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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशय तिमिरप्रदीप | १२९ अर्थात् - देश विरति ग्रहस्थों को दिन में प्रतिमायोग, वीरचर्या, नियम पूर्वक नित्यप्रति त्रिकाल योग का धारण करना और सिद्धान्त शास्त्रोंका अध्ययन इन विषयों में अधिकार नहीं है । श्री वसुनन्दि श्रावकाचार में - दिणपाडमवीरचर्यातियाळयोगधरणं णियमेण । सिद्धान्तरहस्साधयणं अधियारो णत्थिदेशविरदाणं । अर्थात् - दिन में प्रतिमायोग धारण करने का, वीरचर्या स्वीकार करके आहार लेनेका, नियम से त्रिकाल योग धारण करने का तथा सिद्धान्त शास्त्रों के अध्ययन का देशविरति लोगों को अधिकार नहीं है । सागारधर्मामृत में थावको वीरचयist: प्रतिमातापनादिषु । स्यान्नाधिकारी सिद्धान्तरहस्याध्ययनेऽपि च ॥ अर्थात् - श्रावक लोग, वीरचर्या के, दिन में प्रतिमायोग के धारण करने के तथा सिद्धान्त शास्त्रों के अध्ययन करने के अधिकारी नहीं है । श्री धर्मसंग्रह में: कल्पन्ते वीरचर्या प्रतिमातापनादयः । न श्रावकस्य सिद्धान्तरहस्याध्ययनादिकम् ॥ अर्थात् - वीरचर्या से अहारादि के करने के दिन में प्रतिमायोग से परीतापनादिकों के सेवन करने के तथा सिद्धान्ताचार सम्बन्धी ग्रन्थों के पठन पाठन के अधिकारी ग्रहस्थ लोग नहीं हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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