अपने स्थान चले गये। दूसरे दिन सबेरे ही सब लोगों के पहुँचते ही भीष्म ने उनसे जल मांगा। कइयों ने उनके सामने खाने की चीजें और जल के कलश रखे। भीष्माचार्य ने जल देने अर्जुन से कहा। अर्जुन ने धरती में तीर चलाकर अमृत जैसा मधुर और सुगंधित जल का निर्झर खिंचवा लिया और भीष्माचार्य की प्यास बुझा कर उन्हें तृप्त किया। भीष्मजी ने अर्जुन की स्तुति की और दुर्योधन से कहा, "देख लिया तुमने अर्जुन का पराक्रम? पाण्डवों को जीतना संभव नहीं है। उनसे बैर छोड दो उन्हें उनका आधा राज दे कर, सुख से दिन बिताओ।" लेकिन यह बात दुर्योधन को नही जंची। बाद में सब लोगों के अपने अपने संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 105 For Private and Personal Use Only
SR No.020649
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages591
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy