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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३३ ) व्याधि का उदय होता है। तब बाह्य चरणानुयोग आचरण के असद्भाव में क्या उनके षष्ठम गुणस्थान चला जाता है ? यदि ऐसा है तब उसे समाधिमरण के समय हे मुने ? इत्यादि सम्बोधन करके जो उपदेश दिया है वह किस प्रकार संगत होगा । पीड़ा आदि में चित्त चंचल रहता है इसका क्या यह आशय है पीड़ा का वारंवार स्मरण हो जाता है। हो जाओ स्मरण ज्ञान है और जिसकी धारणा होती है उसका बाह्य निमित्त मिलने पर स्मरण होना अनिवार्य है । किन्तु साथ में यह भाव तो रहता है। यह चंचलता सम्यक् नहीं परंतु मेरी समझ में इस पर भी गंभीर दृष्टि दीजिये । चंचलता तो कुछ बाधक नहीं । साथ में उसके अरति का उदय और असाता की उदीरणा से दुखानुभव हो जाता है । उसे पृथक करने की भावना रहती है । इसी से इसे महर्षियों ने आर्तध्यान की कोटि में गणनाकी है । क्या इस भाव के होने से पंचमगुणस्थान मिट जाता है । यदि इस ध्यान के होने पर देशवृत के विरुद्ध भाव का उदय श्रद्धा में न हो तब मुझे तो दृढ़तम विश्वास है गुणस्थान की कोई भी क्षति नहीं । तरतमता ही होती है वह भी उसी गुणस्थान में । ये विचारे जिन्होंने कुछ नहीं जाना कहो जायेंगे कहीं जाओ हमें इसकी मीमांसा से क्या For Private and Personal Use Only
SR No.020620
Book TitleSamadhi Maran Patra Punj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Nayak
PublisherKasturchand Nayak
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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