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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋषिमंडल-स्तोत्र आहुति देनेके लिये बैठाना चाहिए। क्योंकि हरएक मंत्र साधनामें साधकके पास सिद्धकी आवश्यकता होती है। हवनके लिये लकडी पलास जिसको खांखरा भी कहते हैं उत्तम मानी गई है, और वैसे तो पीपलकी खेजडेकी चंदनकी, लालचंदनकी, और आरणी की लकडी भी लेना बताया है । लकडी सूखी और जीवात रहित होना चाहिए । साधना शांति तुष्टि पुष्टि के हेतु है तो नौ अंगुल लंबे लकडी के टुकडे होना चाहिए । यदि आकर्षण आदि के लिये है तो बारह अंगुल लंबे टुकडे लेना चाहिए। और लकडीके टुकडे एकसौ आठसे ज्यादे न होना चाहिए । जब सब प्रकार की सामग्री तैयार हो जाय, बाद में अष्ट द्रव्य से हवन Wडको पुज कर अग्नि को पूजना और कपूर को आग से या दीयेकी ज्योति से सलगा कर हवनकुंड में रखना चाहिए । मंत्र साधना के लिये विशोपचार किया जिस में स्थापना आदिआ जाती है जिसका विवरण पहले बता दिया है। उस प्रकार सारा विधान करके मंत्रकी एक माला फेर कर बादमें जितनी आहुति देना हो मनमें तो मंत्र बोले और आहुति देते समय जितने पुरुष इस क्रिया में बैठे हों वह सब एक साथ स्वाहाः शब्द वोल कर आहुति देवे । आहुति चाटली या चम्मच आदि से न देवे और उपर से वस्तु डालते हों इस तरह से भी न देवे लेकिन अर्पण करते हों इस प्रकार आहुति देवे For Private and Personal Use Only
SR No.020611
Book TitleRushimandal Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1940
Total Pages111
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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