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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ सम्यक्त्व-कौमुदी - वह छठे अंशका भागी है-हिस्सेदार है । प्रजाके पुण्य और पाप इन दोनोंमें राजाका हिस्सा है । यह सुनकर महाजन लोग फिर बोळे - महाराज, अगर ऐसा ही है तो पापके भागी हम लोग होंगे और पुण्यके भागी आप । बस अब आप चुप हो रहें, हम सब कर लेंगे । राजाने तब कहा- जैसी आपलोगों की इच्छा। इसके बाद महाजनोंने चन्दा इकट्ठा किया । चन्देके धन से उन्होंने एक सोनेका आदमी बनवाया, उसे नाना प्रकार के रत्नोंके गहने पहनाये और फिर उसे गाडीमें बैठा कर नगर में मुनादी पिटाई कि " यह सोनेका आदमी और करोड़ रुपया उसको दिया जायगा जो इसके बदले में अपने लड़केको देगा और लड़केकी मा अपने हाथसे उसे विषपिलावेगी तथा पिता उसकी गर्दन मरोड़ेगा " । इस मुनादीको वरदत्त नामके एक ब्राह्मणने सुनी । यह ब्राह्मण उसी नगरका रहनेवाला था । यह बड़ा ही निर्दयी और दरिद्री था । इसके सात लड़के थे । वरदत्तने अपनी निर्दया नामकी स्त्रीसे पूछा - मैं अपने छोटे लड़के इन्द्रदत्तको देकर यह सोनेका आदमी और रुपये लिये लेता हूँ । जब हम और तुम अच्छी तरह हैं तब लड़के तो बहुत से हो जायँगे । स्त्री तो नामसे ही निर्दया 1 थी । इसलिए उसने अपने पतिका कहना मान लिया। तब वरदत्तने आगे बढ़कर घोषणाको बंद करदी और कहा - मैं इसके बदले में अपने लड़केको देता हूँ। इस समय कुछ समझदार For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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