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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप। श्रीपाल चरित्र में लिखा है किः कृत्वा पञ्चामतैनित्यमभिषेक जिनेशिनामू ये भव्याः पूजयन्युच्चै स्ते पूज्यन्ते सुरादिभिः । अर्थात् पञ्चामृत से जिन भगवान् का अभिषेक करके नो भव्यपुरुष पूजन करते हैं उन्हें देवता लोग निरन्तर उपासना को दृष्टि से देखते रहते हैं। श्री मूलसंधानायो हरिवंश पुराण में:--- पञ्चामृतभृतैः कुम्भेगन्धोद कवरैः शनैः । संस्नाप्य जिनसन्मूर्ति विधिनाऽऽनचुरुत्तमाः॥ अर्थात्-इक्षुरसादि पञ्चामृतों से भरे हुये कलयों में जिन भगवान का अभिषेक करके पूजन करते हुवे । षटकर्मोपदेश रत्नमाला में: पञ्चामृतैः सुमंत्रण मंत्रितैत्रिनिर्भरः अभिषिच्य जिनेन्द्राणां प्रतिबिम्बानि पुण्यवान् । अर्थात् - पवित्र मंत्र पूर्वक, इत्रमादि पञ्चामृतों से जिन भगवान का अभिषेक करना चाहिये । इत्यादि अनेक प्राचीन शाखों में पञ्चामृताभिषेक के सम्बन्ध में लिखा हुआ मिलता है इसलिये शास्त्रानुसार बाधित नहीं कहा जा सकता। प्रत्र-यद्यपि शास्त्रों में पञ्चामृताभिषेक करना लिखा है परन्तु साथ ही जरा बुद्धि पर भी जोर देना चाहिये । इस बात For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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