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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अज धज -संज्ञा, पु० [सं०] १. कामदेव २. ब्रह्मा, ३. विष्णु । उदा० १. धुनि पूर रहे नित कानन में ग्रज को उपराजबोई सो करें । घनानन्द अजगंबी-संज्ञा, स्त्री, [फा० बज + अ०मेव ] स्वर्गीय, प्रभुता, शोभा । अजब संज्ञा, पु [फा०] अर्जुन का नाम । --- - उदा० कहै पद्माकार त्यों तारन विचारन की विगर गुनाह अजगैबी गैरश्राब की । - पद्माकर सिंह के हाथी झपटे झुकं - पद्माकर www.kobatirth.org ( ५ ) अजीम — वि० [अ० अजीम] महान्, उदा० तदपि गौरी सुनि बाँझ हैं अजीम । उदा० गज अजब अर्जुनसिंह को झुकि भूमिकै । मजमूर्व संज्ञा, पु० -संज्ञा, पु० [?] आनन्द, सुख हर्ष उदा० लीज अजमूदे अब याही मनि मंदिर मैं आवो लाल ललकि मिले तो गलबाही दे । - बेनी प्रवीन बजार -संज्ञा, पु० [फा० आजार ] बीमारी, रोग २. दुख तकलीफ । उदा० जर के प्रजार मिस पलका पे परी अनि बरै बिरहानल अखिल वाके गात री, -कवीन्द्र यह प्रीति अजार को औरे तबीब परन्तु कछू सुनि लीजतु है । - - —ठाकुर बड़ा । वरु है संभु -रहीम ( श्रागम + अजुही संज्ञा स्त्री० [सं० यूथी,] हि० जूही ) जूही नामक एक पुष्प । उदा० अजुही गुहि रेसमतगा कीनी माल बिसाल हरि हराउ तन को कियो मोकर कीनी लाल - मतिराम अजूजा-संज्ञा, पु० [देश०] विज्जु की भाँति एक जानवर जो मुर्दा खाता है । उदा० कहै कवि दूलह समुद्र बढ़े सोनित केजुम्मन पर फिर जम्बुक अजूजा से -दुलह अनोखे वि० [हिं० + जो = तोले, अतुल ] अतुलनीय बेजोड़ । अठंग उदा० पांव न देत नदी तट मैं सरनीर निमज्जत नेम श्रजोखे । - चन्द्रशेखर पुष्ठ; मजबूत अभूनो - वि० [सं० पक्षीण] अक्ष एरण न नष्ट होने वाला । उदा० डोलत है अभिलाष भरे; सुलग्यो बिरहा ज्वर संग सभूनो तुम्हें बिन सांवरे ये नैन सूनै । हिये में से दिये बिरहा भूले। श्रटकरना- क्रि० स [हिं० अटकर] प्रन्दाज -घनानन्द Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गहि घू घरिया उर मुख नाहीं रटै । करत लगाना; ताक लगाना; घात लगाना । उदा० कहा भयौ जो होरी आई तुम अटपटो दाव । अटकरी -संज्ञा, स्त्री० [हिं० श्रटकल ] अन्दाज, अनुमान, कल्पना सहारा । -घनानन्द . प्रटब्बर - संज्ञा, पु विस्तार, फैलाव 1 उदा० — उदा निरख्यौ न मीत ह्वां अनीति करी पंचबान, फिरी निजधाम को प्रकास अटकरी मैं -सोमनाथ घटना- -क्रि० [हिं० प्रोट] बाधा डालना, आड़ करना, छेकना । उदा० फारों जु घू घट श्रोट श्रटै सोई दीठि फोरों अध को जु ध साई । बाहु श्रटै घटा-संज्ञा, पु० [हिं० 'ड | - For Private and Personal Use Only - - देव जुग जांघ जटै -तोष [सं० श्राडम्बर ] श्राडम्बर, अब तो गुनिया दुनिया को भर्ज, सिर बांधत पोट श्रटब्बर की । गंग घटहर—संज्ञा स्त्री० [सं० अट्ट] ढेर, फॅटा, पगड़ी | उदा० आप चढ़ी सीस यह कसबी सी दीन्ह ओ, हजार सीसवारे की लगाई अटहर है, - पद्माकर समूह, अट्ट ] अट्ट -- -केशव उदा० कारी पीरी ढालै देखिये बिसाले प्रति, हाथिन की टा घन घटा सी अरति है । -केशव टंग-संज्ञा, पु० [सं० श्रष्टाङ्ग] - अष्टांग योग । -
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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