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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रहता है। अतः आप इस बात की रंचमात्र प्राकुलता न करें कि हमारा शरीर क्षीण हो रहा है क्योंकि शरीर भी पर द्रव्य है उसके संबंध से जो कोई कार्य होने वाला है वह हो अथवा न हो परंतु जो वस्तु मात्मा ही से समन्वित है उसकी क्षति करने वाला कोई नहीं, उसकी रक्षा है तो संसार तट समीप ही है। विशेष बात यह है कि चरणानुयोग की पद्धति से समाधि के अर्थ बाहा संयोग अच्छे होना विधेय है किन्तु परमार्थ दृष्टि से निज प्रवलतम श्रद्धान ही कार्य कर है। आप जानते हैं कि कितने ही प्रबल ज्ञानियों का समागम रहे किन्तु समाधिकर्ता को उनके उपदेश श्रवणकर विचार तो स्वयं को करना पड़ेगा। जो मैं एक हूं चैतन्य हूं रागादिक शून्य हूं यह जो सामग्री देख रहा हूं पर जन्य है, हेय है, उपादेश निज ही, है परमात्मा के गुणगान से परमात्मा द्वारा परमात्म पद की प्राप्ति नहीं किन्तु परमात्मा द्वारा निर्दिष्ट पथ पर चलने से ही उस पद का लाभ निश्चित है अतः सर्व प्रकार के झंझटों को छोड़कर भाई साहब ! अब तो केवल बीतराग निर्दिष्ट पथ पर ही आभ्यंतर परिणाम से आरूढ़ हो जाओ और बाह्य त्याग की वहीं तक मर्यादा है जहां तक निज भाव में बाधा न पहुंचे । अपने परिणामों के परिणमन For Private and Personal Use Only
SR No.020620
Book TitleSamadhi Maran Patra Punj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Nayak
PublisherKasturchand Nayak
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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