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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org रुखाये मौन रही उदा० सुनो इतँ रँगभौन चित चित चकि चौंकि चहूँ रुख । —देव रुखाये - वि० [फा० रुख ] रुख किये हुए, लगाए हुए । उदा० देवान्तक नारान्तक अंतक त्यों मुसकात विभीषरण बैन तन कानन रुखाये जू । केशव रुच्छवि० [सं० रुक्ष] रुष्ट, क्रुद्ध | उदा० पटकत पुच्छ कच्छ कच्छ पर सेस जब, रुच्छ कर मुच्छ पर हाथ लाइयतु है । - पद्माकर रुजिगार — संज्ञा, पु० [फा० रोजगार ] धंधा, पेशा, व्यापार । १६८ उदा० रावरी रीति पै रीभि के हो रुजिगार रच्यो शरणागत घावन | - रघुराज रुजुक - संज्ञा, पु० [श्र० रुजून- श्राकर्षण, प्रवृत्त ] चाह करने वाला, आकृष्ट होने वाला । उदा० उठि गयौ प्रालम सो रुजुक सिपाहिन को उठि गौ सिंगार सबै राजा राव राने को । भूषण रुझना - क्रि० म० [सं० रुद्ध] पूरा होना, सुलझना । उदा० कवि ग्वाल अगस्त की शक्ति छई यह ईसुरही पेरु तो रुभं । -ग्वाल रुतनि-संज्ञा, स्त्री० [?] कांति, चमक । उदा० सुतनु अनूप रूप रुतनु निहारि तनु, तुला में तनु तोलति त्रसति है । रुति संज्ञा, पु० [सं० रुत] ध्वनि, शब्द पक्षियों का कलरव । उदा० घटा घहराति बीजु छटा छहराति, अधिराति हहराति, कोटि कीट• रुति रुंज लौं । —देव रुपना — क्रि० प्र० [सं० रोधन] रुकना, रुकावट होना । उदा० सोहै चहूँ दिसि में धवली पवलोकित मालनि मैजु रही रुधि । रूपना- क्रि० प्र० [हिं० रोपना, ] १. अड़ना २. रोपाजाना, जमीन में प्रतनु देव २. बेनी प्रवीन डटना, लगाया जाना 1 उदा० पर्यो जोर विपरीत रति रूपी सुरतिरन धीर । करत कोलाहल किंकिनी गह्यौ मौन मंजीर । - बिहारी दरकना- क्रि० प्र० [हिं० लोल] हिलना । ) खरा उदा० लाल लसे पगिया नवलाल कँ, पोत झगा तन घूमे घुमारो । माल मनोहर मोतिन की, रुरकै उर के मधि, आनंद भारौ । -नागरीदास दरना क्रि० अ० [हिं० रूरा] १. शोभित होना, अच्छा लगना २. हिलना, डोलना [सं० लुलन ] । उदा. १. सहज हसौंही छबि फबति रंगीले मुख दसननि जोति- जाल मोती माल सी रुरें । -घनानन्द २. सुरंग तन चीर धीर उर रुरत हारावली बिबिध भूषन सजे माँति माँतिन भेली । — ब्रजनिधि थोड़ा-थोड़ा माँगना ' चरितन चित राखौ, कलेऊ रुँगे खात हैं । - आलम रुदना - क्रि० सं० [हिं० रौंदना ] कुचलना, किसी चीज को पैरों से दबाना | गना - क्रि० सं० [बुं ] उदा० सेवा सावधान देव कहा भयो कान्ह जु Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदा० ग्वाल कवि बूंदें ढूंदे रुदें बिरहीन होन नेह की नमूदे ये न हुँदै हैं गमाके सो । - ग्वाल लझना — क्रि० अ० [हिं० उलझना ] उलझना । उदा० रीझ की रहनि में अबुझ कहा रु रूढ़ि - वि० [सं०] दृढ़, पक्की । उदा० प्रौढ़ि रूढ़ि को समूढ़ गूढ़ गेह में गयो । शुक्र मंत्र शोधि-शोषि होम को जहीं भयो । - केशव फँसना और गूढ़ कहा कहीं मूढ़ हौ जाहु प्रौढ़ रूढ़ि केसौदास नीके हो । रूप -- संज्ञा, पु० [ सं० रूप्य ] १. चांदी २. सौन्दर्य । ] रूरा - वि० [सं० रूढ़ = प्रशस्त २. श्रेष्ठ, उत्तम ३. सुंदर उदा० १. छोड़े तो राधिका सी तौ कुबरी प्रेम के रूरे । जू । -प्रालम २. लोभ लगे हरि रूप के करी जाय । For Private and Personal Use Only उदा० १. रूप की रवाई जातरूप की निकाई मैन पाई रुचिराई कोटिवार बदले मये । - नंदराम साँट जुरि - बिहारी १. बहुत बड़ा जू ? जानि केरि जाने —केशव ठकुराइनि राखेँ - रघुनाथ
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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