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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संकल्प हमारा आचार्य प्रवर, कविरत्न विजय विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. श्री सम्मेतशिखरजी तीर्थ का कण-कण हमारे लिये वंदनीय एवं पूजनीय है । उसे किसी भी किंमत पर अपवित्र कृत्यों का केन्द्र नहीं बनने दिया जा सकता है। तीर्थ रक्षा के पवित्र अभियान में तन-मन और धन सभी महत्वहीन हो जाते हैं। धन्य बनता है उनका जीवन जो तीर्थों की रक्षा के महायज्ञ में अपने आपको अर्पित कर बलिदान की पवित्र परम्परा प्रारम्भ करते हैं। श्री सम्मेतशिखरजी के लिये भी यदि आवश्यकता पड़ी तो ऐसी ही परम्पराओं का शुभारम्भ करना होगा। वह पवित्र स्थल जहां से २० तीर्थकर १२८० गणधर और अनन्त मुनि मोक्ष पधारे, जैनों के प्राणों से प्रिय है। वे उसे पुन: प्राप्त करने के लिये दृढ़ प्रतिज्ञाबद्ध है। आज गांव-गांव से इन्हीं प्रतिज्ञाओं का पुनरुच्चार हो रहा है तथा मुझे प्रसन्नता है कि धानसा में आयोजित यह जैन सम्मेलन भी ठोस कदमों के साथ इसी संकल्प को दुहराने जा रहा है। चाहे कितना ही उत्सर्ग और बलिदान देना पड़े। जैन समाज तैयार रहेगा और सतत् संघर्ष करेगा उस पवित्र भूमि के पुनः पूर्ण अधिकरण को प्राप्त करने के लिये । ■ विजय विद्याचन्द्रसूरि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धानसा में आयोजित जैन सम्मेलन में दिये गये प्रवचन का अंश २२ For Private And Personal
SR No.020622
Book TitleSammetshikhar Jain Maha Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1994
Total Pages71
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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