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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरणानुयोग में जो परद्रव्यों को शुभाशुभ में निमित्तत्व की अपेक्षा हेयोपादेय की व्यवस्था की है। वह अल्प प्रज्ञके अर्थ है। आप तो विज्ञ है। अध्यवसान को ही बंधका जनक समझ उसीके त्याग की भावना करना और निरंतर " एगो मे सासदो आदा णाणदंसणलक्षणो” अर्थात् ज्ञानदर्शनात्मक जो प्रात्मा है वही उपादेय है। शेष जो बाह्य पदार्थ हैं वे मेरे नहीं हैं। मरण क्या वस्तु है ? आयुके निषेक पूर्ण होने पर मनुष्य पर्याय का वियोग तथा आयुके सद्भाव में पर्यायका संबंध सो ही जीवन । अब देखिये जैसे जिस मंदिर में हम निवास करते हैं उसके सद्भाव असद्भाव में हमको किसी प्रकार का हानिलाभ नहीं, तब क्यों हर्ष विषाद कर अपने पवित्र भावों को कलुषित किया जावे । जैसे कि कहा है। - श्लोक - प्राणोच्छेदमुदाहरन्ति मरणं प्राणाः किलास्यात्मनो ज्ञानं सत्स्वयमेव शाश्वततया नोच्छिद्यते जातुचित् ॥ अस्यातो मरणंन किंचिद् भवेत्तद्भीः कुतो ज्ञानिनो निःशङ्कः सततं स्वयं स सहजं ज्ञानं सदा विन्दति ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020620
Book TitleSamadhi Maran Patra Punj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Nayak
PublisherKasturchand Nayak
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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