SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चुवा ( ७६ ) चोखोजाना चुवा० वि० [देश॰] कोमल, मुलायम । | चूहरी-संज्ञा, स्त्री० [हिं० चूहड़ी] मंगी की स्त्री, उदा० अपने हाथन खूब चुवा सी लै लै दूब चराऊँ मंगिन, सफाई करने वाली । -बक्सी हंसराज | उदा० फल से भरत रंग भर लागे झारू देत चुंहटी-संज्ञा, स्त्री० [देश॰] चुटकी । चूहरी चतुर चित चोरति चमकनी । उदा० गुलचि बनाय नचाय चहटियन छांडि देहि -देव करि अधिकाई। -घनानन्द ज्यों कर त्यों चुहँटी चलै ज्यौं चुहँटी त्यों चेटका-संज्ञा, स्त्री० [?] चिता ।। नारि । -बिहारी उदा० जरे जूहनारो चढ़ी चित्रसारी, मनो चेटका चुहुटिनी-संज्ञा, स्त्री० [देश॰] घु घची, गुजा । में सती सत्यधारी। -केशव उदा० राखति प्रान कपूर ज्यौं वहै चुहुटिनी माल । चेटकी-संज्ञा, पु० [हिं० चेटक] जादू करने वाला, -बिहारी जादूगर, कौतुकी। चूंटना-क्रि० सं० [सं० चयन] चुनना, तोड़ना। उदा० चेटकी चबाइन के पेट की न पाई मैं । उदा० मन लुटिगो लोटनि चढ़त चूंटत ऊँचे फूल । -ठाकुर -बिहारी चंप--संज्ञा, पु० [अनु॰] चिड़ियों के फँसाने का चक-संज्ञा, पु० [सं०] १. अत्यन्त खट्टी वस्तु लासा। २. गलती, भूल [फा०] उदा० दृग खंजन गहि लै चल्यो चितवनि चेपु उदा० तेरे मुख की मधुरई, जो चाखी चख लगाय । -बिहारी चाहि । लगत जलज जंबीर सों, चंद चूक सो ताहि । - मतिराम लासा है सनेह को न छूटै चंप चपकन । चून - संज्ञा, पु० [सं० चूर्ण] १. माणिक्य या -ग्वाल रत्न का छोटा टुकड़ा, २. सितारा। चेपना-क्रि० प्र० [हिं० चिपचिप] समझना, उदा० दूनरी लंक लखे मखतून री चूनरी चारु चुई विचार करना । परै चूनरी। -रामकवि उदा० भेद फुरै मीलित बिष उन्मीलित चित चेप। चुनी-संज्ञा, स्त्री० [सं० चूर्ण] मानिक या -पदमाकर रत्न का छोटा टुकड़ा। चै-संज्ञा, पु० [सं० चय] समूह, झुड । उदा० चूनरी सुरंग अंग ई गुर के रंग देव, बैठी उदा० ठाकुर कुंजन पुजन गुजन भौरन को चै परचूनी की दूकान पर चूनीसी । चुपैबो चहैना । -ठाकुर -देव चूब-संज्ञा, स्त्री० [फा० चोब] शामियाना खड़ा | चैतुवा-वि० [बु.] स्वार्थी, मतलबी । उदा० कवि ठाकुर चूक या नैनन की हमसों उनसों करने का डंडा । उदा० दिशा बारहों द्वारिया चूब खोलै । हरीलाल नव नेह बढ़े जू । हम जानती ती हरि मीत पीरी उरी भर्प डोले । ह्व हैं न कढ़े हरी चैतुवा मीत कढ़े जू । -बोधा चूरन-संज्ञा, पु० [सं० चूर्ण] मंत्रित भभूत, -ठाकुर पवित्र राख । चोई—वि० [प्रा० चोइन, सं० चोदित] प्रेरित, डूबी हई उदा० चखरुचि चूरन डारि कै ठग लगाय निज उदा० ठाढ़ी ही बाग में भाग भरी मानो काम साथ । रह्यो राखि हठ, लै गयो हथाहथी मन भुजंगम के विष चोई।। -देव हाथ ॥ चोखरे-वि- [देश] चालाक, धूर्त । -बिहारी उदा० नीके धर्यो दधि दूधु सीके ते उतारि चूचना-क्रि० सं० [सं० चुम्बन] चूमना, चुम्बन खायो, ऊँचे को न गौन जहाँ चोखरे बिलैया करना। -देव उदा० रूप के लालच, लाल चितौत चित मुख | चोखीजाना--क्रि० सं० [देश॰] बछड़े से दूध चीकन, चूवन चाहों। -देव पिलाया जाना। की। For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy