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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५७२ ) व्याहताः पंच पंचदश संपद्यते 3. बन जाना, होना संपत्स्यंते नभसि भवतो राजहंसाः सहायाः- मेघ० ११, २३, संपेदे श्रमसलिलोद्गमो विभूपाम्-कि. ७।५ 4. उदय होना, जन्म लेना, पैदा होना 5. एक जगह पड़ना, एकत्र होना 6. सुसज्जित होना, संपन्न होना, स्वामी होना-अशोक यदि सद्य एव कुसूमैन संपत्स्यसे--मालवि० ३।१६, दे० 'संपन्न' 7. (किसी ओर) प्रवृत्त होना, करवाना, पैदा करना (संप्र० के साथ)- साधो: शिक्षा गणाय संपद्यते नासाधोः -पंच० १, मुद्रा० ३।३२ 8. प्राप्त करना, उपलब्ध करना, अधिग्रहण करना, हासिल करना 9. संलग्न होना, लीन होना (अधि० के साथ)-(प्रेर०)--1. करवाना, होना, पैदा करना, सम्पन्न करना, पूरा करना, कार्यान्वित करना-इति स्वसुर्भोजकुलप्रदीप संपाद्य पाणिग्रहणं स राजा-रघु० ७।२९ 2. उपार्जन करना, प्राप्त करना, सज्जित करना, तैयार करना अधिग्रहण करना, हासिल करना 4. सज्जित करना, संपन्न करना युक्त करना 5. बदलना, रूपान्तरित करना, 6. करार या वादा करना, संप्रति-1. की ओर जाना, पहुँचना 2. विचार करना, खयाल करना-कु० ५।३९, समा 1. घटित होना, होना घटना होना 2. हासिल करना, प्राप्त करना, उपलब्ध करना । पद् (५०) [पद् +-क्विप] (इस शब्द का पहले पाँच वचनों में कोई रूप नहीं होता, कर्म० द्वि० व०, के पश्चात् विकल्प से यह पद के स्थान में आदेश हो जाता है) 1. पैर 2. चरण, चौथाई भाग (किसी कविता या श्लोक का)। सम-काशिन् (पुं०) पैदल चलने वाला, हतिः, ती (स्त्री०) (पद्धतिः;-ती) रास्ता, पथ, मार्ग, बटिया (आलं० भी) इयं हि रघु सिंहानां वौरचारित्रपद्धतिः --उत्तर० ५।२२, रघु० ४।४६, ६।५५, ११३८७, कविप्रथम पद्धतिम्-१५१३३, 'कवियों को दिखाया गया पहला मार्ग' 2. रेखा, पंक्ति, शृंखला 3. उपनाम, वंशनाम, उपाधि या विशेषण, व्यक्तिवाचक संज्ञा शब्दों के समास में प्रयुक्त होने वाला शब्द जो जाति या व्यवसाय का बोधक हो-उदा० गुप्त, दास, दत्त आदि 4. विवाहादि विधि को सूचित करने वाली पुस्तक,-हिमम् (पद्धिमम्) पैरों का ठंडापन । पदम [ पद्+अच् ] 1. पैर (इस अर्थ में पुं० भी होता है)। पदेन पैदल-शिखरिषु पदं न्यस्य--मेघ० १३, अयथे पदमर्पयति हि---रघु० ९१७४, 'कूमार्ग पर कदम रक्खा ' ३१५०, १२२५२, पदं हि सर्वत्र गुणनिधीयते--३।६२, 'गणों के द्वारा सर्वत्र कदम रक्खा जाता है--अर्थात् : गणों की ही कद्र होती है, जनपदे न गदः पदमादधी ---९।४ 'देश में किसी भी रोग ने कदम नहीं रक्खा ' .. यदवधि न पदं दधाति चित्ते---भामि०२।१४, पदं कृ (क) कदम रखना (शा०)---शांते करिष्यसि पदं पुनराश्रमेऽस्मिन्-श० ४।२५, (ख) प्रवृत्त होना, अधिकार करना, कब्जा करना, (आल०) कृतं वपुषि नवयौवनेन पदम्-का० १३७, कृतं हि मे कुतूहलेन प्रश्नावकाशया हृदि पदम् ---१३३, इसी प्रकार कु० ५।२१, पंच०२४०, कृत्वा पदं नो गले-मुद्रा० ३।२६, 'हमारे विरुद्ध' (शा०-अपना कदम हमारी गर्दन पर रखकर), मध्नि पदं कृ किसी के सिर पर चढ़ना, दीन बनाना--पंच० ११३२७, आकृति विशेषेप्वादरः पदं करोति--मालवि०१, सुन्दर रूप ध्यान आकृष्ट करता है (आदर प्राप्त करता है)-जने सखीपदं कारिता --श०४, (मित्रता या विश्वास का बर्ताव कराया गया, धर्मेण शर्वे पार्वती प्रति पदं कारिते-कू० ६।१४ 2. कदम, पग, डग -तन्वी स्थिता कतिचिदेव पदानि गत्वा श० २१२, पदे पदे हर कदम पर --अक्षमालामदत्त्वा पदात्पदमपि न गंतव्यम--या- चलितव्यम् "एक कदम भी मत चलो" पितः पदं मन्यममत्पतंती -विक्रम० १११९, 'विष्णु का बिचला कदम' अर्थात् अन्तरिक्ष (पौराणिक मतानुसार पृथ्वी, अन्तरिक्ष और पाताल यह तीनों लोक ही वामनावतार (पंचम अवतार) विष्णु के तीन कदम माने जाते है) इसी प्रकार -~~अथात्मनः शब्दगुणं गुणज्ञः पदं विमानेन विगाहमानः -रधु० १३.१ 3. पदचिह्न, पद--छाप, पदांक--पदपंक्तिः ----श० ३४८, या पदावली ----पगछाप, पदमनुविधेयं च महतां-भर्तृ० २।२८, 'महाजनों के पदचिह्नों पर ही चलना चाहिए' 4. चिह्न, अंक, छाप, निशान ---रतिवलयपदांके चापमासज्य कंठे-कु० ॥६४, मेघ० ३५, ९६, मालवि. ३ 5. स्थान, अबस्था, स्थिति अधोऽघः पदम् -.-भर्तृ० २०१०, आत्मा परिश्रमस्य पदमपनीतः-श० १, कप्ठ की अवस्था तक पहुंचाया'-- तदलब्धपदं हृदिशाकघन-रघु० ८।९१, 'हृदय में स्थान न पाया' (अर्थात हृदय पर छाप न छोड़ी),-अपदे शंकितोऽस्मि-मालवि० १, 'मेरे सन्देह स्थान से बाहर थे' अर्थात् निराधार--कृशकुटुबेपु लोभः पदमधत्त ... दश० १६२, कु०६।७२, ३।४, रघु० २।५०, ९१८२, कृतपदं स्तनयुगलम् --उत्तर० ६।३५, 'स्तनयगल विकासोन्मुख था' 6. मर्यादा, दर्जा, पद, स्थिति या अवस्था--भगवत्या प्राश्निकपदमध्यासितव्यम-मालवि० १, यान्त्येवं गृहिणीपदं युवतयः-श. ४।१८, 'पदवी को प्राप्त करती हैं' सचिव, राज° आदि 7. कारण, विषय, अवसर, वस्तु, मामला या बात-व्यवहारपदं हितत्-याज्ञ० २५, झगड़े की बात या अवसर, कानूनी दृष्टि से स्वामित्व अधिकार, अदालती कार्रवाई-सतां हि संदेहपदेषु वस्तुषु प्रमाण For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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