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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैनशासनप्रभावकबंधुजोड़ीवस्तुपाल-तेजपाल यात्रार्थ निकलेउस समय निम्नानुसार परिवारसाथ था। २४ - हाथी दांत के रथ (चौवीस) ४५०० - सारथवा वाले (चार हजार पांच सौ) ४५०० - गाड़ी वाले (चार हजार पांच सौं) ११०० - वहेल वाला (एक हजार एक सौ) ५०५ - पालखी वाला (पांच सौ पांच) २००० - पोठीया वाला ( दो हजार) ७०० - सुखासन वाला (सात सौ) २२०० - श्वेताम्बर साधु (दो हजार दो सौ) ११०० - दिगम्बर साधु (एक हजार एक सौ) ४०८ - उंट सवार (चार सौ आठ) ४५० - संगीतकार (भोजक) (चार सौ पचास) १००० - हलवाई (रसोई बनाने वाले) (एक हजार) ३३०० - चारण (तीन हजार तीन सौ) ३३०० - भाट (तीन हजार तीन सौ) १०५० - कुम्हार (मिट्टी के बर्तन बनाने वाले) (एक हजार पचास) ४००० - घुड़सवार (चार हजार) ७,००,००० - यात्री मनुष्य (सात लाख) ५०० - सुथार (पांच सौ) ३५० - दीवटीया घांटी (तीन सौ पचास) १००० - लुहार (एक हजार) ३७३७२१८८१६ सभी मिलाकर तीन अरब, तीहोत्तर करोड़, बहोत्तर लाख, अठारह हजार आठ सौ सोलह लोढ़िये (स्वर्ण मुद्रा) उस समय पूण्य कार्य में खर्च किया। वस्तुपाल संवत् १२९८ में स्वर्गस्थ हुए, तेजपाल संवत् १३०८ में स्वर्गस्थ हुए। 'शाश्वत धर्म, १९६४'अक्टूबर से उद्दत For Private And Personal
SR No.020622
Book TitleSammetshikhar Jain Maha Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1994
Total Pages71
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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