________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 777 ) रघु० 12183 2. आवास, रहने का घर ...यथा क्षीरा- मय (वि०) (स्त्री०-यी) 'पूर्ण' से यक्त' संरचित' 'से धिमंदिर में 3. नगर 4. शिविर 5. देवालय / सम० बना हुआ' अर्थ को प्रकट करने वाला तद्धित का --पशः बिल्ली मणिः शिव का विशेषण / प्रत्यय, उदा० कनकमय, काष्ठमय, तेजोमय और जलमंदिरा | मंदिर टाप् ] घुड़साल, अस्तबल / मय आदि, यः 1. एक दानव, दानवों का शिल्पी मंदुरा [ मन्द + उरच्+टाप् ] 1. अश्वशाला, घुड़साल (कहते है कि इसने पांडवों के लिए एक भव्य भवन अस्तबल-प्रभ्रष्टोऽयं प्लवंगः प्रविशति नपतेर्मदिरं मंदु- का निर्माण किया था 2. घोड़ा 3. ऊँट 4. खच्चर / रायाः रत्न० 2 / 2, रघु० 16041 2. शय्या, चटाई।। मयटः [ मय+अटन् ] घासफूस की झोपड़ी, पर्णशाला। मन्द्र (दि०) [ मन्+रक] 1. नीचा, गहरा, गंभीर, मय (यु) ष्टकः [ =मयष्टक, पुषो० साधु ] खोखला, चरमराना--पयोदमंद्रध्वनिना धरित्री-कि० | मयुः | मय+कु] 1. किन्नर, स्वर्गीय संगीतज्ञ 2. हरिण, 163, 7 / 22, मेघ० 99, रघु० ६५६,-द्रः बारहसिंगा। सम० . राजः कुबेर का विशेषण / 1. मन्दध्वनि 2. एक प्रकार का ढोल 3. एक प्रकार 1 मयूखः [ मा+ऊख मयादेशः ] 1. प्रकाश की किरण, का हाथी। रश्मि, अंशु, कांति, दीप्ति-विसृजति हिमगर्भरग्निमन्मथः [ मन्+क्विप, मथ+अच, प० त०] 1. काम- मिन्दुर्मयूखैः -- श० 3 / 2, रघु० 2 / 46, शि० 4 / 56, देव, प्रेम का देवता—मन्यथो मां मन्थनिज नाम कि० 5 / 5,8 2. सौन्दर्य 3. ज्वाला 4. धूपधड़ी सान्वयं करोति ---दश० 21, मेघ०७३ 2. प्रेम, प्रण- की कील। योन्माद --प्रबोध्यते सप्त इवाद्य मन्मथ: ऋतु मयूरः [ मी+ऊरन् ] 1. मोर -- स्मरति गिरिमयूर एष 118 इसी प्रकार 'परोक्षमन्मथः जनः'- श० 2018 देव्याः- उत्तर० 3120, फणी मयस्य तले निषींदति 3. कैथ / सम० आनंदः एक प्रकार का आम का -ऋतु० 1113 2. एक प्रकार का फूल 3. ('सूर्य पेड़-आलयः 1. आम का पेड़ 2. स्त्री की भग, शतक' का प्रणेता) एक कवि यस्याश्चोरश्चिकुर-- कर (वि०) प्रेमोत्तेजक,-युद्धम् प्रेमकेलि, संभोग, निकरः कर्णपूरो मयरः प्रसन्न श२२,--री मोरनी मथुन - लेखः प्रेम-पत्र-श० 3 / 26 / / ----सूक्ति बरं तत्कालोपनता तित्तिरीन पूनर्दिवसांमन्मनः (पुं०). गुप्त कानाफूसी (दंपत्योर्जल्पितम् मंदम् ) तरिता मयूरी विद्ध० 1, या- वर मद्य कपोतो न श्वो करोति सहकारस्य कलिकोकलिकोत्तर, मन्मनो मयूरः हाथ में आया एक पक्षी, झाड़ी में बैठे दो मन्मनोऽत्येष मतकोकिलनिस्वनः काव्या० 3 / 11 पक्षियों से अच्छा है' अर्थात् नौ नकद न तेरह उधार / 2. कामदेव। सम०. अरिः छिपकली,-केतुः कार्तिकेय का विशेषण, मन्युः [ मन् ।-युच ] 1. क्रोध, रोष, नाराजगी, कोप, ....ग्रीवकम् तूतिया, चटकः गृह कुक्कट-चूडा मोर गुस्सा -रधु० 2132, 49, 11 / 46 2. व्यथा, शोक, की शिखा, तुत्थम् तूतिया-पत्रिन् (वि०) पंखकष्ट, दुःख उत्तर० 4 / 3, कि० 1135, भट्रि० 3 / 49 यक्त, मोर के पंखों से युक्त (बाण आदि)-रघु० 3. विपद्ग्रस्त या दयनीय स्थिति, कमीनापन 4. यज्ञ | 3 / 56, रथः कार्तिकेय का विशेषण,-व्यंसकः चालाक 5. अग्नि का विशेषण 6. शिव का विशेषण / म- (भ्वा० पर० मभ्रति) जाना, हिलना-जुलना। मयूरकः [मयूर+कन्] मोर, ----कः,--कम् तूतिया, नीलामम [ अस्मद् शब्द-सर्वनाम उत्तमपुरूष-संव० ए० व.] / थोथा। मेरा / सग० कारः,—कृत्यम् मेरापन, ममता, मरकः [मृ+बुन्] महामारी, पशुओं का एक संक्रामक रोग, स्वार्थ / प्लेग प्रसारक रोग, संक्रामक रोग। ममता [ मम---तल-+टाप् ] 1. अपने मन की भावना, | मरकतम् मरकं तरत्यनेन-त+ड] पन्ना- वापी चामिन् स्वार्थ, स्वहित 2. घमंड, अभिमान, आत्मनिर्भरता मरकतशिलाबद्धसोपानमार्गा--मेघ० 76, शि० 3. व्यक्तित्व / 4156, ऋतु० 3 / 21, (कभी-कभी 'मरक्त' भी लिखा ममत्वम् [ मम / त्व ] 1. मेरापन, अपनापन, स्वामित्व की जाता है)। सम०- मणिः (पुं०, स्त्री०) पन्ना, भावना 2. स्नेहयुक्त आदर, अनुराग, मानना-कु० -- शिला पन्ने की सिल्ली। 1 / 12 3. अहंकार, घमंड / मरणम् [मृ+भावे ल्युट्] 1. मरना, मृत्यु-- मरणं प्रकृतिः ममापतालः | मव्य /आल, यलोपः, मकारादेशः, आप शरीरिणाम-रघु० 8 / 87 या-संभावितस्य चाकीतितुडागमः ] ज्ञानेन्द्रिय का विषय / मरणादतिरिच्यते--भग० 2134 2. एक प्रकार का मम्ब (भ्वा० पर०) जाना, हिलना-जुलना / विष / सम० अंत, अंतक (वि०) मत्य के साथ मम्मट: 'काव्यप्रकाश' का प्रणेता। समाप्त होने वाला,-अभिमुख,---उन्मुख (वि०) मय (भ्वा० आ० मयते) जाना, हिलना-जुलना। मृत्यु के निकट, मरणासन्न, म्रियमाण,--धर्मन् 356, रवा मार की शिखा / म ततिया, नीला 98 For Private and Personal Use Only