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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप। २१ की रचना होती थी, इसलिये प्राचीन और शास्त्रोक्न भी है। इसी कारण इतना विस्तार बढ़ाया जाता है। उत्तर-इसी तरह प्रतिपक्ष में हम भी यह कह सकते है कि बोतराग भगवान् को गन्ध लेपनादिकों की कोई जरूरत नहीं, परन्तु यह पूजक पुरुष की अखंड भक्ति का परिचय है। इसलिये गन्ध लेपनादि क्रियायें की जाती हैं। अन्यथा गन्धलेपन तो दूर रहे, किन्तु भगवत्को पूजन करने की भी कोई आवश्यक्ता नहीं है। प्रश्न-फिर तो यह बात भक्ति के उपर निर्भर रही ? यदि यही बात है तो, तुम्हारे कथनानुसार अलंकारादिक भी भक्ति के अंग हो सकते हैं। तर पहले तो यह प्रश्न हो बैढंग है। अर्थात् यों कहना चा हिये कि शास्त्र विरुद्ध होने से यह प्रश्न ही नहीं हो सकता । यदि मानभो लिया जाय तो, इसका उत्तर पहिले भी हम लिख पाये हैं । फिर भी यह कहना है कि यह विधान शास्त्रानुसार नहीं है । इसलिये प्रमाण नहीं माना जा सकता। इसे भी यदि कोई स्वीकार न करें तो, यह दोष केवल हमारे ऊपर ही क्यों ? उन लोगों पर भी तो लागू हो सकता है जो गन्म लेपनादिकों का निषेध करनेवाले हैं। क्योंकि जिस तरह वे मन्दिरादि कार्यों के करने को भक्ति का परिचय बताते हैं। उसी तरह अलंकारादिक भी भक्ति के अंग भूत कहे जासकते हैं। गन्ध लेपन को युक्तियों के द्वारा बहुत कुछ लिख चुके हैं प्रव देखना चाहिये कि इस विषय का शास्त्रों में किस तरह वर्णन है। For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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