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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - संशयतिमिरप्रदीप। उत्तर-किसी बात का निषेध हानि को लिये होता है रात्रि पूजन करने में क्या हानि है उसे युक्ति तथा प्रमाणों से सिद्ध करनी चाहिये ? यही कारण है कि हिंसा, झूठ, चौरी, कुशील, आदि का निषेध हानि होने से किया जाता है। प्रश्न-जिस बात को विद्वान् लोग निषेध करते हैं इससे जाना जाता है कि उसविषय में कुछ हानि अवश्य होगी? उत्तर-यह विषय किसी के अधिकार का नहीं अथवा किसी का निजी नहीं, जो जिसने जैसा कहादिया उसी तरह उसे मानलिया जाय । यह धर्म का मामला है और धर्म तीर्थकाराके तथा उनके अनुसार चलनेवाले मुनि महाष आदि के आधार है इसलिये अबतक कोई बात इनके अनुसार नहीं कही जायगी उसे कौन आदर की दृष्टि से देखेगा? प्रश्न- हम भी तो यही बात कहते हैं कि उन्हीं महर्षियों के अनुसार चलना चाहिये। परन्तु उसमे विशेष यह कहना है कि यह बात कैसे हमें मालूम होगी कि यह कथन महर्षियों काही लिखा हुआ है। यह भी तो कह सकते हैं कि जिस तरह विद्वानों के वाक्यो में तुम सन्देह करते हो उसी तरह हमारे लिये भी वही बात क्यों न ठीक कही जायगी? उत्तर-जब आचार्यों के अनुसार चलने में तुम्हारा हमारा एकही मत है फिर विवाद किस बात का, उसीके अनुसार अपनी प्रवृत्ति को उपयोग में लानी चाहिये । रही यह बात कि यह कथन आचार्यों का कहा हुआ है या For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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