SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप। wwwmmmmmmmmmmmm वसुनन्दि, पूज्यपाद, कुन्दकुन्द, योगीन्द्रदेव, प्रकलंक देव, सोमदेव, इन्द्रनन्दि और श्रुतसागर मुनि श्रादि सम्पूर्ण मूल संघानायो महर्षियों ने श्रावकाचार, भावसंग्रह, जैनाभिषेक, षट्पाहुडहत्ति, प्रायश्चित्त, यशस्तिलक, पूजासार कथाकोषादि शास्त्रों में लिखा है। ये महर्षि मूल संघी नहीं हैं क्या ? इस विषय के सिद्ध करने का जो प्रयव करेंगे उनका बड़ा भारी उपकार होगा। आदि पुराण के श्लोक में देवताओं ने जलाभिषेक किया हुप्रा लिखा है हमभो उसे स्वीकार करते हैं। परन्तु केवल जला भिषेक के करने मात्र से तो पञ्चामृताभिषेक अनुचित नहीं कहा जा सकता। निषेध तो उसी समय स्वीकार किया जा सकेगा जबकि जिस तरह उसका करना सिद्ध होता है उसी तरह निषेध भी हो। और यदि ऐमाही मान लिया जाय तो "देवता लोगो ने पञ्चामृताभिषेक किया" लिखा हुषा है फिर उससे जलाभिषेक का भी निषेध हो सकेगा ? क्षरसादिपञ्चामृतैरभिषेकं कृतवन्तः यह पाठ शुभचन्द्र मुनि के शिथ पद्मनन्दि मुनि ने नन्दी श्वर होप की कथा में लिखा है। फिर कही इस विषय के निर्णय के लिये क्या उपाय कहा जा सकेगा ? हमारी सम. झके अनुसार तो "सर्वेषां लोचनं शास्त्रमिति" इस किंवदन्ती के अनुसार शास्त्रों के द्वारा निर्णय करके उसी के अनुसार चलना चाहिये।कहने का तात्पर्य यह है कि पञ्चामताभिषेक सशास्त्र है । उसे स्वीकार करना अनुचित नहीं है । किन्तु स्वर्गादि सुखों का कारण है। For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy