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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रजनी ढंग । रमन ल्यायो वरनारि, मारि, छपाचर छली को।। पंक्ति जो दीवाल पर जोड़ी जाती है। समूह, --देव । राशि । रजनी--संज्ञा, स्त्री० [सं०] हल्दी। उदा० गरदा से परे मुरदानि के रदासे तहाँ लीन्है उदा० है रजनी-रज मैं रुचि केती कहा रुचि मंक बैठ्यौ सिरदार रेक प्रेतु है। रोचन र'क रसाल मैं। -द्विजदेव -कुमारमणि रजी--वि० [सं० रंजन] रजित, रंगी हुई, रन-संज्ञा, पु० [सं० अरण्य] १. अरण्य, वन युक्त। २. समुद्र का छोटा खण्ड । उदा० प्रेम भरी पुर भूप सुता गुरण रूप रजी रज उदा० सेइ तू गुरु चरन जीति काम हू को बल, पूतिनि राजै । -देव। बेदहू की पूछि तोसों यहै तत्त कहिहै। रठु--वि० [?] शुष्क, रूखा, नीरस । -सेनापति उदा० मेरी कही मानि लीजै प्राज मान मांगे २. देखें सुरसिधुरन चढ़ सुरसिंधुरन, कूल दीज, चित हित कीजै तपती जै रोस रठु पानिहू पिय त्रिसूल पानि हूजिये। -रघुनाथ -सेनापति रडु-वि० [प्रा०] १. पतित, नीच, पामर २. रफ-संज्ञा, स्त्री० [फा०] १. गति, प्रभाव २. एक छन्द । उदा० १. काल पहुँच्यो सीस पर नाहिन कोऊ उदा० साँझ समै न रहै रफ मानु की, ता समैअङ्क । तजि सब माया मोद मद रामचरन याको मुखाइबोसाँध। -बेनी प्रवीन भजु रड्ड । -दास २. पिय के अनुराग सुहाग भरी रति हेरे न रढ़ना-क्रि० स० [हिं० रटना] रटना, किसी पावति रूप रफै। -घनानन्द चीज को बार-बार उच्चारण करना। रबि-संज्ञा, पु० [अ० रब] ईश्वर, भगवान, उदा० हसिहे सखि गोकुल गाँव सबै रसखानि सबै परमात्मा। यह लोक रढ़ गौ। -रसखानि उदा० ग्वालकवि भाष्यो रबिजाने जो लयो मैं रताई-संज्ञा, स्त्री० [सं० रक्तता ] रक्तता, माल हाल भयो और इमि कहत तितें तितें। लालिमा। -नवाल उदा० केसर निकाई किसलय की रताई लिये रमक-संज्ञा, पु० [?] झूले की पेंग, २. झोंका झाही नाहीं जिनकी धरत अलकत है। तरंग । -हरिलाल | उदा० राखत नाहि निहोरैहु ते, सुबढ़ी रमक रतोली-वि० [सं० रक्त, प्रा. रत्त+हिं० तरुनाई के चाँयनि । -नागरीदास ईली प्रत्य.] लालरंग वाली। दमकनि दामिनि की भामिनि की रमकनि उदा० सारी सितासित पीरी रतीलिह में बगराब झमकनि नेह की करोर रतिहन की। वहै छबि प्यारी। -दास -नाथ रत्त-वि० [सं० रक्त] रक्त, लाल । झमक जरी की तामै रमक हिंडौर की। उदा० सित आसू अंजन बिना यकटक कोये रत्त -ग्वाल तातपर्ज प्रगटे तहाँ, दरसन बिना बिरत्त । | रमड़ना-क्रि० प्र० [सं० रमण] व्याप्त होना -देव फैलना, ठहरना । रथंग-संज्ञा, पु० [सं० रथाङ्ग] चक्रवाक उदा० कुंदन के रंग मृदु अंग तिहि सुंदरि की पक्षी। नैननि के अन्दर निकाई रमड़ी रहै । उदा. अंग अंग अनंग तरंगित रंग, उरोज रथंग -सोमनाथ बिहंगम जोती। -देव रमतूला-संज्ञा, पु० [देश॰] एक प्रकार का बाजा रव-वि० [अ० रद्द] १. खराब, बेकार, अना- उदा० जल तरंग मुहंचंग गिड़गिड़ी तुरही पर कर्षक २. दांत [सं०] । रमतूला । -बकसी हंसराज उदा० नासा लखे सुकतुंड नामी पै सुरसकुंड रद है रमन-वि० [सं० रमणीय] रमणीय, सुन्दर । दुरद-सैंड देखत दुजान के। -दास | उदा० कंजारन ताल सुखदायक । रमनबाग तिहि रवासे-संज्ञा, पु० [फा रद्दा] रद्दा, ईटों की एक तद नरनायक। -बोधा For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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