SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभेव अरगजा उदा० | अमीकला-संज्ञा, पु० [सं० अमृत+कला = स्वाधीनपतिका उत्कला, वासक शय्या नाम । किरण] चंद्रमा, शशि। . अभिसंधिता बखानिये, और खंडिता नाम ।। उदा० अभुत अमी कला आनंदघन सुजस जोन्ह -केशव रस वृष्टि सुहाई। -घनानन्द अभेव-संज्ञा, पु० [सं० अभेद] अभेदता, अभि- अमुद-वि० [सं० प्र+हिं० मुंदना]-खिला न्नता, एकत्व । हुमा, विकसित ।। उदा० मलय को खीरिभाल, उरमाल मालती को, उदा० हाँसी बेलि बैन धुनि, कोकिल कपोल चारु एहो रघुनाथ राज रंगनि प्रभेव को । चिबकु गुलाब नाक चम्पक अमुंदरी । -रघुनाथ -सोमनाथ अम्भ-संज्ञा, पु० [सं० अम्बू] जल, अथु । अमेजना-क्रि० स० [फा० आमेजन] मिलना, उदा० मित्र अमित्रन की अँखियान प्रवाहु सौ, मिलावट होना । प्रानन्द सोक के अम्म को। टूटि गयी उदा० कधी अलि मालती सुमन पै समन दै कैइकबार, विदेह महीप को सोच, सरासन रीझि रहयो थकित सुगंधन अमेजे मैं। संभु को। -देव -रसकुसुमाकर अमनैक-वि० [? ] बदमाश, शरारती, ढीठ । मोतिन की माल, मलमलवारी सारी सजें उदा० बाल गोपाल सबै अमनैक हैं, फागुन में झलमल जोति होति चाँदनी अमेजे मैं । बचिहौब कहाँ ते । -बेनी प्रवीन –बेनी कवि दौरि दधि दान काज ऐसो अमनैक तहाँ, प्रमोव-संज्ञा, पु०[सं०ग्रामोद] सुगंध, सुरभि । प्राली बनमाली आइ बहियाँ गहत है। उदा० धागे मागे तरुन तरायले चलत चले,:। -पद्माकर तिनके प्रमोद मंद मंद मोद सकस। ममनी-संज्ञा, स्त्री० [सं० अवनि ] अवनि, -भूषण पृथ्वी । प्ररंग-संज्ञा, पु० [देश॰] सुगन्ध का झोंका । उदा० जब पहुँची द्वार बरात प्रकास्यौ अमनी उदा० रुप के तरंगनि बरंगनि के अंगनि तेओर अकासौ । -सोमनाथ सोधो के अरंग लै तरंग उठ पौन की । अमरन की-संज्ञा, स्त्री० [सं० अमर-देवता -देव + हिं० को-कन्या] देव कन्या, देवता की अरकना-क्रि० प्र० [हिं० अटकना] अटकना, पुत्री। फँसना, अड़ना २. परराकर गिरना, टकराना। उदा० अमर-मूरति कबि 'पालम' है मेरे जान, । उदा० १. सरक्यो मन मेरो मंजीरन मैं, कोऊ अमरावती तें पाई अमरन की। मुरवा की जंजीरन मैं अरक्यो। -मालम -ग्वाल अमान-वि० [सं०] १. अपरिमित, बहुत, २. परकस-संज्ञा, पु० [हिं० अलकसाना]- आलस्य निरभिमान । सुस्ती, काहिली। उदा० १. मोहे महा महिमा वै कहैं, ये भरी रहै उदा० ग्वाल कवि कहै तै न पाप मैं बिलोक्यौ मान अमान अमोही। बेनी प्रवीन ब्रह्म, जुदो ह न जान भज्यो भ्रम्यो-भरकस अमायस-संज्ञा, पु० [? ] भोग-विलास, उपमोग। परकसी-सज्ञा, पु० [सं० आलस्य पालस्य । उदा० अब यह गुसामाफ करि दीजै। चलिये उदा० बीती बरस सी आप पातीह कौंबहुरि अमायस कीजै । -बोधा परकसी ऐसी चित बसी तो हमारी कहा अमारी-संज्ञा, स्त्री० [अ० ] हाथी के ऊपर . बस है। -सेनापति रहने वाला हौदा जिस पर एक छतरी रहती है। अरगजा--संज्ञा, पु० [हिं० अरग-+जा] एक सुगंउदा० ऊलर अमारी गं ग भारी बंब धौं धौं होत। धित पदार्थ, जो केशर, चंदन और कपूर आदि -गंगा को मिला कर बनाया जाता है। तें ।. -ग्वाल For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy