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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३८ संशय तिमिर प्रदीप | भावार्थ:- फिर वह अच्युतेन्द्र अपने महल में स्थित मनोहर अकृत्रिम जिन मन्दिर में गया। वहां तीन प्रदक्षिणा देकर जिन भगवान् की सुन्दर प्रतिमाओं की स्तुति करने लगा । फिर सुगन्धित और अत्यन्त शोतल जल से, उत्तम २ चन्दनादि द्रव्यों के विलेपन से, मोतियों के अवतों से, नाना प्रकार के मनोहर फूलों से, अमृत मयो नैवेद्यों से, प्रकाशित रत्नों के दीपकों से, नासिका के सन्तुष्ट करने वालों धूप से, और उत्तम फलों के देनेवाले अच्छे २ नारङ्गी अनार, घाम आदि फलों से, भव्य पुरुषों के चित्त में हर्ष को बढाने वाली चौर जोवन जोवन के पापों की नाश करने वाली जिन भगवान् की पूजन करता हुआ। इससे जाना जाता है कि अकृत्रिम प्रतिमाओं पर भी चन्द्रनादि सुगन्धित द्रव्यों का लेपन किया जाता है। प्रश्न- वसुनन्दि संहिता तथा एकसन्धि संहिता में गन्धलेपन Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रहित प्रतिमाओं के पूजनादिकों का सर्वथा निषेध किया गया है । केवल निषेधही नहीं किन्तु उनके पुजनादि करने वालों को अज्ञानी तथा प्रधर्मात्मा बताया गया है । यह बात समझ में नहीं श्रतो कि इन श्लोकों से ग्रन्थकर्त्ताओं का क्या मतलब है? दूसरे इन श्लोकों के अर्थ पर विचार करने से यह भी प्रतीति होती है कि ग्रन्थ कर्त्ताओं के समय में उन लोगों के मतका प्रचार था जो गन्ध लेपनादिकों का निषेध करने वाले हैं । अधिक विचार करने से और भी प्राचीन सिद्ध हो सकते हैं ? फिर यों कहना चाहिये कि गन्ध लेपनादिकों के निषेध करने को प्रथा भावनिक नहीं है किन्तु प्राचीन है। For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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