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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गालिब ( ६४ ) गिलन उदा० गाले अति मल भराले तोसकों मैं फेर, गिरवान ... संशा, पु० [फा० गरेबान] गर्दन, ऊपर गलीचे बिछवाले जाल वाले अब । गला, ग्रीव । -वाल उदा० तहें इकन की गिरवान गहिं पटके हयन तें गालिब-वि० [अ० गालिब] जीतने वाला, समर में। -पद्माकर विजयी, श्रेष्ठ । गिरबी--वि० [फा० गिरवी] गिरो रखा हुमा, उदा० गुल पर गालिब कमल है कमलन पैयु रेहन । गुलाब ! --पद्माकर उदा० राजा राइराने उमराइ उनमाने, उनमाने गालिम-वि० [अ० गालिब] बलवान, विजयी । निज गुन के गरब गिरबीदे हैं। उदा० गैरिक ग्रस्यो है गजराज गोड़ गोट्यो ग्राह गालिम गंभीर नीर चाहयो सो गिरायो है गिरवान- संज्ञा, पु० [सं० गीर्वाण] गीर्वाण, -रघुराज देवता। गाल्यो-क्रि० सं० [हिं० गला ] गले में कोई उदा० कहै कवि गंग यह देखिबे को प्राज काल, पदार्थ जबरदस्ती डालना। • काबली की मुद्दति गिरीस गिरबान की। उदा० घास चरै पगु आपसों, गुड़ गाल्यो ही खाय -गंग -'दोहासार संग्रह' से सीख लीन्हो मेर औ कुबेर गिरानो है। गाह -- संज्ञा, स्त्री [सं० ग्राह] १. घात पकड़ २. -----ठाकुर गाथा । गिरह-संज्ञा, स्त्री० [फा०] कुलाँच, कलैया, उदा० १. कहै पद्माकर त्यों रोगन की राह परी उलटी, कलाबाजी । दाह परी दुख्खन में गाह अति गाज की। उदा० ऊँचे चितै सराहियत गिरह कबूतर लेत । --पद्माकर -बिहारी २. युद्ध खन्ड पुनि गाह रुचिर शृंगार बखाने । गिरापूर-संज्ञा, पु० [सं० गिरा = सरस्वती+ पूर=जल समूह] सरस्वती का जल समुह । गाहना--क्रि० अ० [सं० अबगाहन] '. घूमना, उदा० गिरापूर में है पयोदेवता सी। किधौं कंज विचरण करना, थाह लेना, २. बन्धक, गिरवी, की मंजु सोभा प्रकासी । -केशव रेहन । [संज्ञा, पु.] गुहचरी--वि० [सं० गृहचर] घरेलू, घर में रहने उदा० ब्रज-वन गैल गरयारनि गाहत । लहत वाली, पालतू ।। फिरत ज्यौं ज्यौं सुख चाहत । उदा० गूढ़ गृहचरी चिरी चुरी चहचरी करें, कुथत कपौंत, भट काम के कटक के। -घनानन्द -देव २. गति मेरी यही निस बासर है चित तेरी गलीन के गाहने है। -ठाकुर गिलगिली- संज्ञा, स्त्री० [देश॰] १. गुदगुदी २. गिनौरी-- संज्ञा, स्त्री० [फा० गुनग= मजदूर] सिरोही नामक एक चिड़िया ३. घोड़े की एक जाति । मजदूरनी, नौकरानी। उदा० १. लाल लगावत अतर तर, राधे तन सुकुउदा० सजि गाजै बजाज अवाज मदंग लौं, बाकिय तान गिनौरी लरै। मार । चलत गिल गिली कुचन पर, लखत -गंग झिझक रिझवार । गिरद--संज्ञा, स्त्री० [फा० गिर्द ?] १. तकिया, - ब्रजनिधि उपधान २. पास-पास । गिलना--क्रि० सं० [सं० निगर] निगलना, उदा० १. विपरीति मंडित जघन खम्भ नींव किधों खाना, लीलजाना २. पकड़ना । लाह की गिरद गोदी मैन महिपाल की। उदा० उगिलत आगि सी गुलाब मुख लागे बिष -केशव गोली सी गिलति सिख बेली न सुहाति है । २ गहगहे गिरद गुलाबन के बट्टा बने -देव किसूख ग्रंगार मुख माँहि परवत हैं। । २. वै छिगुनी पहुँचो गिलत अति दीनता -ग्वाल दिखाय । --बिहारी --बोधा For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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