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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 948 ) वियक्त स्त्री, गुरुनिःश्वसितैः कविर्मनीषी निरणषीदथ / विरतिः (स्त्री० [वि.+रम्+क्तिन् ] 1. बन्द करना, तां वियोगिनीति - भामि० 4 / 35 2. एक छन्द या | ठहरना, रोकना 2. विश्राम, अवसान, यति 3. सांसावृत्त का नाम (दे० परि०१)। रिक वासनाओं के प्रति उदासीनता भर्त० 379 / वियोजित (भू० क० कृ०) [वि--युज+णिच्+क्त | विरमः [ बि+रम्+अप्] 1. रोक, थाम 2. सूर्य का 1. अलगाया हुआ 2. जुदा किया हुआ, वञ्चित / | छिपना। वियोनिः,-नी [विविधा विरुद्धा वा योनिः प्रा० स० विरल (वि.) [ वि+रा- कलन् ] 1. छिद्रों से युक्त, 1. नाना जन्म 2. पशुओं का गर्भाशय (मनु० 12177 जिसके बीच में अन्तराल हों, पतला, जो सघन न हो, पर कुल्ल०) 3. हीन या कलंकपूर्ण जन्म / सटा हुआ न हो विपर्यासं यातो घनविरलभावः विरक्त (भू० क० कृ०) [वि+रंज+क्त| 1. बहुत लाल, क्षितिरुहाम्-- उत्तर० 2 / 27, भवति विरलभक्ति लालिमा से युक्त-रघु० 13 / 64 2. बदरंग 3. अनु- म्लान पुष्पोपहारः रघु० 5/74 2. पतला, कोमल रागहीन, स्नेहशून्य, अप्रसन्न-भत० 2 / 2 4. सांसारिक 3. ढीला, विस्तृत 4. निराला, दुर्लभ, अनुठा,-पंच० राग या लालसा से मुक्त, उदासीन 5. आवेश पूर्ण / श२९ 5. कम, थोड़ा (संख्या या परिमाण संबंधी) विरक्तिः (स्त्री० [वि+र+क्तिन] 1. चित्तवृत्ति में -तत्त्वं किमपि काव्यानां जानाति विरलो भुवि-भामि० परिवर्तन, असन्तोष, असंतृप्ति, स्नेहशून्यता 2. अलगाव 11117, विरला तपच्छविः-शि० 9 / 3 6. दूरवर्ती, 3. उदासीनता, इच्छा का अभाव, सांसारिक लालसा दूरस्थ, लम्बा (समय या दूरी आदि),-लम् दही, या आसक्तियों से मुक्त। जमाया हुआ दूध, लम् (अव्य०) कठिनाई से, विरचनम्ना [वि+र+ल्युट्] 1. क्रम व्यवस्थापन कभी कभी, जो बहुतायत से न हो, नहीं के बराबर / ---शि० 5 / 21 2. रचना करना, संरचन 3. निर्माण सम० जानुक (वि०) धनः पदी, जिसके घुटनों करना, सजन करना 4. साहित्य-रचना करना, संकलन में अधिक दूरी हो,-द्रवा, एक प्रकार की लपसी। करना। विरस (वि०) [विगतः रसो यस्य प्रा० ब०] 1. स्वादविरचित (भू० क० कृ०) [वि--रच् +क्त] 1. क्रम से रहित, फीका, नीरस 2. अप्रिय, अरुचिकर, पीडाकर रक्खा गया, बनाया गया, निर्मित, तैयार किया गया तावत्कोकिल विरसान यापय दिवसान बनान्तरे निव2. घटित किया हुआ, संरचना किया हुआ 3. लिखा सन् -भामि०१७ 3. क्रूर, निर्दय,-स: पीडा। हआ, साहित्य-सृजन किया हुआ 4. काट-छांट किया | विरहः [ वि+रह+अच ] 1. बिछोह, वियोग 2. विशेगया, संवारा गया, परिष्कृत किया गया, बनाव-सिंगार षतः प्रेमियों की जुदाई-सा विरहे तव दीना गीत. किया गया 5. धारण किया गया, पहनाया गया 4, क्षणमपि विरहः पुरा न सेहे तदेव, मेघ० 8, 6. जड़ा गया, बैठाया गया। 12, 29, 85, 87 3. अनुपस्थिति 4. अभाव 5. उजविरज (वि.) [विगतं रजो यस्मात्---प्रा० ब० ] ड़ना, परित्याग, छोड़ देना। सम० अनलः वियोजिस पर धूल या गर्द न हो, जिसमें राग न हो,-जः गाग्नि,-अवस्था वियोगदशा, आर्त, उत्कण्ठ, विष्णु का विशेषण। ---उत्सुक (वि०) वियोग का कष्ट भोगने वाला, विरजस्, विरजस्क (वि.) [ विगतं रजः यस्मात् यस्य बिछोह के कारण दुःखी, उत्कण्ठिता वह स्त्री जो वा प्रा० ब०] 1. जिस पर धूल न पड़ी हो, राग अपने पति या प्रेमी के वियोग से दु:खी है, काव्यग्रंथों रहित शि० 2080 2. जिसका रजोधर्म आना बंद में वर्णित एक नायिका दे० सा० द० 121, हो गया हो। ... ज्वरः वियोग की वेदना या ज्वर।। विरजस्का [ विरजस् / कप+टाप] वह स्त्री जिसको विरहिणी | विरहन +डीष ] 1. अपने पति या प्रेमी से रजोधर्म आना बन्द हो गया हो। वियुक्त स्त्री 2. मजदूरी, भाड़ा। विरंचः, चिः [ वि+रच्-+-अच, इन् वा, मुम् ] ब्रह्मा / | विरहित (भू० क० कृ०) [वि+रह+क्त ] 1. छोड़ा विरटः (पुं०) एक प्रकार का काला अगुरु, अगर का हुआ, परित्यक्त, त्यागा हुआ 2. वियुक्त 3. अकेला, वृक्ष / एकाकी 4. हीन, शून्य, मुक्त (बहुधा समास में)। विरणम् [ विशिष्टो रणो मूलं यस्य-प्रा० ब०] एक विरहिन् (वि०) (स्त्री० -विरहिणी) [विरह+इनि ] प्रकार का सुगन्धित घास, तु० वीरण। अनुपस्थित, अपनी प्रेयसी या प्रेमी से वियुक्त होने विरत [वि+रम् + क्त ] 1. बन्द किया हुआ, रुका वाला, नृत्यति युवतिजनेन समं सखि विरहिजनस्य हुआ (अपा० के साथ) 2. विश्रान्त, थका हुआ, दुरन्ते. गीत०१। ठहरा हुआ 3. समाप्त, उपसंहृत, समाप्ति पर विरतं | विरागः [ वि- रज--घञ्] 1 रंग का बदलना गेयमनिरुत्सवः रघु० 8 / 66 / 2. वृत्तिपरिवर्तन, स्नेहाभाव, असन्तृप्ति असन्तोष,---- EHOnline For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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