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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १० www.kobatirth.org संशयतिमिरप्रदीप | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक मित्र महोदय के प्रश्न इस ग्रन्थ की प्रथमावृत्ति के प्रकाशित होने पर कितने महानुभावों ने इसे ध्यान से देखा है और याथातथ्य लाभ भी उठाया है। इस से हम अपने पुरुषार्थ को किसी अंश में अच्छा ही समझते हैं और साथ ही उन लोगों के अत्यन्त आभारी हैं जिन्हों ने इस छोटी सी पुस्तक से लाभ उठाकर हमारे परिश्रम को सार्थक बनाने की चेष्टा की है। हमें यह आशा नहीं थी कि इस नवीन पुस्तक को समाज इतनी आदर की दृष्टि से देखेगा परन्तु परमात्मा की दयादृष्टि से एक तरह हमारा मनोरथ पूर्ण हुआ ही। यही कारण है कि आज हमारा रोम २ विकसित हो रहा है और उत्साह की मात्रा द्विगुणित होती जाती है। इस ग्रन्थ के अवलोकन करने का हमारे एक मित्र महोदय को भी मौका मिला है। उन्होंने इस पुस्तक के लेख पर सन्तोष प्रगट करते हुवे साथ ही कुछ और भी प्रश्नों को लिख कर हमारे ऊपर दयादृष्टि की है। वे प्रश्न प्रायः इसी ग्रन्थ से सम्बन्ध रखते हैं। उन्हें सर्वोपयोगी होने से पृथक उत्तर न देकर इसी पुस्तक में प्रकाशित किये देते हैं । मित्र महोदय उत्तर को देख कर अपने सन्देह के दूर करने का प्रयत्न करेंगे ऐसी मेरी प्रार्थना है। इसी जगह यह भी प्रगट कर देना अनुfar न होगा कि यदि किसी सज्जन महाशय को इस पुस्तक के देखने पर जो कुछ सन्दह हो तो वे उसे मेरे पास भेजने की अनुग्रह बुद्धि करेंगे । ऐसे पुरुषों का अत्यन्त आभार For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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