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अञ्जलिका [अञ्जलिरिव कायते प्रकाशते के+क+टाप्] ] अट्टकः [अट्ट+अच् स्वार्थे कन्+टाप्] चौबारा, महल । एक छोटा चूहा।
अट्टाल:-अट्टालकः [अट्ट इव अलति-अल-|-अच् स्वार्थ कन्] अञ्जस ( वि०) [स्त्रियाम्-अञ्जसी, अञ्ज+असच् ] अ- | अटारी, बालाखाना, चौबारा, महल । कुटिल, सीधा, ईमानदार, खरा ।
अट्टालिका [अट्टाल+स्वार्थ कन्] महल, उत्तुंग भवन । अञ्जसा ( अव्य० ) 1. सीधी तरह से 2, यथावत्, उचित सम-कारः राज, चिनाई करने वाला, (राजमहलों
रूप से, ठीक तरह से-विद्महे शठ पलायनच्छलान्य- का निर्माता)।
जसा-रघु० १९॥३१ 3. शीघ्र, जल्दी, तुरन्त । अड्डनं [अड्ड+ ल्युट्] ढाल । अजिष्ठ:-हणुः [अंज् + इष्ठ्च, इष्णुच् वा ] सूर्य। अण (भ्वा० पर०) 1. शब्द करना 2. (दिवा० आ०) सांस अजीरः-रं [अङ्ग्+ईरन् ] अंजीर वृक्ष की जातियाँ लेना, जीना ('अन्' के स्थान पर)। ओर उसके फल ।।
अण (न) क (वि.) [अण्-अच् कुत्सायां कप् च] बहुत अट् ( म्वा० पर० अक० सेट्, आ. विरल) [ अटति, छोटा, तुच्छ, नगण्य, अधम इत्यादि, समास में-'ह्रास'
अटित | इधर उधर घूमना ( अधि० के साथ ); और 'हीनावस्था' अर्थ को प्रकट करता है, कुलाल:-- (कई बार कर्म के साथ), भो बटो भिक्षामट- सिद्धा० हेय कुम्हार । सिद्धा० "भिक्षा मांगने आओ'- आट नैकटिकाश्रमान्- अणिः (स्त्री०-अणी) [अण्+इन ङीष बा] 1. सूई की भटि० ४।१२; (यङन्त ) अटाट्यते, स्वभावत: नोक 2. धुरे की कील, कील या काबला जो गाड़ी के इधर उधर घूमना जैसे कि कोई साधु संत घूमता बांक को रोकने के लिए लगाया जाय 3. सीमा।
अणिमन् (पुं०) अणुता, अणुत्वं [अणु+इमनिन्, अट ( वि० ) [ अट्+अङ् ] धूमने वाला; ( समास
अणु+ता, अणु+त्व] 1. सूक्ष्मता, 2. आणव प्रयोग)।
प्रकृति 3. आठ सिद्धियों में से एक दैवीशक्ति जिसके अटनं [ अट् + ल्युट् ] घूमना, भ्रमण करना-भिक्षा", | बल से मनुष्य 'अणु' जैसा छोटा बन सकता है। रात्रि आदि ।
| अणु (वि.) (स्त्री०-णु-बी) [अण्+उन्] सूक्ष्म, बारीक, अटनि:-नी ( स्त्री०) [ अट्+अनि, डीप वा ] धनुष का नन्हा, लघु, परमाणु-संबंधी-अणोरणीयान्-भग०
खांचेदार सिरा, निन्यतुः स्थलनिवेशिताटनी लीलयैव ८९;-णुः 1. अणु-अणुं पर्वतीकृत-भर्त० 2. ७८, धनुषी अधिज्यताम्-रघु० ११।१४।।
बढ़ा देना-तु० "तिल का ताड़" से 2. समय का अंश अटा [ अट् | अड+टाप ] साधु संतों की भांति इधर 3. शिव का नाम। सम०-भा बिजली,-रेणु आणव
उधर घूमने की आदत, इसी प्रकार अट्या, घल, वादः अणु-सिद्धान्त, अणुवाद । अटाट्या।
अणुक (वि.) [स्वार्थे कन्] 1. अतितुच्छ, अत्यन्त ह्रस्व, अटर (1) षः [अट रुष्+क] अडूसा, वासक का पौधा । | 2. सूक्ष्म, अत्यंत बारीक 3. तीक्षण । अटविः-वी ( स्त्री० ) [अट्+अवि ङीष् वा बन, जंगल | अणीयस, अणिष्ठ (वि०) (अण+ईयसून, अण+ इष्ठन] -आहिंडयते अटव्या अटवीम् -श०२ ।
तुच्छतर, तुच्छतम, अत्यंत तुच्छ; अणोरणीयांसम्अटविकः [ भटवि-ठन् ] बन में काम करने वाला, दे०
भग०८।९। 'आटविकः' ।
अण्ड:-डं: [अम् +ड] 1. अण्डकोष 2. फोता, 3. अंडा-ब्रह्मा अट्ट (म्वा० आ०) 1. वध करना 2. अतिक्रमण करना,
के बीजभूत अंडे से उत्पन्न होने के कारण संसार' परे जाना (आलं० रूप से भी)-प्रेर०-1. घटाना,
भी बहुधा 'ब्रह्मांड' कहलाता है 4. मगनाभि कम करना 2. घृणा करना, तिरस्कृत करना।
या कस्तूरीकोष 5. वीर्य, 6. शिव । सम०-आकर्षणं अट्ट (वि०) [अट्ट +अच्] 1. ऊंचा, उच्चस्वरयुक्त 2. बार- बधिया करना, -आकार, --आकृति (वि०) अंडे के
बार होनेवाला, लगातार आने वाला 3. शुष्क, सूखा आकार का, अंडाकार, अंडवृत्ताकार, (-र:-तिः) -ट्टः [अट्ट +घञ्] 1. अटारी 2. कंगूरा, मीनार, अंडवृत्त-कोश(ष):-कोषक: फोते, ज (वि.) अंडे से बुर्ज-नरेन्द्रमार्गाट्ट इव-रघु० ६।६७ 3. हाट, मंडी उत्पन्न, (-जः) 1. पक्षी, पंखदार जन्तु कु. ३१४२ 4. महल, विशाल भवन,-टें भोजन, भात, अट्ट- 2. मछली 3. सांप 4. छिपकली 5. ब्रह्मा, (-जा) शूला जनपदा:-महा० (अट्टम् अन्नम् शूलं विक्रेयं येषां कस्तूरी,-घरः शिव का नाम,-वर्धन, वृद्धिः (स्त्री०) ते-नीलकंठ)। सम०-अट्टहासः ठहाका,-हास:-हसितं, फोतों का बढ़ जाना,-सू (वि.) पंखदार जन्तु । -हास्यं जोर की हंसी या ठहाका, शिव का अट्टहास अण्डक: [अण्ड-स्वार्थे कन्] फोता,-कं छोटा अंडा-जगदंड-त्र्यंबकस्य--मेघ० ५८;-हासिन् (पुं०) 1.शिव, 2. । कैकतरखंडमिव-शि० ९।९। ठहाका लगाकर हंसने वाला।
| अण्डालः [अण्ड+आलुच्] मछली।
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