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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋषिमंडल मंत्रभेद ६७ पुस्तकमें देख कर मंत्र साधना का ढंग कुछ और ही प्रकारका होता है, और गुरुगम कुछ और ही बात है अतः मंत्र शास्त्रके अनुभवी निष्णांत व्यक्ति की राय लेकर मंत्र साधनका कार्य किया जाय तो सम्भव है कि अवश्य सिद्ध हो जायगा। ____ मंत्रोमें प्रणवाक्षर ॐ तो तमाम मंत्रोका माण है. एसा कोई मंत्र नही है कि जिसमें इस प्रणवाक्षर ॐ की उपस्थिति न हो, और बहुधा एसा भी देखा गया है कि किसी किसी मंत्रमें जहां अक्षरोंकी गिनतीका प्रश्न आता है उस जगह ॐ को तो मंत्रोमें सर्वव्यापि समझकर गिनते नही हैं। जिसमें अरिहंत सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, और सर्व साध की स्थापना है, इसी लिये ॐ जीवन रुप है। दुसरे मंत्रोके आद्यमें ॐ आता है सो मंगलरुप है, और इसीसें मंगलाचरण होता है। अतः एसे शक्तिशाली ॐ पद को मंत्रोंका जीवनमाण समझना चाहिए। मंत्रोके अंतमें किसी जगह तो नमः शब्द आता है जो शांतिदायक है । मंत्र कितना ही शक्तिशाली हो किन्तु नमः शब्द लगाने से शान्तरुपवाला बन जाता है, और क्रूर मंत्र भी क्रूर नही रहता क्योंकि नमः पल्लव मंत्रको शान्त स्वभाववाला बना देता है। इसी तरह नमः के बजाय "फट" For Private and Personal Use Only
SR No.020611
Book TitleRushimandal Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1940
Total Pages111
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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