SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 407
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३९८ ) साथियों के लिए भोजन मांगा। अपनी जादू की। सिर अपनी पत्नी को गोद में रक्खे सो रहे थे, सूर्य थाली से द्रौपदी ने उनको पर्याप्त मात्रा में प्रातराश डूबने को था। पत्नी ने यह देख कर कि संध्याकालीन परोस दिया। उसके इस कार्य से तथा उसके सौन्दर्य प्रार्थना का समय बीता जा रहा है, आहिस्ता से जगा से वह इतना अधिक मुग्ध हुआ कि उसने द्रौपदी को दिया। परन्तु नींद में बाधा पहुँचने के कारण जरत्कारु अपने साथ भाग चलने के लिए कहा। उसने क्रोध को क्रोध आ गया और वह अपनी पत्नी को छोड़ के साथ उसकी बात को अस्वीकार कर दिया परन्तु कर सदा के लिए वहाँ से चल दिया। जाते समय वह उसे बलपूर्वक उठा कर ले जाने में सफल हो गया वह अपनी पत्नी को बता गया कि तुम गर्भवती हो --क्योंकि द्रौपदी के पति उस समय बाहर शिकार के और तुम्हारा पुत्र ही तुम्हें सम्भालने वाला होगा लिए गये हुए थे। जब वह वापस आये तो उन्होंने --साथ ही साथ वह सर्प वंश के क्षय को बचावेगा । उस अपहर्ता का पीछा किया, उसे पकड़ कर द्रौपदी यह पुत्र ही 'आस्तीक' था,-गवः बढ़ा बैल-दारिद्रयस्य को मुक्त कराया-तथा बहुत तिरस्कृत हो जाने पर परा मूर्ति र्यन्मानद्रविणाल्पता, जरदगवधनः शर्वस्तथापि उसे भी छोड़ दिया। उसने अभिमन्य को मारने के परमेश्वरः ---पंच० २११५९ । उपाय ढूँढ़ने में बड़ा भाग लिया। अन्त में वह अर्जुन जरती [ज+शत् +ङीप्] एक बूढ़ी नारी। के द्वारा महाभारत की लड़ाई में मारा गया। जरन्तः [ज+झन्, अन्तादेश:] 1. बूढ़ा आदमी 2. जयनम् [जि+ ल्युट ] 1. जीतना, दमन करना 2. हाथी | भैसा । और घोड़ों आदि का कवच । सम०-युज् (वि.) | जरा [ज+अ+टाप् ]('जरा' शब्द के स्थान पर कर्म० 1. जीनपोश से सुसज्जित 2. विजयो। द्विः व. के आगे अजादि विभक्ति परे होने पर विकल्प जयन्तः [जि+झच, अन्तादेशः] 1. इन्द्र के पुत्र का नाम, से 'जरस्' आदेश हो जाता है) 1. बुढ़ापा-बोकेयी ---पौलोमीसम्भवेनैव जयन्तेन पुरन्दरः-विक्रम शङ्कयेवाह पलितच्छद्मना जरा-रघु० १२१२, तस्य ५।१४, श० ७।२, रघु० ३।२३ ६।८ 2. शिव का धर्मरतेरासीद् वृद्धत्वं जरया (जरसा) विना--११२३ नाम 3, चन्द्रमा, --ती 1. झण्डा या पताका 2. इन्द्र को 2. क्षीणता, निर्बलता, बुढ़ापे के कारण दुर्बलता पुत्री 3. दुर्गा। सम-पत्रम् (विधि में) न्यायाधीश 3. पाचनशक्ति 4. एक राक्षसी का नाम-दे० 'जरासंध' द्वारा दी गई लिखित व्यवस्था (दोनों दलों में से किसी नी०। सम० -अवस्था क्षीणता, जीर्ण (वि) एक के पक्ष में) 2. अश्वमेध यज्ञ के लिए छोड़े हुए वयोवृद्ध, निर्बलीकृत, दुर्बल-भत० ३।१७,-- सन्धः घोड़े के मस्तक पर लगा नामपट्ट । एक प्रसिद्ध राजा और योद्धा, बृहद्रथ का पुत्र (एक जयिन् (वि०) [जेतुं शीलमस्य---जि-- इनि] 1. विजेता, पौराणिक कथा के अनुसार यह अलग-अलग दो पराजेता--विरूपाक्षस्य जयिनीस्ताः स्तुवे वामलोचनाः टुकड़ों के रूप में पैदा हुआ, 'जरा' नामक राक्षसी --विद्धशा० 2. सफल (मुकदमा) जीतने वाला ने इन दोनों टुकड़ों को जोड़ दिया-इसीलिए यह -याज्ञ० २१७९ 3. मनोहर, आकर्षक हृदय को दमन 'जरासन्ध' के नाम से प्रख्यात हआ। अपने पिता करने वाला—जगति जयिनस्ते ते भावा नवेन्दुकलादयः की मृत्यु के पश्चात् यह मगव और चेदि देश का मा० ११३६, (पुं०) विजेता, जयशील-पोरस्त्या- राजा बना। जब इसने सुना कि कृष्ण ने मेरे जामाता नेवमाकामंस्तांस्ताञ्जनपदाञ्जयी- रघु० ४१३४ । कंस को मार डाला तो इसने बड़ी भारी सेना लेकर जय्य (वि.) [जि+यत् ] जीतने के योग्य, प्रहार्य, जो। १८ बार मथुरा को घेरा--परन्तु हर वार मुंहकी जोता जा सके (विप० जेय)। खानो पड़ी। जब युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ का जरठ (वि.) [ज+अठच ] 1. कठोर, ठोस 2. पूराना, अनुष्ठान किया तो अर्जुन, कृष्ण और भीम ब्राह्मण अधिक आय का-अयमतिजरठा: प्रकामगर्वीः परिणत- का रूप धारण करके केवल अपने शत्रु को मार कर दिक्करिकास्तटीविभति -शि० ४।२९ (यहाँ 'जरठ बन्दी राजाओं को कैद से छड़ाने के लिए जरासन्ध का अर्थ 'कठोर' भो है) 3. क्षीण, जीर्ण, निर्बल को राजधानी में गये परन्तु जरासन्ध ने वन्दो राजाओं 4. पूर्णविकसित, पक्का, परिपक्व, जरठकमल-शि० को छोड़ने से इंकार किया, तब भीम ने उसे द्वन्द्व युद्ध ११११४5. कठोर हृदय, क्रूर, --ठः पाण्डु, पाँचों पाण्डवों के लिए ललकारा। जरासन्ध वाहर निकल कर आया के पिता। —दोनों में घोर युद्ध हुआ-पर अन्त में जरासन्ध जरण (वि.) [ज ल्यूट बढा, क्षीण, निर्वल।। भीम के हाथों मारा गया। जरत् (वि०) ज+शत] 1. बड़ा अधिक आय का 2. निर्बल जरायणि: [जराया अपत्यम्-फि ] जरासन्य का नाम । जोर्ण। सम० -कारः एक ऋषि जिसने वासुकि सर्प | जरायु (नपुं०) [जरामेति-इ.+जण ] 1. साँप की की बहन से विवाह किया था [एक दिन वह अपना । केंचुली 2. भ्रूण की ऊपरी झिल्ली 3. योनि, गर्भाशय । For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy