SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org घावरी उदा० तब चाल्यो ले लाठी कर में । पहुँच्या घावरिया के घर में ताहि कह यो फोहा अस दीजै । घाव पाँव को तुरत भरीजे । ( ७१) -अज्ञात घावरी - -संज्ञा, स्त्री० [सं० घात ] क्षत, जख्म । उदा० बासर विभावरी गनत बावरीये सुनि, प्राये घनस्याम, भई घावरी घरीक लोँ । -देव घावरे - वि० [हिं० घामड़] मूर्ख, श्रज्ञानी । उदा० दास जुग संभु रूप श्री फल अनूप मन घावरे करन घावरेन किल कामनी --दास घावरेनि घर दानि, बावरेनि बरदानि, साँवरे, सुघरदान रावरे चरन ये 1 - देव घोर घनी घनघोर सुने घनस्याम घरीक मैं घावरे ह्र' हो । - देव घींच - संज्ञा, स्त्री० [देश०] गला, गर्दन | उदा० नित धींच पे मीच न नीचहिं सूझत मोह के कीच के बीच फँस्यो हैं । -ठाकुर जानु भुजान में जानु भुजा दिये खींचत घींचन मींचत श्रखें । देव घुघुरून—संज्ञा, पु० [देश०] मंजीर उदा० बैर परी पुरवासिनी ये सबै जाम करें घुघुरून घना को । बीच परी टटिया तिनकी झकझोरत जोर धरे जोंबना को । -बोधा घुचना - क्रि० प्र० [हिं० घुसना ] घुसना, प्रवेश करमा, फँसना । उदा० मैं तौ घुच्यौ कीच के बीच | ऊपर तै मोंहि मारं नीच । -जसवंतसिंह घुटना- क्रि० प्र० [सं० घुटक] गाँठ या बंधन का कसना, उलझकर कड़ा पड़ जाना | उदा० हठु न हठीली करि सकैं यह पावस ऋतु पाइ । श्रान गाँठ घुटि जाइ, त्यों मान गाँठि छुटि जाइ । -- बिहारी घुरना क्रि० प्र० [हिं० घुटना] १. बँधना, २. घुलना, पिघलना फँसना । उदा० १. घुरि आस की पास उसास गरें जु परी सुमहू कहा छुटिहै । -घनानन्द घूंघुरी — संज्ञा, स्त्री० [हिं० घूंघुर ] पायजेब, पैजनिया, नृपुर । उदा० पिय बियोग ते तरुनि की पियरानी मुख | घोरिला जोति । मृदु मुरवा की किंकिन होति । पद पद्म की सुभ घूंघरी सों जरी । घूँडि - संज्ञा, स्त्री० [सं० घुटक] घुटन, सांस का भीतर ही भीतर दब जाना और बाहर न निकलना, दम की घुटन । घूंघुरी कटि में - सोमनाथ । मनि नील हाटक केशव Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदा० लखि मोहनें मोहि मिलाय के सोच घने घने घायल घूँड़ि गई -नंदराम धूवरि-संज्ञा, पु० [सं० घर्घर] लँहगा, घाघरा । उदा० घूघरी की धरि डोरी कसी अँगियाहु के बंद कसे गहि गाढ़े - सुन्दर फँदा पुनि -तोष पहिले फँदि घूंघरिया के रोभावली मन भाइ गयो । बूवरी - संज्ञा, स्त्री० [देश०] नीवी, लहँगा की गाँठ बाँधने वाली डोरी, फुंफदी, कटिवस्त्रबंध उदा० ठाढ़ी बाल आलो सों कहत बात हँसि हँसि तके मैं तमासे जैसे घूघरी करति है । —सुन्दर घुघरी की धरि डोरीं कसो रलके लहँगाउ को बूँट सुधारो । वि० [हिं० घूमाव ] घिराव, उदा० घूंघट की घूम के सु झुमके झिलमिल झालर की भूमि घूमक -सुन्दर घेर । जवाहिर के लौं झुलत जात । - पद्माकर सामान । घूरो-- संज्ञा, पु० [सं० कूट] अंगड खंगड़ उदा० मेरो चेरो, मेरो घोरो, मेरो घूरो, मेरो घरू मेरो मेरो कहत न रसना रसाति है । — गंग घेरू -- संज्ञा, स्त्री० [देश०] बदनामी, निंदा । उदा० काहू की बेटी बहून की घेरू किते घर जाय कमंध से पारौं । --ठाकुर घोर - वि० [सं०] बुरा, खराब २. विकराल । उदा० कहत निसंक सिर मैले मति हुजो मिलि भयंकर धर्यो मैं कलंक, अरु मोसौ महाघोर सीं । -देव वोरना- क्रि० प्र० [सं० पुर] गर्जना, ध्वनि करना, कठोर आवाज करना । उदा० ठाकुर बोलि उठे मोखा घन जितही तित गाढ़े | घोरिला - संज्ञा, स्त्री० [बुं०] खूँटी । For Private and Personal Use Only घोरि उठे -ठाकुर
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy