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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मुसजर ( १६० करना, दुख देना २. विलास करना । उदा० छोमन ही छीजी रस लोभन पसीजी सुवनि उर मीजी, मोजी मदन मुलाइकै । देव मुसजर - संज्ञा, पु० [अ० मुशज्जर] एक प्रकार का छपा हुआ कपड़ा । उदा० ताफता कलन्दर बाफत बन्दर मुसजर सुन्दर झिलमिल है । - रुदन मुसद्दी संज्ञा, पु [ मुतसद्दी] स्वामी, राजा २. मुंशी लेखक ३. शासनाधिकारी, प्रबन्धकर्ता उदा० कहा भयो दिना चार गद्दो के मुसद्दी भए बद्दी के करैया सब रद्दी होइ जायँगे । - गंग ३. प्राय खुदी तू करत री, भई मुसद्दी मैन, गुद्दो पर क्यों चढ़त है, मुद्दो करिबन । —नागरीदास मुसब्बिर ] चित्रकार मुसब्बर -संज्ञा, पु० [अ० तस्वीर बनाने वाला । उदा० मानहु मुसब्बर मनोज को मुकब्बा मंजु फैलि परयो, ताकी तसबीरं उड़ी जात हैं । -ग्वाल मुसुरू --- संज्ञा, पु० [अ० मशरूअ ] एक तरह का धारीदार कपड़ा । उदा० घांघरो सिरिफ मुसुरू को सो हरित अँगिया उरोज डारे हीरन के हार को । रंग -तोष चोली का बन्द २. मुहरे - संज्ञा, पु० [?] तनी शतरंज के महरे, गोट । उदा० गंग कहै खरे नीके खए खगी, बैठि गए मुहरे अंगिया के । गंग मुहार - संज्ञा, स्त्री० [?] ऊँट की नकेल । उदा० जाहि ताहि को चित्त हरे, बाँध पैम कटार चित्त आवत गहि खचई भरिकै गहै मुहार । --रहीम मुहीम - - संज्ञा, स्त्री० [ प्रभु ] चढ़ाई, लड़ाई, युद्ध । उदा० बाढ़ी सीत संका, कांप उर तंका लघुसंका के लगेते होत लङ्का की मुहीम | -- गंग मुहुप -- संज्ञा, पु० [सं० मुख] मुख, २. श्रानन्द । उदा० चाहति चल्यो तू चितं चत रुचि राधे चित मेरे अति चिंताळे चीति बिम्ब ज्यों मुहुप की । --देव मूठ – संज्ञा, पु० [सं० मुष्टि ] जादू टोना, मुहां० ) मूठ चलाना - जादू करना । उदा० बाल अनूठियं ऊठ गुलाल की मूठि मैं लालहि मूठि चलावै । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - घनानन्द मूठि - संज्ञा, स्त्री [सं० मुष्ठिक] मुट्ठी, मारण । उदा० भरि गुलाल की मूठि सों गई मूठि सी मारि । —बिहारी मूलन - संज्ञा, पु० [सं० उन्मूलन] [वि० उन्मू[लित] समूलनष्ट होना, जड़ से उखड़ना । उदा० फूले न बाग समूले न मूले ऊपले खरेउर फूले फिरैया । देव मूलस्थली संज्ञा, स्त्री० [सं०] थाला, श्रालबाल उदा• कहूँ बृक्ष मूलस्थली तोय पोबे मातंग सीमा न छोबे । । मृगंछी -- वि० [सं० मृगाक्षी ] मृग के वाली, मृगनेत्री । उदा० फेरि फेरि हेरि मग बात हित पक्षीहू मृगंछी जैसे पक्षी पिंजरा मुग- लंछन - संज्ञा, पु० [सं० शशि, चन्द्रमा । उदा० मुख मृग-लंछन सौं कटि मृग के से दृग, भाल बैदी मृगलच्छन -संज्ञा, पु० [सं० चन्द्रमा । मेज महामत्त - केशव समान नेत्र For Private and Personal Use Only बंछी पूछे पर्यो । - देव मृगाङ्क] मृगाङ्क; मृगराज की सी मृगमद की । --सेनापति मृगाङ्क] मृगाङ्क, उदा० मृगपति जित्यो सुलंक सों मृगलच्छन मृदुहास, मृग मद जित्यो सुनैन सों, मृगमद जित्यो सुबास । मतिराम मृडानी --संज्ञा स्त्री० [सं०] पार्वती का एक विशेषरण, पार्वती । उदा० कौन मृडानी को जनक हैं, परबत सरदार । -दास मेंड़ा - संज्ञा, स्त्री० [हिं० मटकी, मेटा ] महेंड़ा, दधिपात्र, दहेंड़ी। उदा० नापत मही ठगत मेंड़ा चारी । मॅज -संज्ञा, पु० [फा० भोज्य पदार्थ । उदा० सखिन सुधारी सेज, में डारि अँगुरियाँ - बकसी हंसराज मेज ] मोज - सामग्री, मेज मंजु मौजकारी, लखत लगारी होत घोट में किबारी की । ग्वाल सॉटन के सुरख बिछौना बिछे सेज पर, रंगामेज मेज मनमौज की निसा करें । -- ग्वाल
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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