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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तर क्रिया विधि और हवन की वस्तु समर्पण करे। एसा करते समय हाथ में जो सामग्री होगी अंगुष्ठसे उङ्गलियों के उपर से अर्पण के तरीके पर सरकाता जाय। इसी तरह का विधान उत्तम माना गया है । ८७. आवर्त ध्यान करने के लिए आवर्त का विधान उत्तम बताया गया है । इस में माला की जरूरत नही होती आवर्त ध्यान तो हाथ की उङ्गलियों पर ही गिनते हैं, और एसे आवर्तों का बयान करते आवर्त, शंखावर्त, नन्दावर्त, ॐवर्त, नवपदवहाँ आदि ताये गये हैं जिनका सविस्तर वर्णन " श्री नवकार महामंत्र कल्प " नाम की पुस्तक में छप गया है । यहां हव का सम्बन्ध है, अतः ह्रीवर्त का स्वरूप बताया जाता है और हाथ के पब्जे में नंबर दिये गये हैं जिस को पाठक देख कर वर्त को समझ लें. For Private and Personal Use Only stad किस प्रकार गिनना इस के लिये खोज करने पर भी बराबर पता नही पा सके हैं, तथापि जो प्राप्त हुवा है वह पाठकों के सामने रखते हैं । यह आवर्त तर्जनी उङ्गली के पेरवें से चलता है. इस तरह मध्यमा, अनामिका व कनिष्ठा के उपर के पेरवें तक चार हुवे, पांचवां कनिष्ठाका मध्य, छट्टा अनामिका का मध्य, सातवां मध्यमाका मध्य, आठवां
SR No.020611
Book TitleRushimandal Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1940
Total Pages111
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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