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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशय तिमिरप्रदीप | ८३ कुछ और ही चलपड़ी है जो सर्व तरह के पुष्पों को मिलने पर भी कल्पित् पुष्प काम में लाये जाते हैं। आचार्यों की आशा थी किस तरह उसका स्वरूप बन गया कुछ और ही । महर्षियों का अभिमत साक्षात्पुष्पों के अभाव में चावलों के पुष्पों के चढ़ाने का था परन्तु उसका प्रतिरूप यह होगया कि इन्हीं पुष्पों को चढ़ाना चाहिये हरित पुष्पों के चढ़ाने से पाप का बन्ध होता है । कहिये पाठक ! देखान ? आचार्यों की आशा का वैपरीत्य । अब इस जगह विचारणीय यह है कि किस विधि का श्रावकों को अवलम्बन करना चाहिये ? किस से भगवान् की आशा का अखंड पालन होगा ? मेरी समझ के अनुसार भगवान् उमा स्वामि महाराज की आशा को बहुत गौरव होना चाहिये । क्योंकि महर्षियों के वचन और हम लोगों के बचनों की समानता नहीं हो सकती। वे तपस्वी हैं, पापकर्मों से अलिप्त है, अतिशय पूज्य हैं । और गृहस्थों की अवस्था कैसी है यह बात सब कोई जानते हैं । अब रही सचित्त पुष्पों के चढ़ाने तथा न चढ़ाने की सो इसका विशेष खुलासा पहले " पुष्प पूजन सम्बन्धी लेख में कर आये हैं उसे देख कर निर्णय करना चाहिये । "} प्रश्न- इस विषय में उपालम्भ देना अनुचित है। क्योंकि जिस तरह उमास्वामि ने लिखा है उस तरह मानते तो हैं ? क्या उमास्वामि ने कल्पित पुष्पों को चढ़ाना नहीं लिखा है ? और यह एकान्तही क्यों जो हरित पुष्पों के होने पर तो उन्हें नहीं चढ़ाना और अभाव में चढ़ाना ? उत्तर- जब आचार्यों की आवा पर बिल्कुल ध्यानही नहीं For Private And Personal Use Only
SR No.020639
Book TitleSanshay Timir Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherSwantroday Karyalay
Publication Year1909
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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