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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - संशयतिमिरप्रदीप। राजादनापूगोत्यः सापयामि जिनं रसः। पर्थात्-दाख, खुजर, और दक्षुरसादिकों के रस से जिन भगवान का अभिषेक करता है। श्रीचन्द्रप्रभु चरित्र में विहवर दामोदर उपदेश देते है कि पभिषिक जिनेशानामीक्षुःसलिलधारया। यः करोति सुरेस्तेन लभ्यते स सुरालये। जिनाभिषिञ्चनं कृत्वा भक्त्या घृतघटैनरः । प्रभायुक्ता विमानस्य जायते नायकः सुरः । संम्रापयेजिनान्यस्तु सुदुग्धकलौखिधा । वीरशुभ्रविमाने स प्राप्नोति भोगसम्पदम् ॥ येमाईन्तोऽभिषिच्यन्ते पीनदधिघटैः शुभैः । दधितुल्यविमाने स क्रोडयति निरन्तरम् ॥ सर्वोषध्या जिनेन्द्राङ्गं विलेपयति यो नरः । सर्वरोगविनिर्मतं प्राप्नोत्यङ्गं भव भवे । अर्थात्-जो जिन भगवान का चुरस की धारा से अभिषेक करता है वह अभिषेक के फल से स्वर्ग को प्राप्त होता है। घृत के कलशों से जिन भगवान् का अभिषेक करने वाला खर्ग में देवताओं का स्वामी होता है। जो दूध के भरे हुवे कलशों से जिन भगवान को मान कराता है वह दूध के समान शुभ्र विमान में विविध प्रकार को भोगोपभोग सामग्री को भोगने वाला होता है। जिस ने जिन देवका बहुत गाढ़े दही के भरे हुवे कलशों से अभिषेक किया है उसे दधि के समान निर्मस विमान में कीड़ा करने का सुख उपलब्ध होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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