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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २६५ ) कान्यकुब्जः [ कन्या कुब्जा यत्र-कन्याकुब्ज+अण् पृषो० | रति है, जिस समय देवताओं को तारक के विरुद्ध युद्ध साधुः ] एक देश का नाम दे० 'कन्याकूब्ज'। करने के निमित्त अपनी सेनाओं के लिए सेनापति की कापटिक (वि.) (स्त्री० की) [ कपट+ठक ] 1. जाल- आवश्यकता हुई तो उन्होंने कामदेव से सहायता मांगी साज, बेईमान 2. दुष्ट, कुटिल,-क: चापलूस, चाटु- जिससे कि शिव का ध्यान पार्वती की ओर आकृष्ट कार, पिछलग्गू। हो, यही एक बात थी जो राक्षसों का काम तमाम कापटयम् [ कपट+ष्या ] दुष्टता, जालसाजी, धोखा- कर सकती थी। कामदेव ने इस बात का बीड़ा देही। उठा लिया परन्तु शिव ने अपनी तपस्या के विघ्न से कापथ: [ कुत्सितः पन्थाः ] खराब सड़क (शा० और | क्रुद्ध हो अपने तृतीय नेत्र की अग्नि से काम को भस्म आलं० ) कर दिया। उसके पश्चात् रति की प्रार्थना पर शिब कापाल:, कापालिक: [ कपाल+अण, ठक् वा ] शैव सम्प्र- ने कामदेव को प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेने की अनुमति दाय के अन्तर्गत विशिष्ट सम्प्रदाय का अनुयायी दे दी। उसका घनिष्ठ मित्र बसन्त ऋतु और पुत्र (वामाचारी) जो मनुष्य की खोपड़ियों की माला अनिरुद्ध है, वह धनुर्बाण से सुसज्जित है-भ्रमरपंक्ति धारण करते हैं और उन्ही में खाते पीते हैं, पंच. ही उसके धनुष की डोरी है-और पांच विविध २२१२। पौधों के फूल ही उसके बाण है )। सम-अग्नि 1. प्रेम कापालिन् (पु.) [ कपाल+अण+इनि ] शिव।। को आग, प्रचंड प्रेम 2. उत्कट इच्छा, कामोन्माद, कापिक (वि.) (स्त्री..- की) [ कपि । ठक ] बन्दर | संदीपनम् 1. कामाग्नि को प्रज्वलित करना 2. कोई जैसी शक्ल सूरत का या बन्दरों की भांति व्यवहार । कामोद्दीपक पदार्थ,- अङकुशः 1. अंगुली का नाखून करने वाला। 2. पुरुष की जननेन्द्रिय, लिंग-अङगः आम का वृक्ष, कापिल (वि०) (स्त्री०-ली) [ कपिल+अण ] 1. कपिल | -अधिकारः प्रेम या इच्छा का प्रभाव,---अधिष्ठित से सम्बन्ध रखने वाला या कपिल का 2. कपिल द्वारा (वि.) प्रेम के वशीभूत,-अनल: देखो 'कामाग्नि', शिक्षित या कपिल से व्युत्पन्न,-ल: कपिल मुनि द्वारा --- अंध (वि.) प्रेम या कामोन्माद के कारण अन्धा, प्रस्तुत सांख्यदर्शन का अनुयायी 2. भूरा रंग। (-ध:) 'कोयल', अंधा कस्तूरी,--अनिन (वि.) कापुरुषः [ कुत्सितः पुरुषः--कोः कदादेश: 1 नीच घृणित जब इच्छा हो तभी भोजन पाने वाला,-अभिकाम व्यक्ति, कायर, नराधम, पाजी-सुसन्तुष्ट: कापुरुषः (वि.) कामुक, कामासक्त,-अरण्यम् प्रमोद वन या स्वल्पकेनापि तुष्यति पंच० १२५, ३६१।। सुहावना उद्यान,-अरि शिव की उपाधि,-अयिन कापेयम् [ कपि-+ठक् ] 1. बन्दर की जाति का 2. बन्दर (वि०) शृंगार प्रिय, विषयी, कामासक्त,- अवतारः जैसा व्यवहार बन्दर जैसे दांव पेंच।। प्रद्युम्न,--अवसायः प्रणयोन्माद या काम का दमन, कापोत (वि.) (स्त्री०-ती) [ कपोत+अण् । भूरे रंग वैराग्य,-अशनम् 1. जब चाहे तब भोजन करना, का, धूसर रंग का,–तम् 1. कबूतरों का समूह 2. सुर्मा, इच्छानुकुल खाना 2. अनियन्त्रित सखोपभोग,--आतर ...तः भूरा रंग । सम-अंजनम् आंखों में आँजने (वि०) प्रेम का रोगी, काम वेग के कारण रुग्ण का सुर्मा। --कामातुराणां न भयं न लज्जा---सुभा०, आत्मजः काम् (अव्य०) आवाज देकर बुलाने के लिए प्रयुक्त होने प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध का विशेषण-आत्मन् (वि.) वाला अव्यय । विषयी, कामुक, आसक्त--मनु० ७।२७,-आयुधम् कामः [कम्+घा] । कामना, इच्छा- सन्तानकामाय- 1. कामदेव का बाण 2. जननेन्द्रिय (धः) आम का रघु० २१६५, ३।६७, (प्रायः तुमुन्नन्त के साथ वृक्ष,--आयुः (पुं०) 1. गिद्ध 2. गरुड़,-आर्त (वि०) प्रयुक्त) गन्तुकामः-जाने का इच्छुक-भग० २।६२, प्रेम का रोगी, कामाभिभूत-कामार्ता हि प्रकृतिमनु० २।९४ 2. अभीष्ट पदार्थ --सर्वान् कामान् सम- कृपणाश्चेतनाचेतनेषु-मेघ० ५,-आसक्त (वि.) श्नुते--मनु० २१५ 3. स्नेह, अनुराग 4. प्रेम या प्रेम या इच्छा के वशीभूत, कामोन्मत्त, कामासक्त, विषम भोग की इच्छा जो जीवन के चार उद्देश्यों ---ईप्सु (वि.) अभीष्ट पदार्थ प्राप्त करने के लिए (पुरुषार्थ) में से एक है-तु० अर्थ और अर्थ काम सचेष्ट,--ईश्वर: 1. कुबेर का विशेषण 2. परमात्मा, 5. विषयों से तप्ति की इच्छा, कामुकता मनु० २।२१४ -उदकम् 1. जल का ऐच्छिक तर्पण 2. विधि द्वारा 6. कामदेव 7. प्रद्युम्न 8. बलराम 9. एक प्रकार का | विहित अधिकारियों को छोड कर दिवंगत मित्रों का आप- मम 1. विषय, इच्छित पदार्थ 2. वीर्य, धातु : जल से ऐच्छिक तर्पण- याज्ञ०३।४, उपहत (वि.) (हिन्दू पौराणिकता के अनुसार काम ही कामदेव है। कामोन्माद के वशीभूत, या प्रणय रोगी,--कला काम -- वही कृष्ण व रुक्मिणी का पुत्र है। उसकी पत्नी की पत्नी रति,-काम-कामिन् (वि०) प्रेम या ३४ For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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