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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८ ऋषि-मंडल स्तोत्र ॥ नमो लोए सव्वसाहणं मौर्वी ॥ ॥ एसो पञ्चनमुक्कारो-पादतले, वज्रशिला सन्चपावण्पणासणो । वज्रमयमाकारं चतुर्दिक्षु मङ्गलाणं च, सव्वेसिं खादिराङ्गारखातिका ॥ ॥ पढमं हवई मङ्गलं परि वमोवज्रमय विधानं ॥ उपर बताया हुवा मंत्र बोलनेसे भी सकली करण हो जाता है अतः जिसको जैसा सुगम मालूम हो तदनुसार करे। ॥ सकलीकरण तीसरा ॥ एक और सकलीकरण बताया है, जो सर्व प्रकारकी ऋद्धि सिद्धि देने वाला है, और मंत्रके आघमें इस सकलीकरण द्वारा भी शुद्धि कर सकते हैं, जैसी जिसको सुविधा व सुगमता मालुम हो उसीको अङ्गीकार करे, मंत्र इस प्रकार हैं । ॐ णमो अरिहन्ताणं ॐ हृदय रक्ष रक्ष हूँ फट् स्वाहा॥ ॥ ॐ णमो सिद्धाणं ही शिरो रक्ष रक्ष ह फट् स्वाहा॥ ॥ ॐ णमो आयरियाणं हैं शिखां रक्ष रक्ष हू फट् स्वाहा ॥ ॥ ॐ णमो उवज्झायाणं हूँ एहि एहि भगवति वज्रकवचे वज्रपाणि रक्ष रक्ष ह फट् स्वाहा ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020611
Book TitleRushimandal Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1940
Total Pages111
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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