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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप । कायोत्सर्ग पूर्वक शान्ति बिधान पढ़कर और जिन भगवान् से क्षमा कराकर विसर्जन करना योग्य है। इस लिये बैठ कर पूजन करनी अनुचित नहीं जान पड़ती है। और वही तो बड़े पुरुषों के बिनय का अभि सूचक है कि उनके आगमन काल में सत्कार के लिये खड़ा होना । इस बात को कौन बुद्धिमान् स्वीकार करेगा कि आय हुये अतिथि के बैठने पर भी सूखे काष्ठ की तरह खड़ा ही रहना योग्य है ? इसे तो विनय नहीं किन्तु एक तरह उन लोगों का अविनय कहना चाहिये । इन बातों के देखने से कहना पड़ता है कि जितनी प्रवृतिय इस समय की जा रही हैं उनमें शास्त्रानुसार बहुत थोड़ी भी दिखाई नहीं देती। महर्षियों के विषय में लोगों की एकदम आस्था उठ गई । उनके बचनों की ओर हमारी आधुनिक प्रवृत्ति नहीं लगती ? यह विचार में नहीं आता कि इसका प्रधान कारण क्या है ? कितने लोग महर्षियो को आधुकि कहने लगे, कितने उन्हें अप्रमाण कहने लगे, कितने यह सब कृति भट्टारकों की है ऐसी उद्घोषणा करने लगे अर्थात् यो कहो कि इन बातों को अप्रमाण सिद्ध करने में किसी तरह कसर नहीं रक्खी परन्तु इसे महार्पयों के तपोबल का प्रभाव कहना चाहिये जो उनका उपदेश निर्विन माना जारहा है उसको आजतक कोई बाधित नहीं ठहरा सका। बैठ कर पूजन करने के सम्बन्ध में और भी शास्त्राहा है। मास्वामी महाराज श्रावकाचार में लिखते हैं किः पद्मासनसमासीनो नासाग्रे न्यस्तलोचनः । मौनी वस्त्रास्तास्योऽयं पूजां कुर्याजिनेशिनः ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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