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________________ SAIL.Mahavir.jain ArmdhanaKendra www.kobatirtm.org. Acharya Shri Kasagar Gyarmandir |पणासहि ॥१६॥ फणिफणफारफुरंतरयणकररंजिअनहयल, फलिणीकंदल-दल-तमाल-निल्लुप्पलसामल! कमठासुरउवसग्गवग्गसंसग्गअगंजिअ, जय पञ्चक्ख जिणेस पास! थंभणयपुरहिअ ॥ १७॥ मह मणु तरल पमाणु ने य वाया वि विसंठुलु, नियतणुरवि अविणयसहावु अलसविहिलंघलु ॥ तुह माहप्पु पमाणु देव! कारुण्णपवित्तउ, इय मइ मा अवहीरि पास पालिहि विलवंतउ॥१८॥ किं किं कप्पिर ण य कलुणु किं किं व न जंपिउ, किं व न चिहिउ किहु देव दीणयमविलंबिउ ॥ कामु न किय निष्फललल्लि अह्महेहिं दुहत्तई, तह विन पत्तउ ताणु किंपि पई पहु! परिचत्तिई ॥१९॥ तुहु सामिउ, तुहु माय-बप्पु, तुई मित्त-पियंकरु, तुहुँ गइ, तुहं| मह, तुहं जि-ताणु, तुहं गुरु, खेमकरु ।। ह दुहभरभारिउ वराउ राओल निभग्गउ, लीणउ तुह कमकमलसरणु जिण पालहि चंगउ ।। २० ॥ पई किवि कयनीरोय लोय किवि पावियसुहसय, किवि मइ-मंतमहंत केवि | किवि साहिय सिवपय । किवि गंजिअरिउवग्ग केवि जसधवलिअभूअल, मई अवहीरहि केण पास सरणागयवच्छल! ॥ २१॥ पञ्चुवयारनिरीह नाह ! निप्पण्णपओअण, तुह जिणपास परोवयार करुणिकपरायण ॥ सत्तु-मित्तसमचित्तवित्ति! नय-निदिअसममण, मा अवहीरिअ जुग्गउ बि मई पास निरंजण ।। २२ ।। हउं बहु विहदुहतत्तगत्तु तुहं दुहनासणपरु, हउँ सुयणहकरुणिकठाणु तुहं निरु करुणापरु ॥ हउं जिणपास असामिसाल IN|तुहूं तिहुअणसामिअ, जं अवहीरहि मई झंखंत इय पास न सोहिअ ॥ २३ ॥ जुग्गा-जुग्गविभाग नाह नहु। For Private And Pamonal Use Only
SR No.020616
Book TitleSadhu Pratikraman Sutrani Tatha Sadhu Vidhi Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshamakalyan Upadhyay
PublisherGovindjibhai Harshi Punshi
Publication Year1917
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size3 MB
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