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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होने से तीर्थ स्थल आत्म जागृति हेतु परम प्रेरक होते हैं। वर्तमान चौबीसी के बीस तीर्थंकर श्री सम्मेतशिखर पर निर्वाण होने से इस तीर्थराज की महिमा सर्वोपरी है। अन्य चार निर्वाण क्षेत्रों में प्रत्येक में मात्र एक-एक तीर्थकर ही मोक्ष गए हैं। इस दृष्टि से श्री सम्मेतशिखर तीर्थ की महिमा अतुलनीय है। भारतीय तीर्थों में यह गौरवशाली महातीर्थ है। श्री सिद्धाचल (शत्रुजय) एक भी तीर्थंकर भगवान की निर्वाण भूमि न होते हुए मात्र असंख्य मुनियों की सिद्ध भूमि होने से, अनेकानेक आराधकों का आकर्षण केन्द्र है। किन्तु यह तीर्थ, प्रायः शाश्वत है। अनंतानंत मुनियों का सिद्धि धाम एवं लोकोत्तर महिमा रूप होने से कल्याणक भूमि में अपवाद रूप हैं अन्यथा। जगत् के अनेकानेक तीर्थों में तीर्थंकरों की मोक्ष भूमि वाले क्षेत्र विशेष आकर्षक एवं प्रभावक हो,,यह स्वाभाविक है। क्योंकि वीतराग प्रभु की उपासना के अंतिम फलस्वरूप कर्म निर्जरा के आदर्श ध्येय की परिपूर्णता, मोक्ष स्थिति में ही परिव्यक्त होती है। जीवन की ये धन्य घड़ियाँ, सहस्त्र वर्षों के काल के अनन्तर कभी-कभी उद्भवित होती है और जिन तीर्थ स्थलियों के पावन वक्ष पर परम तारक श्री तीर्थंकर भगवान का निर्वाण मोक्ष गमन होता है, उनकी महिमा जग में अतीव कही जा सकती है। __श्री सम्मेतशिखर तीर्थ पर अर्वाचीन चौवीसी के बीस तीर्थंकरों के निर्वाण तो हुए ही हैं, इनके उपरान्त अनेकानेक गणधर और असंख्य मुनियों को मोक्ष प्राप्त हुआ है। शास्त्रकारों द्वारा श्री सम्मेतशिखरजी तीर्थ को शाश्वत मोक्ष गिरी बतलाया है। क्योंकि इस तीर्थराज पर विगत वर्तमान और आने वाली चौविसियों में तीर्थंकरों का मोक्ष जाना भी बतलाया है। इसलिए यह शाश्वत मोक्ष तीर्थ कहा गया है। श्री सिद्धाचलजी को प्रायः शाश्वत तीर्थ बतलाया है। प्रायः सिद्धगिरि शाश्वतो, रहेशे काल अनन्त। . श्री वीरविजयजी कृत दोहा प्रायः सिद्धगिरि शाश्वतो, महिमानो नहीं पार। प्रथम जिनेश्वर समोसर्या, पूर्व नवाणु वार॥ . (वीर विजयवी कृत नवाणुप्रकारी पूजा) २२ For Private And Personal
SR No.020622
Book TitleSammetshikhar Jain Maha Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1994
Total Pages71
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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