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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप । होता तो, आज सम्पूर्ण मत मतान्तर कमी के रसातल में पहुंच गये होते । परन्तु यह कब संभव हो सकता था ? इसी से हमारा कहना है कि पहले शास्त्रों का पाश्रय लेना चाहिये। और शक्ति भर विविध युक्तियों के द्वारा उन्हीं के पुष्ट करने का उपाय करते रहना चाहिये । क्योंकि प्राचीन तत्त्व ज्ञानियों का अनुभव सत्य और यथार्थ कल्याण का कारण है। हम भी आज प्रकृत विषय को पहले शास्त्रों के द्वारा खुलासा करते हैं। फिर यथानुरूप युक्तियों के द्वारा भी सिद्ध करने का प्रयत्न करेंगे। भगवान् उमाखामि श्रावकाचार में शुद्धतोयक्षुसपिभिर्दुग्धदध्याम्मजै रसैः । सवौषधिभिरुञ्छूगर्भावात्मनापये जिनान् ॥ अर्थात्-शुद्धजल, इक्षुरस, घी, दूध, दही, पामरस और सर्वोषधि इत्यादिकों से जिन भगवान् का अभिषेक करता हूं। श्रीवसुनन्दि श्रावकाचार में गाथा-- गम्भावयारजम्माहिसेयणि क्ववणणाणणिव्वाणं । जम्हि दिणे संजादयं जिणएवहणं तहिणे कुन्ना ॥ इरस सप्पिदहिखोरगंधजलपुएणविविहकलसेहि। हिसि जागरं च संगीयणायाइहिं कायब्बं ॥ णन्दीसरमदिवसेस तहा अएणेसु उचियपव्वेस। जंकीरई जिणमहिमा वएणेया कालपूजा सा॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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