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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कंक-संज्ञा, पु० [सं०] सफेद चील, कांक । कटियाना--क्रि० अ० [सं० कंटक+ हिं० अांना] उदा० काक कंक बालक कोलाहल करत है। १.अंकूर निकलना, अंकुए फोड़ना। २. कंट -अज्ञात । कित होना, काँटे निकलना, रोमांचित होना। कंकाली-संज्ञा, स्त्री० [सं० कंकाल] प्रेतिनी।। उदा० १. घूमैं घटा छटा छूटती हैं उलहे द्रुम उदा० कर गहि कपाल पीवै रुधिर. कंकाली बेलिन पत्र नये सो हरी हरी भूमि मैं कौतुक करे। -वन्द्रशेखर इन्द्र बधू कॅटिमाइबे को जनु बीज बये । कंचन बान-संज्ञा, पु० [सं० कांचन-स्वणं, . -ठाकुर पीला+वर्ण=रंग] स्वर्ण के रंग का, पीत २. मनमोहन-छबि पर कटी, कहै कँट्यानी रंग वाला, गिरगिट, छिपकली की जाति का देह । -बिहारी एक जंतु । ककुरना-क्रि० प्र० [देश॰] सिकुड़ना, संकुचित उदा० जो नूग दान विधान करै, सू परै वह कूप होना । में कंचन बानै । -सूरति मिश्र उदा. कोढ़िनि सी ककुरे कर कंजनि केसव सेत कंचनी-संज्ञा, स्त्री० [हिं० कंचन ] वेश्या, सबै तन तातो । -केशव वाराङ्गना । ककोवर-संज्ञा, पु. [सं. काकोदर] सर्प, साँप । उदा० बंचनी विरागह की. प्रति परपंचनी सी. उदा० प्राइ गये हरि ज हर पास कोपीन ककोदर कंचनी सी आज मेघमाला बनि पाई है। को कर लीनी । -तोष -वाल | ककोरा-संज्ञा, पु० [देश॰] ककोड़ा, खेखसा, कंटकारि-संज्ञा, स्त्री० [सं० कंटकारी ] भट परवल के प्राकार की एक तरकारी । कटैया नामक वृक्ष, जिसकी पत्तियों में दोनों | उदा. जोरि जोरि जंघन उदर पर धरि धरि, तरफ काँटे होते हैं । सिकुरि सिकुरि नर होत हैं ककोरा से । -वाल उदा० हितै अहित किय हाकति, एकहि साट । कंटकारि की पतिया, दुहुँ दिसि काट । कक्षासिखा-संज्ञा, पु० [सं० काकपक्ष] काकपक्ष -बेनी प्रवीन केशों की पाटी। कंद-संज्ञा, पु० [सं० कंदुक ] १. कंदुक, गेंद उदा० गजरद, मुख चुकरैंड के, कक्षासिखा बखानि । -केशव २. बादल । उदा० १. औचक ही उचकौ कुच कंद सो। कगायोकरमा-क्रि० प्र० [अनु॰].कांव-कांव करना। उदा० देह करें करठा करे जो लीन्हों चाहति है, कला-संज्ञा, पु० [हिं० कंधा+एला] साड़ी कागु मई कोइल कगायो करे हम सों। का वह भाग जो स्त्रियों के कंधे पर रहता है। -यालम उदा० टूरतहार बारनहि बांधे। उधरो शीश बचपच्ची-संज्ञा, पु० [हिं० कचपच] चमकदार कंदेला काँधे । - बोधा बंदे या . तारे जो शृंगार करते समय कंपू--संज्ञा, पु० [अं. कैंप] पड़ाव, डेरा । कपोल-मण्डल आदि में लगाए जाते हैं। उदा० कंपू बन बाग के कदंब कपतान खड़े, । उदा. कंचन की कचपची चरिन की चमकनि सूबेदार साहब समीर सरसायो है। छकनि की चाहनि चहक चित रही है। -पद्माकर । -गंग For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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