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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से त्रस्त होकर निर्वाण भूमियों में जाकर आत्म साधना का इच्छुक रहता है किन्तु आज का मानव तीर्थ भूमि का महत्व नहीं समझकर वहां परम पवित्र भूमियों पर विकास का नाम देकर अनाधिकार लाखों वर्षों का कब्जा अनेक बार राजा पालगंज से खरीदा प्रिविकौसिल लन्दन का फैसला कलकत्ता हायकोर्ट का फैसला अकबर बादशाह द्वारा दान-पत्र देकर यह उल्लेखित किया कि जब तक सूरज-चांद रहेगा तब तक श्वेताम्बर जैन समाज का सम्मेतशिखर पर अधिकार रहेगा। यह सनद तत्कालिन आचार्य प्रवर तपागच्छ नायक समर्थ जैनाचार्य श्री हीर विजयसूरीश्वरजी महाराज को अर्पण की थी। फिर भी समझ में नहीं आता यह दिगम्बर भाई परम पवित्र तीर्थों पर यदा-कदा अनाधिकार चेष्टा से विवाद को पैदा करते हैं। __ आज भारत वर्ष में जो भी चमत्कारिक प्रभावशील और परम पवित्र तीर्थ भूमियों पर व्यर्थ का विवाद पैदाकर तीर्थकर परमात्मा की गंभीर आशातना करवाते हैं। उदाहरण के तौर पर ऋषभदेव तीर्थ केसरियाजी, मक्सीजी, अंतरिक्षजी आदि अनेक तीर्थ भूमियों का विवाद क्या शोभा देता है? कई बार सम्मेतशिखरजी पर विवाद पैदा किये। सन् १९६४ में भी यही विवाद पैदा किया था उस समय घानसा राजस्थान में परम पूज्य शासन प्रभावक आचार्यदेव कविरत्न श्रीमद् विजय विद्याचंद्रसुरीश्वरजी महाराज ने श्री सम्मेतशिखरजी तीर्थ रक्षा समिति स्थापित कर देश के तत्कालिन प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, गृहमंत्री व बिहार के मुख्यमंत्री आदि से पत्र व्यवहार द्वारा सम्पर्क सत्यवस्तु का प्रमाण सह दिग्दर्शन करवाया था। तब वहां के वन सम्पदा की उत्पन्न आय में से ६० प्रतिशत एवं ४० प्रतिशत यानि ४० प्रतिशत राज्य सरकार का व ६० प्रतिशत व्यवस्थापक श्वेताम्बर श्री संघ द्वारा स्थापित ट्रस्ट के पास रहती है। क्या दिगम्बर भाई इन विवादों से उत्पन्न परमात्मा देवाधिदेव की होने वाली भयंकर आशातना पैदा करने का निकाचित कर्मबन्ध का विचार कर आत्म कल्याण के मार्ग की और मोड़ने का प्रयास कर निर्वाण भूमि तीर्थ भूमि के विवादों को समाप्त करेंगे। यह भी तो प्रश्न है क्या पवित्र भूमियों पर भौतिक सुख-सुविधा करके उस पवित्रता को खत्म करेंगे। ____ मनुष्य के पास भौतिक साधन घर में भी है वह उनसे त्रस्त होता है तभी तो ऐसी परम पवित्र भूमि पर जाकर आत्मशांति चाहता है वीतराग देवाधिदेव जिस पवित्र भूमि पर विराजीत होकर मोक्ष नगरी पधारे व निर्वाण भूमि अपने लिये पवित्र होने से वंदन पूजन करते हैं और श्रेष्ठ शब्दों का प्रयोग करते हैं। निर्वाण भूमि के For Private And Personal
SR No.020622
Book TitleSammetshikhar Jain Maha Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1994
Total Pages71
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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