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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मघवामनि ( उमगी बिरह, डगरनि में डगरि के www.kobatirth.org १८२ - देव मघवामनि - संज्ञा, स्त्री० [सं० मघवन मरण] इन्द्रमरिण, इन्द्रनीलमणि । उदा० जो मघवामनि को सतु सोधिये परसे पय की मति । मचक] तोऽब कहा - घनानन्द झटके से मचकना - क्रि० अ० [हिं० हिलना २. पेंग मारना । उदा० यों मिचकी मचकौ न हहा मचकै मिचकी के । लचके करिहाँ - पद्माकर मचना - क्रि० प्र० [ अनु०] बढ़ जाना, २. छा जाना, फैल जाना । उदा० १. दास सुबास सिंगार सिंगारत बोझनि ऊपर बोझ उठे मचि । २. दामिनि द्यो सम है दसहूँ दिसि, दुद मचावन लागे । मचला - वि० [हिं० मचलना ] अनजान वाला, जो मौके पर चुप्पी साध ले । उदा० ऐसो मन मचला अचल अंग अंग पर, लालच के काज लोक लाजहि ते हटि गयो । —देव मची – संज्ञा, स्त्री० [हिं० मचिया ] छोटी चारपाई, छोटी पलंग । उदा० छाइ बिछाइ पुरैन के पात न लेटती चंदन कोच मची मैं । मजकूर — संज्ञा, पु० [अ० गिनती, चर्चा । उदा० तेरो रूप जीत्यो रति, और नारिन बिचारिन को - दास दादुर - दास बनने —पद्माकर मजकूर ] गणना, रंभा, मेनका को, मजकूर कहा है । - दूलह कीजै सही —बौधा इसी मजकूर है उनमाद । जो न सम्वाद । मजलन - संज्ञा, स्त्री० [अ० मंजिल + हिं० न ] मंजिल, पड़ाव, यात्रा करते समय ठहरने का स्थान । उदा० हारे बटमारे जे बिचारे मजलन मारे, दुखित महा रे, तिनहूँ को सुख ना दियौ । - दयानिधि मजीठ-संज्ञा, पु० [सं० मंजिष्ठा ] श्रौषधि विशेष, २. एक प्रकार की लता । उदा० १. प्यालो ले चिनी को छकी जोबन तरंग मानो रंग हेतु पीबति मजीठ मुगलानी है । - कवीन्द्र मजेज. - संज्ञा, पु० [फा० मिजाज ] गर्व, अभि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir > मान २. मध्य भाग । उदा० १. लाड़िली कुंवरि राधारानी के सदन तजी मदन मजेज रति सेजहि सजति है । -- देव २. नील मनि जटित सुबेंदा उच्च कुच पर्यो है टूटि ललित लिलाट के मजेजे तें । - पद्माकर मजेजमनी - वि० [फा० मिजाज + सं० मणि] गर्वशिरोमणि, श्रत्यंत गर्वीला, अतिशय घमण्डी । उदा० सेज पै सौति करे जनि साल, मनोज के श्रोज मजेजमनी की । -देव मठा — वि० [सं० मिष्ट] मिष्ट, मधुर, सुन्दर । उदा० धोखें आजु सीख सखियान की मठा सी मानि, गई दधि बेचन अकेली मधुबन मैं । -सोमनाथ मत मट्ठे- वि० [प्रा० मठ] मंद | उदा० सबै बीर पठ्ठे सजे बाँधि गठ्ठे । सु ह्व के इकट्ठे पर जे न मट्ठे । मडराना – क्रि० स० [सं० मंडप] किसी वस्तु के चारों तरफ चक्कर लगाना । —पद्माकर उदा० मीडत हाथ पर उमड़ो सो मड़ो उहि बीच फिर मडरान्यो । -देव मंडप ही में फिर मँडरात न जात कहूँ तजि नेह को प्रोनो । - पद्माकर मड़ई – संज्ञा, स्त्री० [सं० मण्डप ] कुटी, मंडप घास-फूंस से निर्मित छोटा गृह, परर्णशाला । उदा० प्रेम उमंडि रहे रस मंडित अंतर की मड़ई मिलि दोऊ -दास मड़हा— संज्ञा, पु० [सं० मण्डप ] घर, मकान । उदा० मड़हो मलीन कुंज खांखरो खरोई खीन । पालम मड़ना-क्रि० प्र० [हिं० मट्ठर ] अड़कर बैठना । उदा० मीड़त हाथ पर उमड़ो सो, मड़ोउहि बीच फिर मडरान्यो । - देव अड़कर मढ्ढना - क्रि० प्र० [हिं० मढ़ना ] बैठना । For Private and Personal Use Only उदा० नवल बकुल के फूल बीनिबे के मिस मयि । मंद मंद मो निकट आनि के मई सु ठयि । -सोमनाथ मत - संज्ञा, पु० [सं० मति] ज्ञान, चेतना, होश । उदा० बन-बाटनु पिक बटपरा लखि बिरहिनुं
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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